नये समाज की खोज - प्रवचन -४ अंतस की बदलाहट ही-(प्रवचन-चौथा) एकमात्र बदलाहट मेरे प्रिय आत्मन्! अच्छा होगा कि मैं आज प्रश्नों के ही उत्तर दूं, क्योंकि बहुत प्रश्न इकट्ठे हो गए हैं। संक्षिप्त में ही देने की कोशिश करूंगा ताकि अधिकतम प्रश्नों के उत्तर हो सकें। एक मित्र ने पूछा है: बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो, इन तीन सूत्रों के संबंध में आपका क्या कहना है? सूत्र तो जिंदगी में एक ही है–बुरे मत होओ। ये तीनों सूत्र तो बहुत बाहरी हैं। भीतरी सूत्र तो–बुरे मत होओ–वही है। और अगर कोई भीतर बुरा है, और बुरे को न देखे, तो कोई अंतर नहीं पड़ता। और…
ऊब क्या है? - ओशो एक राजा हुआ, बिलकुल ही काल्पनिक कहानी है, उसने सारे देश जीत लिए, पृथ्वी पर जो भी था, सबका मालिक हो गया। और सब जीत कर भी उसने पाया कि मैं तो खाली का खाली हूं, जिस दिन विजय की यह यात्रा शुरु की थी, उस दिन जितना दरिद्र था, उतना ही दरिद्र आज भी हूं। पास में ही उसके भवन के, झोपड़े में एक फकीर रहता था। उसने उस फकीर को बुलवाया और पूछा कि तुम तो दरिद्र हो और तुम्हारे पास कुछ भी नहीं, फिर भी सुबह सांझ तुम्हें गीत गाते देखता हूं; और सब है मेरे पास, और जो भी उपलब्ध किया जा सकता था, सब मैंने पा लिया लेकिन मेरे जीवन में तो दुख और उदासी के…
नये समाज की खोज - जीवन क्रांति का प्रारंभ - प्रवचन - ३ भय से साक्षात्कार से मेरे प्रिय आत्मन्! “नये समाज की खोज’, इस संबंध में तीन सूत्रों पर मैंने बात की है। आज चौथे सूत्र पर बात करूंगा और पीछे कुछ प्रश्नों के उत्तर। मनुष्य का मन आज तक भय के ऊपर निर्मित किया गया है। सारी संस्कृति, सारा धर्म, जीवन के सारे मूल्य भय के ऊपर खड़े हुए हैं। जिसे हम भगवान कहते हैं, वह भी भगवान नहीं है, वह भी हमारे भय का ही भवन है। है कहीं कोई भगवान, लेकिन उसे पाने के लिए भय रास्ता नहीं है। उसे पाना हो तो भय से मुक्त हो जाना जरूरी है। भय जीवन में जहर का असर करता है, …
सेक्स से मुक्ति - ओशो ओशो—सेक्स थकान लाता है। इसलिए मैं तुमसे कहता हूं कि इसकी अवहेलना मत करो। जब तक तुम इसके पागलपन को नहीं जान लेते, तुम इससे छुटकारा नहीं पा सकते। जब तक तुम इसकी व्यर्थता को नहीं पहचान लेते तब तक बदलाव असंभव है। यह अच्छा है कि तुम सेक्स से तंग आते जा रहे हो। और स्वाभाविक भी है। सेक्स का अर्थ ही यह है कि तुम्हारी ऊर्जा नीचे की और बहती है। तुम ऊर्जा गंवा रहे हो। ऊर्जा को ऊपर की और जाना चाहिए तब यह तुम्हारा पोषण करती है। तब यह शक्ति लाती है। तुम्हारे भीतर कभी न थकाने वाली ऊर्जा के स्त्रोत बहने शुरू हो जाते है—एस धम्…
नये समाज की खोज -(प्रवचन-२) सुख की नींव पर मेरे प्रिय आत्मन्! “नये समाज की खोज,’ इस संबंध में तीसरे सूत्र के बाबत पहले कुछ कहूंगा। पीछे आपके प्रश्नों के उत्तर दूंगा। आज तक मनुष्य-जाति क्षणिक का विरोध करती रही है और शाश्वत को आमंत्रण देती रही है, क्षुद्र का विरोध करती रही है और विराट को पुकारती रही है। और जीवन का आश्चर्य यह है कि जो विराट है वह क्षुद्र में मौजूद है और जो शाश्वत है वह क्षणिक में निवास करता है। क्षणिक के विरोध ने क्षणिक को भी नष्ट कर दिया है और शाश्वत को भी निकट नहीं आने दिया है। अमेजान नदी का नाम आपने सुना होगा, दुनिया की सबसे…
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