Bin Ghan Parat Puhar (Hindi):
बिन धन परत फुहार’—यह वार्तामाला एक नई ही यात्रा होगी। मैं अब तम मुक्तपुरुषों पर बोला हूं। पहली बार एक मुक्तनारी पर चर्चा शुरू करता हूं। मुक्तपुरुषों पर बोलना आसान था। उन्हें मैं समझ सकता हूं—वे सजातीय हैं। मुक्तनारी पर बोलना थोड़ा कठिन होगा—वह थोड़ा अजनबी रास्ता है। ऐसे तो पुरुष और नारी अंतरतम में एक हैं, लेकिन उनकी अभिव्यक्तियां बड़ी भिन्न-भिन्न हैं। उनके होने का ढंग, उनके दिखाई पड़ने की व्यवस्था, उनका वक्तव्य, उनके सोचने की प्रक्रिया, न केवल भिन्न है बल्कि विपरीत है। अब तक किसी मुक्तनारी पर नहीं बोला। तुम थोड़ा मुक्तपुरुषों को समझ लो, तुम थोड़ा मुक्ति का स्वाद चख लो, तो शायद मुक्तनारी को समझना भी आसान हो जाए।’-ओशो
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