जिम्मेदारी तुम जिम्मेदारी शब्द का अर्थ तक नहीं समझते। समाज बड़ा चालाक है। इसने हमारे सबसे सुंदर शब्दों को विकृत अर्थ देकर नष्ट कर दिया है। सामान्यतया तुम्हारे शब्दकोशों में 'जिम्मेदारी' का मतलब कर्तव्य होता है, चीजों को उस तरह से करना जिस तरह से तुम्हारे माता-पिता, तुम्हारे शिक्षक, तुम्हारे पंडित, तुम्हारे राजनेता--किन्हीं दूसरों द्वारा अपेक्षा की जाती है। तुम्हारे बड़े-बुजर्गों व तुम्हारे समाज द्वारा तुम्हारे ऊपर थोपी गई मांगों को पूरा करना तुम्हारी जिम्मेदारी है। यदि तुम उस तरह से कार्य करते हो, तुम जिम्मेदार व्यक्ति हो; यदि तुम …
प्रेम करना और प्रेम की मांग करना दो अलग बातें हैं "अपने जीवन को प्रेम से भर दो। पर तुम कहोगे, 'हम तो हमेशा प्रेम करते हैं।' और मैं तुमसे कहता हूं, तुम शायद ही कभी प्रेम करते होगे। यह हो सकता है कि तुम प्रेमातुर होओ... और इन दोनों बातों में बहुत बड़ा अंतर है. प्रेमपूर्ण होना और प्रेम के लिए आतुर होना यह दोनों बहुत विपरीत बातें हैं। हम में से बहुत लोग अपना सारा जीवन बच्चों जैसे रह जाते हैं क्योंकि हर कोई प्रेम खोज रहा है। प्रेम करना एक बहुत ही रहस्यपूर्ण बात है; प्रेम के लिए आतुर होना एक बहुत बचकाना बात है। छोटे बच्चे प्रेम के लिए …
प्रेमपूर्ण व्यक्ति स्वर्ग में जीता है "प्रेम से वंचित व्यक्ति अकेला जीता है, आस्तित्व के केंद्र से पृथक होकर। प्रेम के बिना हर कोई अकेला इकाई है, अपने जैसे दूसरे लोगों के साथ भी किसी तरह का संबंध से वंचित। आज, मनुष्य स्वयं को पूर्णता अकेला पाता है। हम सब एक-दूसरे के प्रति अपने द्वार बंद किए हुए हैं, अपने ही भीतर कैद। यह ऐसे है जैसे हम किसी कब्र में हों। जीवित होकर भी व्यक्ति एक लाश है। यह जो मैं कह रहा हूं, क्या तुम उस बात के पीछे कि सच्चाई को देखते हो? क्या तुम जीवित हो? क्या तुम अपनी नसों में प्रेम को बहता हुआ महसूस कर सकते हो? यदि तु…
केवल प्रेम ही अर्थपूर्ण है "वास्तव में, जब तुम प्रेम में पड़ते हो तब तुम उसके लिए सब कारण गिरा देते हो. इसीलिए हम कहतें हैं व्यक्ति प्रेम में गिर गया। यह गिरना कहां से होता है? यह गिरना मस्तिष्क से उतर कर ह्रदय में होता है। हम इस निंदा भरे कथन का प्रयोग करतें हैं: "प्रेम में गिरना," क्योंकि कारण देने वाली हमारी तार्किक बुद्धि, उसे निंदित किए बिना नहीं देख सकती। उसके लिए तो यह एक पतन है। क्या प्रेम वास्तव में एक पतन है या फिर एक उत्थान? क्या तुम उसके साथ बढ़ते हो या फिर घटते? क्या तुम उसमें विस्तीर्ण होते हो या फिर सिकुड़ते हो? प्…
प्रेम द्वार है - ओशो "यदि प्रेम में आवेश है, तब प्रेम नर्क बन जाएगा। यदि प्रेम में आसक्ति है, तब प्रेम एक कैद बन जाएगा। यदि प्रेम आवेशहीन है तब वह स्वर्ग बन जाएगा। यदि प्रेम में कोई आसक्ति नहीं तब वह अपने आप में दिव्य है। "प्रेम की दोनों संभावनाएं हैं। प्रेम में तुम्हें आवेश और आसक्ति दोनों हो सकते हैं: तब यह ऐसा होता है जैसे तुमने प्रेम के पक्षी की गर्दन में पत्थर बांध दिया हो ताकि वह उड़ न पाए। या फिर जैसे तुमने प्रेम के पक्षी को एक सोने के पिंजड़े डाल दिया हो। पिंजड़ा चाहे जितना भी कीमती क्यों न हो--उसमें हीरे और मोती जड़े हों--पिं…
