सुख - जीने का एक ढंग है - ओशो
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अगर तुम्हें सुख लेने का पता है। तब पक्षियों के सुबह के गीत, या सुबह सूरज का उगना, या रात आकाश में तारों
का फैल जाना, या हवा का एक झोंका भी गहन सुख की वर्षा कर सकता है।
अगर तुम्हें सुख लेने का पता है। सुख मांगना मत और सुख में जीना। मांगा कि तुमने दु:ख में जीना शुरू कर दिया।
अपने चारों तरफ तलाश करना कि सुख कहां है?
सुख है। और कितना मैं पी सकूं कि एक भी क्षण व्यर्थ न चला जाए, और एक भी क्षण रिक्त न चला जाए, निचोड़ लूं। जहां से भी, जैसा भी सुख मिल सके,
उसे निचोड़ लूं।
तो तुम जब पानी पीयो, जब तुम भोजन करो, जब तुम राह पर चलो, या बैठ कर वृक्ष के नीचे सिर्फ सांस लो, तब भी सुख में जीना।
सुख को जीने की कला बनाना, वासना की मांग नहीं।इतना सुख है कि तुम समेट भी न पाओगे। इतना सुख है कि तुम्हारी सब झोलिया छोटी पड़ जाएंगी। इतना सुख है कि तुम्हारे हृदय के बाहर बाढ़ आ जाएगी। और न केवल तुम सुखी हो जाओगे, बल्कि तुम्हारे पास भी जो बैठेगा, वह भी तुम्हारे सुख की छाया से,
वह भी तुम्हारे सुख के नृत्य से आंदोलित हो उठेगा।
तुम जहां जाओगे, तुम्हारे चारों तरफ सुख का
एक वातावरण चलने लगेगा।
तुम जिसे छुओगे, वहां सुख का संस्पर्श हो जाएगा। तुम जिसकी तरफ देखोगे, वहां सुख के फूल खिलने लगेंगे।
तुम्हारे भीतर इतना सुख होगा कि तुम उसे बांट भी सकोगे। वह बंटने ही लगेगा।
सुख अपने आप ही बंटने लगता है। वह तुम्हारे चारों तरफ फैलने लगेगा। सुख की तरंगें तुमसे उठने लगेंगी, और सुख के गीत तुमसे झरने लगेंगे। लेकिन सुख मांग नहीं है, सुख जीने का एक ढंग है................💃
☘ साधना सूत्र ☘
🌹ओशो प्रेम..... ✍🏻♥
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