Osho - Hindi Books Series : J

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  • Jagat Taraiya

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पूर्ण प्यास एक निमंत्रण है वर्षा तो होती है। वर्षा तो हुई। दया पर हुई, सहजो पर हुई, मीरा पर हुई। तुम पर क्यों न होगी? वर्षा तो हुई है, वर्षा फिर-फिर होगी। प्यास चाहिए--गहन प्यास चाहिए। तुम्हारी प्यास जिस दिन पूर्ण है, उसी पूर्ण प्यास से वर्षा हो जाती है। तुम्हारी पूर्ण प्यास ही वर्षा का मेघ बन जाती है। प्यास और मेघ अलग-अलग नहीं हैं। तुम्हारी पुकार ही जिस दिन पूर्ण होती है, प्राणपण से होती है, जिस दिन तुम सब दांव पर लगा देते हो अपनी पुकार में, कुछ बचा नहीं रखते--उसी दिन परमात्मा प्रकट हो जाता है। - ओशो

  • Jeevan Rahasya

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इस पुस्तक का पहला प्रश्न ‘लोभ’ से शुरू होता है जिसके उत्तर में ओशो कहते हैं कि साधना के मार्ग पर ‘लोभ’ जैसे शब्द का प्रवेश ही वर्जित है क्योंकि यहीं पर बुनियादी भूल होने का डर है।
फिर तनाव की परिभाषा करते हुए ओशो कहते हैं : सब तनाव गहरे में कहीं पहुंचने का तनाव है और जिस वक्त आपने कहा, कहीं नहीं जाना तो मन के ‍अस्तित्व की सारी आधारशिला हट गई।
फिर क्रोध, भीतर के खालीपन, भय इत्यादी विषयों पर चर्चा करते हुए ओशो प्रेम व सरलता—इन दो गुणों के अर्जन में ही जीवन की सार्थकता बताते हैं।

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  • Jeevan Sangeet

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इस पुस्तक का पहला प्रश्न ‘लोभ’ से शुरू होता है जिसके उत्तर में 
ओशो कहते हैं कि साधना के मार्ग पर ‘लोभ’ जैसे शब्द का प्रवेश ही वर्जित है
क्योंकि यहीं पर बुनियादी भूल होने का डर है।
फिर तनाव की परिभाषा करते हुए ओशो कहते हैं—"सब तनाव गहरे में कहीं पहुंचने का तनाव है और जिस वक्त आपने कहा, कहीं नहीं जाना तो मन के अस्तित्व की सारी आधारशिला हट गई।"
फिर क्रोध, भीतर के खालीपन, भय इत्यादी विषयों पर चर्चा करते हुए ओशो प्रेम व सरलता—इन दो गुणों के अर्जन में ही जीवन की सार्थकता बताते हैं।
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  • Jo Bole To Hari


जीवन को जीओ। जीवन एक अवसर है, उसे चूको मत। उसके उतार-चढ़ाव देखो। उसकी अंधेरी घाटियों में भी उतरो और प्रकाशोज्वल शिखरों पर भी चढ़ो। कांटे भी चुभेंगे, फूल भी हाथ लगेंगे। इन दोनों को भोगो, क्योंकि इन दोनों के भोगने से ही तुम्हारे भीतर आत्मा पैदा होगी। इसी चुनौती में से गुजर कर, इसी आग में से गुजर कर तो आत्मा का जन्म होता है।
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  • Jo Machhali Bin

Osho

मेरा जोर ध्यान पर है। ध्यान का अर्थ है: स्वार्थ, परम स्वार्थ, आत्यंतिक स्वार्थ! क्योंकि ध्यान से ज्यादा निजी कोई बात नहीं है इस जगत में। ध्यान का कोई सामाजिक संदर्भ नहीं। ध्यान का अर्थ है: अपने एकांत में उतर जाना, अकेले हो जाना, मौन, शून्य, निर्विचार, निर्विकल्प। लेकिन उस निर्विचार में, उस निर्विकल्प में जहां आकाश बादलों से आच्छादित नहीं होता--अंतर-आकाश--भीतर का सूरज प्रकट होता है। सब जगमग हो जाता है। सब रोशन हो उठता है। फिर तुम्हारे भीतर प्रेम के फूल खिलते हैं, आनंद के झरने फूटते हैं, रस की धाराएं बहती हैं। फिर उलीचो, फिर बांटो। बांटना ही पड़ेगा। और उस बांटने को मैं परोपकार कहता हूं।

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  • Jyoti Se Jyoti Jale

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ज्‍योति से ज्‍योति जले संत सुंदरदास के पदो पर ओशो द्वारा दिए गए प्रथम दस प्रवचनों का संकलन। संत सुंदरदास ने उजाले की इस यात्रा को ‘ज्‍योति से ज्‍योति जले’ कहा है। इस पृथ्‍वी पर एक व्‍यक्ति का दीया जलता है, पूरी पृथ्‍वी उसकी ज्‍योति से प्रकाशित होने लगती है, एक व्‍यक्ति बुद्धत्‍व को उपलब्‍ध होता है, तो हजारों लोगों के जीवन में रसधार प्रवाहित होने लगती है। ओशो कहते हैं कि और फिर यह श्रृंखला रुकती नहीं। इसी श्रृखंला से वस्‍तुत परंपरा पैदा होती है। सच्‍ची परंपरा इसी श्रृंखला का नाम है। एक झूठी परंपरा होती है जो जन्‍म से मिलती है। तुम हिंदू घर में पैदा हुए तो तुम मानते हो मैं हिंदू हूं। यह झूठी परंपरा है।
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  • Jyun Tha Tyun

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‘ज्यूं था त्यूं ठहराया’, रज्जब का है यह वचन। ओशो जब इस वचन की पर्त-दर-पर्त उघाड़ते हैं तो साथ ही साथ हमारे भी मन की कई जानी-अनजानी पर्तें स्वतः खुलती जाती हैं और हम आश्चर्यचकित रह जाते हैं कि कितना कुछ हमारे मन में हम लिए बैठे हैं और कितना आसान है उसे समझना और उससे बाहर आना। इसी के साथ दस प्रवचनावों में मित्रों द्वारा उठाए गए विभिन्न सवालों के जवाब देते हुए अपनी अंतर्दृष्टि देते हैं ताकि एक दिन हम कह सकें--‘ज्यूं था त्यूं ठहराया।’
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  • Jivan Ki Khoj :


जीवन क्या है? उस जीवन के प्रति प्यास तभी पैदा हो सकती है, जब हमें यह स्पष्ट बोध हो जाए, हमारी चेतना इस बात को ग्रहण कर ले कि जिसे हम जीवन जान रहे हैं, वह जीवन नहीं है। जीवन को जीवन मान कर कोई व्यक्ति वास्तविक जीवन की तरफ कैसे जाएगा? जीवन जब मृत्यु की भांति दिखाई पड़ता है, तो अचानक हमारे भीतर कोई प्यास, जो जन्म-जन्म से सोई हुई है, जाग कर खड़ी हो जाती है। हम दूसरे आदमी हो जाते हैं। आप वही हैं, जो आपकी प्यास है। अगर आपकी प्यास धन के लिए है, मकान के लिए है, अगर आपकी प्यास पद के लिए है, तो आप वही हैं, उसी कोटि के व्यक्ति हैं। अगर आपकी प्यास जीवन के लिए है, तो आप दूसरे व्यक्ति हो जाएंगे। आपका पुनर्जन्म हो जाएगा। ओशो











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