संबंध प्रेम को नष्ट कर देता है "संबंध एक ढांचा है, और प्रेम का कोई ढांचा नहीं। तो प्रेम संबंधित तो अवश्य होता है, परन्तु कभी संबंध नहीं बनता। प्रेम क्षण-क्षण होने वाली प्रक्रिया है। इसे याद रखो। प्रेम तुम्हारे होने की स्थिति है न की संबंध। संसार में प्रेम करने वाले भी हैं और न प्रेम करने वाले भी। जो प्रेम नहीं करते वे संबंधो द्वारा प्रेमपूर्ण होने का ढोंग करते हैं। प्रेमपूर्ण व्यक्तियों को कोई संबंध बनाने की आवश्यकता नहीं होती--प्रेम का होना पर्याप्त है। "एक प्रेमपूर्ण व्यक्ति बनो बजाय के किसी प्रेम संबंध में पड़ने के--क्योंकि संबंध…
ओशो आ धी रात शमशान क्यों जाते थे? कई रिपोर्ट्स के मुताबिक, ऐसा बताया जाता है कि जब ओशो 12 साल के थे तब शमशान ये जानने के लिए कि मौत के बाद लोग कहां जाते हैं. इनके माता-पिता काफी चिंतित रहने लगे थे. जब उन्होंने ओशो का भविष्य एक ज्योतिष से पूछा तो उन्होंने कहा कि 14 साल की उम्र शुरू होने के बाद 7 दिनों के बीच इनकी मौत हो सकती है. ओशो ने 7 दिन एक मंदिर में बैठकर अपनी मौत का इंतजार किया. ये बात उनके मन में हमेशा के लिए बैठ गई थी कि जब वे मरेंगे तो वे जानना चाहेंगे कि मरने के बाद क्या वही सब होता है जो हमने किताबों में पढ़ी है? जब वे नहीं मरे त…
नये समाज की खोज - ओशो प्रवचन - ६ शून्य की दिशा आचार्य जी, उस दिन जो बात हुई थी उसमें सबसे बड़ा मूल प्रश्न जो हमारे ध्यान में आया था, जिसके बारे में हमें आपसे कुछ जानना है, वह यह है कि शून्यवाद का असर जो हमें बुद्धिज्म और जैनिज्म में दिखाई देता है, शायद वह शून्य का इंटरप्रिटेशन कितना ही पाजिटिव हो, लेकिन शब्द-प्रयोग से ही लोगों के जनरल खयालातों में इंटरप्रिटेशन हो जाते हैं। हर एक को नई फार्मूला एक पुराने शब्द के लिए नहीं दी जा सकती। लेकिन प्रापर शब्द शायद यूज किया जा सकता है। तो इस संभावना से हमें यह नजर आता है और कई लोगों के माइंड में भी यह …
प्रेम की पहली तरंग तुम्हारे आस-पास हो "अपने प्रति स्वस्थ प्रेम एक महान धार्मिक मूल्य रखता है। एक व्यक्ति जो स्वयं से प्रेम नहीं करता, वह कभी किसी और से प्रेम नहीं कर सकेगा। प्रेम की प्रथम तरंग तुम्हारे ह्रदय में उठनी चाहिए। यदि वह स्वयं के लिए नहीं उठी तो वह किसी और के लिए भी नहीं उठ सकती, क्योंकि बाकी सब तुमसे बहुत दूर हैं। "यह एक शांत सरोवर में पत्थर फेंकने जैसा है--पहले तरंगें पत्थर के आस-पास उठेंगी फिर वे आगे किनारों की और बढ़ जाएंगी। प्रेम की प्रथम तरंग तुम्हारे आस-पास उठनी चाहिए। तुम्हें अपने शरीर से प्रेम करना है, तुम्हें अपन…
प्रेम मूलतः चित्त की एक स्थिति है "असली बात संबंध नहीं है परन्तु एक स्थिति है; तुम प्रेम में होते नहीं अपितु तुम प्रेम होते हो। जब भी मैं तुम से प्रेम की बात करता हूं तब यह स्मरण रहे: मैं प्रेम की स्थिति की बात कर रहा हूं। हां, संबंध बिल्कुल सही बात है, परन्तु जब तक तुम प्रेम की स्थिति को न उपलभ्ध कर लो, संबंध झूठे होंगे। तब संबंध न केवल ढ़ोंग है बल्कि एक खतरनाक ढ़ोंग है, क्योंकि वह तुम्हें मूर्ख बनाता रहेगा; वह तुम्हें महसूस करवाता रहेगा कि तुम्हें पता है प्रेम क्या है, और वास्तव में तुम्हें पता है नहीं। प्रेम मूलतः तुम्हारे होने की स्थि…
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