Mrityorma Amritam Gamay (Hindi)
ये तो प्रश्नोत्तर हैं। संभाषण है—सदगुरु और शिष्यों के बीच। अचानक प्रश्न और अचानक उत्तर। जैसे सुबह-सुबह आंख खुले और ओस के मोती बिखरे मिलें, जैसे कोई कली अचानक चटके और फूल बन जाए, जैसे चंदन पके और अचानक उसमें सुगंध उग आए, जैसे हिमालय की घाटियों में आप अचानक कहीं से पत्थर हटाएं और कोई श्रोता फूट निकले। कहीं कोई प्रयत्न नहीं। सब सहज, सरल, स्वाभाविक। ‘यह ओशो की वाग्वीथि है। इसमें नए मनुष्य के निर्माण का सपना गूंज रहा है। इसीलिए बीसवीं सदी की दुनिया में ओशो जैसा कोई दूसरा उपदेष्टा नहीं हुआ। ‘‘मृत्योर्मा अमृतं गमय’’ इस सत्य की एक बानगी है।’
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