आदमी के सात प्रकार के शरीर
(सात शरीरों से गुजरती कुंडलिनी)
कुछ लोग सात वर्ष से ज्यादा कभी आगे नहीं बढ़ पाते; कुछ लोग सिर्फ भौतिक शरीर ही रह जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों में और पशु में कोई अंतर नहीं होगा। पशु के पास भी सिर्फ भौतिक शरीर ही होता है, दूसरे शरीर अविकसित होते हैं।
दूसरे सात वर्ष में भाव शरीर का विकास होता है, या आकाश शरीर का। इसलिए दूसरे सात वर्ष व्यक्ति के भाव जगत के विकास के वर्ष हैं। चौदह वर्ष की उम्र में इसीलिए सेक्स मैच्योरिटी उपलब्ध होती है; वह भाव का बहुत प्रगाढ़ रूप है। कुछ लोग चौदह वर्ष के होकर ही रह जाते हैं, शरीर की उम्र बढ़ती जाती है, लेकिन उनके पास दो ही शरीर होते हैं।
तीसरे सात वर्षों में सूक्ष्म शरीर विकसित होता है— इक्कीस वर्ष की उम्र तक। दूसरे शरीर में भाव का विकास होता है; तीसरे शरीर में तर्क, विचार और बुद्धि का विकास होता है।
अभी कुछ मुल्कों में संघर्ष है अठारह वर्ष के बच्चों को मताधिकार मिलने का। वह संघर्ष स्वाभाविक है; क्योंकि जैसे— जैसे मनुष्य विकसित हो रहा है, सात वर्ष की सीमा कम होती जा रही है। अब तक तेरह और चौदह वर्ष में दुनिया में लड़कियां मासिक धर्म को उपलब्ध होती थीं। अमेरिका में पिछले तीस वर्षों में यह उम्र कम होती चली गई है; ग्यारह वर्ष की लड़की भी मासिक धर्म को उपलब्ध हो जाती है। अठारह वर्ष का मताधिकार इसी बात की सूचना है कि मनुष्य, जो काम इक्कीस वर्ष में पूरा हो रहा था, उसे अब और जल्दी पूरा करने लगा है, वह अठारह वर्ष में भी पूरा कर ले रहा है।
लेकिन साधारणत: इक्कीस वर्ष लगते हैं तीसरे शरीर के विकास के लिए। और अधिकतम लोग तीसरे शरीर पर रुक जाते हैं; मरते दम तक उसी पर रुके रहते हैं; चौथा शरीर, मनस शरीर भी विकसित नहीं हो पाता।
जिस कौम में अधिक लोग दूसरे शरीर के हैं, वह कौम सेक्स सेंटर्ड हो जाएगी; उसका सारा व्यक्तित्व—उसकी कविता, उसका संगीत, उसकी फिल्म, उसका नाटक, उसके चित्र, उसके मकान, उसकी गाडिया—सब किसी अर्थों में सेक्स सेंट्रिक हो जाएंगी; वे सब वासना से भर जाएंगी।
जिस सभ्यता में तीसरे शरीर का विकास हो पाएगा ठीक से, वह सभ्यता अत्यंत बौद्धिक चिंतन और विचार से भर जाएगी। जब भी किसी कौम या समाज की जिंदगी में तीसरे शरीर का विकास महत्वपूर्ण हो जाता है, तो बड़ी वैचारिक क्रांतियां घटित होती हैं। बुद्ध और महावीर के वक्त में बिहार ऐसी ही हालत में था कि उसके पास तीसरी क्षमता को उपलब्ध बहुत बड़ा समूह था। इसलिए बुद्ध और महावीर की हैसियत के आठ आदमी बिहार के छोटे से देश में पैदा हुए, छोटे से इलाके में। और हजारों प्रतिभाशाली लोग पैदा हुए।
सुकरात और प्लेटो के वक्त यूनान की ऐसी ही हालत थी। कनफ्यूशियस और लाओत्से के समय चीन की ऐसी ही हालत थी। और बड़े मजे की बात है कि ये सारे महान व्यक्ति पांच सौ साल के भीतर सारी दुनिया में हुए। उस पांच सौ साल में मनुष्य के तीसरे शरीर ने बड़ी ऊंचाइयां छुई।
इस चौथे शरीर की, मनस शरीर की, साइकिक बॉडी की बड़ी संभावनाएं हैं, जो हम बिलकुल ही विकसित नहीं कर पाते हैं, क्योंकि इस दिशा में खतरे बहुत हैं—एक; और इस दिशा में मिथ्या की बहुत संभावना है— दो। क्योंकि जितनी चीजें सूक्ष्म होती चली जाती हैं, उतनी ही मिथ्या और फाल्स संभावनाएं बढ़ती चली जाती हैं।
अब एक आदमी अपने शरीर के बाहर गया या नहीं—वह सपना भी देख सकता है अपने शरीर के बाहर जाने का, जा भी सकता है। और उसके अतिरिक्त, स्वयं के अतिरिक्त और कोई गवाह नहीं होगा। इसलिए धोखे में पड़ जाने की बहुत गुंजाइश है; क्योंकि दुनिया जो शुरू होती है इस शरीर से, वह सब्जेक्टिव है; इसके पहले की दुनिया ऑब्जेक्टिव है।
अगर मेरे हाथ में रुपया है, तो आप भी देख सकते हैं, मैं भी देख सकता हूं पचास लोग देख सकते हैं। यह कॉमन रियलिटी है, जिसमें हम सब सहभागी हो सकते हैं और जांच हो सकती है—रुपया है या नहीं? लेकिन मेरे विचारों की दुनिया में आप सहभागी नहीं हो सकते, मैं आपके विचारों की दुनिया में सहभागी नहीं हो सकता, वह निजी दुनिया शुरू हो गई। जहां से निजी दुनिया शुरू होती है, वहां से खतरा शुरू होता है; क्योंकि किसी चीज की वैलिडिटी, किसी चीज की सच्चाई के सारे बाह्य नियम खतम हो जाते हैं।
इसलिए असली डिसेपान का जो जगत है, वह चौथे शरीर से शुरू होता है। उसके पहले के सब डिसेपान पकड़े जा सकते हैं, उसके पहले के सब धोखे पकड़े जा सकते हैं। और ऐसा नहीं है कि चौथे शरीर में जो धोखा दे रहा है, वह जरूरी रूप से जानकर दे रहा हो। बड़ा खतरा यह है! वह अनजाने दे सकता है; खुद को दे सकता है, दूसरों को दे सकता है। उसे कुछ पता ही न हो, क्योंकि चीजें इतनी बारीक और निजी हो गई हैं कि उसके खुद के पास भी कोई कसौटी नहीं है कि वह जाकर जांच करे कि सच में जो हो रहा है वह हो रहा है? कि वह कल्पना कर रहा है?

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