Hansa To Moti Chunge (Hindi)
हंसा तो मोती चुगे लाल के जीवन में अचानक वैराग्य उत्पन्न हो गया। लेकिन ऐसे समझने चलोगे तो कुछ सूत्र पकड़ में आ सकते हैं जो काम के हों। राग में डूबने जा रहे थे और वैराग्य उत्पन्न हुआ। फंसता ही था पक्षी पिंजड़े में उतरने को ही था। द्वार बंद होने को ही था। फिर निकलना मुश्किल हो जाता। ठिठक गया। एक बात याद रखो जीवन में बहुत बार ऐसे क्षण होते हैं जब तुम जरा अगर चेत जाओ तो बड़ी झंझटों से बच जाओ। एक कदम और कि फिर झंझटों से बचना मुश्किल हो जाता है। झंझट पैदा हो जाये तो उसके बाहर आना कठिन है। झंझट में न जाना आसान है। क्रोध में चले गये तो फिर निकलना मुश्किल है। क्रोध के द्वार पर ही जाग गये चेत गये तो वही क्रोध करुणा गन जाता है। वासना की दौड़ में चल पड़े तो हर कदम और-और उलझनें खड़ी करता जाता है। फिर इतनी उलझनें हो जाती हैं कि निकलना मुश्किल होने लगता है। एक झूठ बोले तो फिर दस झूठ बोलने पड़ेंगे। क्योंकि एक झूठ को बचाने के लिए दस झूठ जरूरी होते हैं। फिर दस झूठ बोले तो सौ झूठ बोलने पड़ेंगे क्योंकि हर-एक झूठ के लिए दस झूठ चाहिए। फिर यह फैलाव फैलता ही चला जाता है। इसका कोई अंत नहीं है। फिर लौटना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि उतने झूठ जो बोले उतने झूठ प्रगट करने होंगे। फिर मन कंपता है। फिर छाती बेठती है। वैराग्य का अर्थ है राग की व्यर्थता का बोध । राग का अर्थ होता है यहां सुख मिल सकेगा इसकी आशा। वैराग्य का अर्थ होता है न कभी यहां किसी को सुख मिला न यहां सुख मिल सकता है। यहां सुख है ही नहीं। सुख बाहर नहीं है भीतर है। सुख संबंधों में नहीं है अंतस्तल में है। सुख धन में पद में प्रतिष्ठा में नहीं है--ध्यान में है। सुख बहिर्यात्रा नहीं है अंतर्यात्रा है। वैराग्य का अर्थ होता है बाहर की दौड़ दौड़ ही है। चलते बहुत हो पहुंचना कभी नहीं होता मंजिल कभी नहीं आती। मार्ग बहुत लंबा और बहुत जटिल है मंजिल कभी नहीं आती। मंजिल तो नहीं आती मौत आती है। बाहर की दौड़ पर मंजिल का धोखा बना रहता है। और मंजिल के नाम से मंजिल के पीछे छिपी एक दिन मौत आती है। और भीतर की यात्रा में मौत पहले ही घट जाती है। क्योंकि जो मरने को राजी जै वही आत्मा में प्रवेश करता है। अंतरयात्रा में मृत्यु पहले घट जाती है उसी मृत्यु का नाम संन्यास है। संन्यास मृत्यु की कला है जीते जी मर जाने का राज। और जो भीतर चलता है मंजिल के पीछे छिपी अमृत की धार है। मंजिल के पीछे छिपा अमृत है। बाहर मंजिल से मौत धोखा दे रही है। वो दिन होगा जहां के गम न होंगे वो दिन जब इस जहां में हम न होंगे ये नूर-ओ-नार-ओ नग्मा सब रहेंगे तेरी दुनिया में लेकिन हम न होंगे। झुके होंगे जो उनके आस्तां पर वो कोई और होंगे हम न होंगे। फकत यह जानने में उम्र गुजरी वो कैसे और कब बरहम न होंगे। बहुत होंगे मेरे अरमान पूरे मेरे अरमान फिर भी कम न होंगे। चले हैं अश्क इक्बाल-ए-गूनह को गुनाह उनके मगर यूं कम न होंगे। यहां चले चलो दौड़े चलो. . . । एक वासना पूरी नहीं हो पाती और दस को जन्म दे जाती है। यहां आदमी भिखमंगे ही रहते हैं और भिखमंगे ही मरते हैं। शाली हाथ आते हैं खाली हाथ जाते हैं।
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