प्रेम-पंथ ऐसो कठिन – Prem Panth Aiso Kathin (Hindi Edition) - Buy Online

प्रेम-पंथ ऐसो कठिन – Prem Panth Aiso Kathin (Hindi Edition)

प्रेम-पंथ ऐसो कठिन – Prem Panth Aiso Kathin (Hindi Edition) - Buy Online

RS : 225

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कठिनाई चाहे प्रेम के पंथ की हो या ध्यान के मार्ग की, पंद्रह प्रवचनों की इस प्रश्नोत्तर प्रवचनमाला में ओशो ने सभी प्रश्नों के अत्यंत सरल और सुबोध समाधान दिए हैं। शेरो-शायरी और कविताओं से भरपूर ये प्रवचन पंथ की सारी कठिनाई को दूर कर एक नई सुबह की तरह हमें अभिभूत कर लेते हैं। ओशो कहते हैं : ‘मैं तो देखता हूं एक नया सूरज, एक नई सुबह, एक नया मनुष्य, एक नई पृथ्वी—वह रोज निखरती आ रही है। अगर हम थोड़े सजग हो जाएं तो यह और जल्दी हो जाए, यह रात जल्दी कट जाए, यह प्रभात जल्दी हो जाए। ध्यान के दीयों को जलाओ और प्रेम के गीतों को गाओ। प्रेम के गीत और ध्यान के दीये, जो सुबह आज तक आदमी के जीवन में नहीं हुई उसे पैदा कर सकते हैं। और आदमी बहुत तड़प लिया है, नरक में बहुत जी लिया है। समय है कि अब हम स्वर्ग को पृथ्वी पर उतार लें। स्वर्ग उतर सकता है।’

1: परिपूर्ण जीवन का दर्शन ही ईश्वर दर्शन
2: परमात्मा यानी हृदय
3: चुप-चुप ही चाहा जाता है
4: अब जुनू राहनुमा जिन्दगी राही होगी
5: वह तुम्हे सदा से याद कर रहा है
6: प्रेम अव्याख्य है
7: मेरा सन्देश मेरा सन्देश बनकर पहुंचाओ
8: वह आया हुआ है—तुम भागे हुए हो
9: ममता बन्धन, प्रेम मुक्तिदायी
10: स्वर्ग तो हमारा स्वभाव है
11: प्रेम निर्धूम शिखा है
12: जगत की सबसे बडी चुनौती : ईश्वर की खोज
13: बीजरूप प्रेम से सुवासरूप प्रेम की ओर
14: शून्य होने का साहस ही सन्यास है
15: सांझ तक भी लौट आनेवाला भूला नहीं कहलाता

सागर! साधु-संत वही कहते हैं, जो तुम सुनना चाहते हो। वह नहीं जो है। वैसा नहीं, जैसा है; वरन वैसा, जैसा तुम्हें प्रीतिकर लगेगा, मधुर लगेगा। वैसा, जैसा है, कटु भी हो सकता है, कठोर भी हो सकता है। तुम सांत्वना चाहते हो, सत्य नहीं। सत्य को तो तुम सूली देते हो। तुम मलहम-पट्टी चाहते हो, चिकित्सा नहीं। क्योंकि चिकित्सा तो कभी-कभी शल्य- चिकित्सा भी होती है। साधु-संत तुम्हारी पीठ थपथपाते हैं, तुम्हें प्रसन्नचित्त करते हैं। क्षणभंगुर है वह प्रसन्नता। और उनका पीठ थपथपाना तुम्हारे किसी काम न आएगा। लेकिन हां, थोड़ी राहत मिलती है। क्षण भर को सही, थोड़ी आशा बंधती है। तुम्हारे साधु-संत तुम्हारी आशा पर जीते हैं। वे सपनों के सौदागर हैं। उन्हें भलीभांति पता है तुम क्या चाहते हो। एक बात तो सुनिश्चित रूप से उन्हें ज्ञात है कि तुम सत्य नहीं चाहते। सत्य के साथ तो तुम बहुत दुर्व्यवहार करते हो। तुम मधुर झूठ चाहते हो, मीठा झूठ चाहते हो। तुम झूठों का एक जाल चाहते हो, जिसमें सुरक्षित तुम अपने जीवन को जैसा जी रहे हो वैसा ही जी सको। तुम्हें जीवन का रूपांतरण न करना पड़े। सिगमंड फ्रायड ने अपने बहुत महत्वपूर्ण वचनों में एक वचन यह भी कहा है कि मैं ऐसी कोई संभावना नहीं देखता भविष्य में कि आदमी बिना भ्रम के जी सकेगा। भ्रम जैसे आदमी के लिए अनिवार्य भोजन है। तुम्हें बड़े-बड़े भ्रम चाहिए, तुम्हें बड़े-बड़े झूठ चाहिए--स्वर्ग के, नरक के, पाप के, पुण्य के। तुम्हें इतने झूठ चाहिए, तो तुम कहीं उन झूठों की सहायता लेकर, उन झूठों की बैसाखियां लेकर किसी तरह अपनी जिंदगी को गुजार पाते हो। कोई तुमसे कह दे कि तुम लंगड़े हो, तो तुम्हें पीड़ा होती है। कोई कह दे कि तुम अंधे हो, तो तुम्हें पीड़ा होती है। कोई कह दे कि ये तुम्हारे पैर नहीं हैं, लकड़ी है, बैसाखियां हैं, तो तुम्हें अच्छा नहीं लगता। इसीलिए तो हम अंधे को भी सूरदास जी कहते हैं। बुरा न लग जाए! साधु-संत परजीवी हैं, तुम्हारे ऊपर निर्भर हैं। तुमसे रोटी पाते हैं, तुमसे वस्त्र पाते हैं, तुमसे सम्मान पाते हैं। वे तुम्हारे नौकर-चाकर हैं। तुम उन्हें सम्मान देते हो, सत्कार देते हो, उसके बदले में तुम उनसे सांत्वना चाहते हो। लेन-देन है, व्यवसाय है, समझौता है, सौदा है। इसलिए साधु-संत क्या कहते हैं, बहुत सोच-समझ कर पकड़ना। गौर से देख लेना। कहीं ऐसा तो नहीं है कि सिर्फ तुम्हारे झूठों को सहारा दिया जा रहा है? तुम्हारे घावों को सहलाया जा रहा है? भुलाया जा रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि धर्म के नाम पर तुम्हें अफीम पिलाई जा रही है? —ओशो


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