ध्यान और प्रेम एक ही अनुभव हैं - ओशो

 ध्यान और प्रेम एक ही अनुभव हैं

 
Osho

ओशो,
प्रेम और ध्यान एक-दूसरे के विपरीत छोर लगते हैं। कृपा करके हमें यह बताएं की ध्यान में और अपने प्रेमी के साथ आत्मीयता में कैसे विकसित हों।
 
तुम न तो जानते हो कि प्रेम क्या है, न ही तुम जानते हो कि ध्यान क्या है। फिर भी तुम इस सवाल से परेशान हो। तुम्हें प्रेम और ध्यान विपरीत छोर दिखाई जान पड़ते हैं--मुझे आश्चर्य है कि तुम्हें यह विचार कैसे आया? अगर प्रेम और ध्यान विपरीत छोर हैं, तो इस दुनिया में कुछ भी एक-दूसरे के करीब नहीं हो सकते। लेकिन मैं जानता हूं कि सभी पुराने धर्म एक ही भ्रान्ति के अंतर्गत हैं।
 
ध्यानी प्रेम से बचने के लिए पहाड़ों की और भागते रहे हैं, और प्रेमी कभी भी ध्यान के झंझट में नहीं पड़े। वे जानते थे कि अगर वे ध्यान करेंगे तो उनका प्रेममय जीवन समाप्त हो जाएगा। मानवता के साथ यह सबसे लंबे समय तक चलने वाली भ्रान्ति रही है। प्रेम एक मौन, एक खुशी, एक शांति, दो लोगों के बीच एक परमानन्द है। लेकिन क्योंकि वहां दो व्यक्ति हैं, कभी-कभी वे मेल नहीं खाते हैं।
 
ध्यान का अनुभव मौन और शांति और आनंद के जैसा ही है--लेकिन अकेले का। लेकिन अगर दो ध्यानी प्रेम में हैं, तो चीजें सर्वोच्च शिखर पर आ जाती हैं। अगर एक ध्यानी अपने आनंद, अपने मौन के किसी शिखर तक पहुंचता है, तो दोनों ध्यानी जो एक-दूसरे से प्यार करते हैं, वे अज्ञात में एक-दूसरे की यात्रा में बहुत बड़े सहयोगी हो जाते हैं। उनका प्रेम उनके ध्यान का पोषण बन सकता है, और इसके विपरीत, उनका ध्यान उनके प्रेम का पोषण बन सकता है।
 
यह वह मामला है, जहां मैं अतीत के सभी धर्मों से भिन्न हूं। उन्होंने प्रेम और ध्यान को अलग अलग छोर पर कर दिआ है, समानांतर रेखाएं जो कहीं नहीं मिलती हैं।
 
मेरा मानना है की एक ध्यानी व्यक्ति अनिवार्य रूप से बहुत प्रेमपूर्ण होगा।

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