ओशो का स्वर्णिम बचपन मे रे बचपन में मेरे माता पिता के साथ यह प्रतिदिन की समस्या थी। मैंने उनसे बार-बार कहा , एक बार आप लोगों को समझ लेनी चाहिए कि यदि आप चाहते है कि मैं कुछ करू , तो मुझको वह करने के लिए कहें मत , क्योंकि यदि आप कहेंगे कि मुझको इसे करना पड़ेगा , तो मैं ठीक उलटा कर देने वाला हूं—चाहे जो भी हो। मेरे पिता ने कहा: तुम ठीक उलटा कर ड़ालोगे। मैंने कहा: बिलकुल सही—ठीक उलटा। मैं किसी भी दंड के लिए तैयार हूं , लेकिन वास्तव में इस स्थिति के लिए आप उत्तरदायी है , मैं नही ; क्योंकि मैंने आरंभ से ही इस बात क…
ध्यान और प्रेम एक ही अनुभव हैं ओशो, प्रेम और ध्यान एक-दूसरे के विपरीत छोर लगते हैं। कृपा करके हमें यह बताएं की ध्यान में और अपने प्रेमी के साथ आत्मीयता में कैसे विकसित हों। तुम न तो जानते हो कि प्रेम क्या है, न ही तुम जानते हो कि ध्यान क्या है। फिर भी तुम इस सवाल से परेशान हो। तुम्हें प्रेम और ध्यान विपरीत छोर दिखाई जान पड़ते हैं--मुझे आश्चर्य है कि तुम्हें यह विचार कैसे आया? अगर प्रेम और ध्यान विपरीत छोर हैं, तो इस दुनिया में कुछ भी एक-दूसरे के करीब नहीं हो सकते। लेकिन मैं जानता हूं कि सभी पुराने धर्म एक ही भ्रान्ति के अंतर्गत हैं। ध्य…
जिम्मेदारी तुम जिम्मेदारी शब्द का अर्थ तक नहीं समझते। समाज बड़ा चालाक है। इसने हमारे सबसे सुंदर शब्दों को विकृत अर्थ देकर नष्ट कर दिया है। सामान्यतया तुम्हारे शब्दकोशों में 'जिम्मेदारी' का मतलब कर्तव्य होता है, चीजों को उस तरह से करना जिस तरह से तुम्हारे माता-पिता, तुम्हारे शिक्षक, तुम्हारे पंडित, तुम्हारे राजनेता--किन्हीं दूसरों द्वारा अपेक्षा की जाती है। तुम्हारे बड़े-बुजर्गों व तुम्हारे समाज द्वारा तुम्हारे ऊपर थोपी गई मांगों को पूरा करना तुम्हारी जिम्मेदारी है। यदि तुम उस तरह से कार्य करते हो, तुम जिम्मेदार व्यक्ति हो; यदि तुम …
प्रेम करना और प्रेम की मांग करना दो अलग बातें हैं "अपने जीवन को प्रेम से भर दो। पर तुम कहोगे, 'हम तो हमेशा प्रेम करते हैं।' और मैं तुमसे कहता हूं, तुम शायद ही कभी प्रेम करते होगे। यह हो सकता है कि तुम प्रेमातुर होओ... और इन दोनों बातों में बहुत बड़ा अंतर है. प्रेमपूर्ण होना और प्रेम के लिए आतुर होना यह दोनों बहुत विपरीत बातें हैं। हम में से बहुत लोग अपना सारा जीवन बच्चों जैसे रह जाते हैं क्योंकि हर कोई प्रेम खोज रहा है। प्रेम करना एक बहुत ही रहस्यपूर्ण बात है; प्रेम के लिए आतुर होना एक बहुत बचकाना बात है। छोटे बच्चे प्रेम के लिए …
प्रेमपूर्ण व्यक्ति स्वर्ग में जीता है "प्रेम से वंचित व्यक्ति अकेला जीता है, आस्तित्व के केंद्र से पृथक होकर। प्रेम के बिना हर कोई अकेला इकाई है, अपने जैसे दूसरे लोगों के साथ भी किसी तरह का संबंध से वंचित। आज, मनुष्य स्वयं को पूर्णता अकेला पाता है। हम सब एक-दूसरे के प्रति अपने द्वार बंद किए हुए हैं, अपने ही भीतर कैद। यह ऐसे है जैसे हम किसी कब्र में हों। जीवित होकर भी व्यक्ति एक लाश है। यह जो मैं कह रहा हूं, क्या तुम उस बात के पीछे कि सच्चाई को देखते हो? क्या तुम जीवित हो? क्या तुम अपनी नसों में प्रेम को बहता हुआ महसूस कर सकते हो? यदि तु…
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