पतंजलि बुद्ध पुरुषों के जगत में आइंस्टीन कि भांति है।
पतंजलि दुर्लभ हैं। वे एक सम्बुद्ध व्यक्ति हैं जैसे बुद्ध, जैसे कृष्ण, जैसे क्राइस्ट, जैसे महावीरा, मोहम्मद, ज़रथुश्त्र, परन्तु वे एक बात में भिन्न है। बुद्ध, कृष्ण, महावीर, ज़रथुश्त्र, मोहम्मद- इन में से किसी के पास वैज्ञानिक चित्त नहीं है। वे धर्म के महान संस्थापक हैं। इन्होने मनुष्य के मन का पूरा ढांचा बदल दिया, परन्तु उनकी पहुँच वैज्ञानिक नहीं है।
पतंजलि बुद्ध पुरुषों के जगत में आइंस्टीन कि भांति है। वे एक घटना हैं। वे सरलता से आइंस्टीन, बोहर, या मैक्स प्लान्च्क या हाइजेनबर्ग की तरह एक नोबल पुरुस्स्कार के विजयता हो सकते थे। उनके पास वैसा ही मनोभाव है, एक तेज वैज्ञानिक मन के जैसी पहुँच। वे कवी नहीं है; कृष्ण एक कवी हैं। वे एक नैतिकवादी नहीं है; महावीर एक नैतिकवादी हैं। वे वस्तुत एक वैज्ञानिक हैं जो नियमों कि दृष्टि से सोचते हैं। और उन्होंने मानवता के परम नियमों का निष्कर्ष निकाल लिया है, मानव मन और वास्तविकता की अंतिम कार्य संरचना का भी।
और यदि तुम पतंजलि को समझो तो तुम्हे पता चलेगा कि वे बिलकुल एक गणित के सूत्र की तरह सटीक हैं। केवल वह जो बोल रहें हैं उसका पालन करो और परिणाम निश्चित घटित होगा। परिणाम अवश्यंभावी है-- यह ऐसा ही है जैसे दो और दो मिल कर चार बन जाते हैं; यह ऐसा ही है जैसे तुम पानी को सौ डिग्री तक गर्म करो और वह भाप बन जाए। इसमें किसी मान्यता की आवश्यकता नहीं, तुम केवल इसे करते हो और समझ जाते हो। यह कर के समझने जैसा है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि उनकी कोई तुलना नहीं हो सकती: पतंजलि जैसा कोई व्यक्ति अभी तक इस धरती पर दुबारा नहीं हुआ है।
योग एक शुद्ध विज्ञान है। और जहाँ तक योग के संसार का सवाल है पतंजलि का नाम महानतम है। वे एक दुर्लभ व्यक्ति हैं, उनकी तुलना का कोई भी नाम नहीं है। मानवता के इतिहास में पहली बार इस व्यक्ति ने धर्म को विज्ञानं कि हैसियत तक पहुंचा दिया। उन्होंने धर्म को विज्ञानं का रूप दे दिया; शुद्ध नियम, किसी मान्यता की आवश्यकता नहीं।
तथाकतिक धर्मो को मान्यता की आवश्यकता होती है। एक धर्म और दूसरे धर्म के बीच और कोई भेद नहीं; भेद केवल मान्यताओं का है। एक मुसलमान के की कुछ मान्यताएं होतीं है, एक हिन्दू की कुछ और, एक क्रिश्चन की कुछ और। भेद मान्यताओं का है। जहाँ तक मान्यता का सवाल है योग के पास कुछ भी नहीं है; योग कुछ भी मानने को नहीं कहता। योग कहता है "अनुभव करो।" जैसे कि विज्ञानं कहता है " प्रयोग करो," योग कहता है "अनुभव करो।" प्रयोग करना और अनुभव करना दोनों एक ही हैं; उनकी दिशाएं भिन्न हैं। प्रयोग का अर्थ है कि तुम कुछ बाहर कर सकते हो; अनुभव का अर्थ है कि तुम कुछ भीतर कर सकते हो। अनुभव एक भीतरी प्रयोग है।
विज्ञानं कहता है "विशवास मत करो, जितना हो सके उतना संदेह करो," किन्तु साथ ही अविश्वास मत करो"- क्योंकि अविश्वास भी एक तरह का विशवास है। तुम इश्वर में विशवास कर सकते हो, तुम इश्वर के न होने के सिद्धांत में भी विशवास कर सकते हो। तुम जितने कट्टर मनोभावसे इश्वर को स्वीकार कर सकते हो, तुम इसके बिलकुल विपरीत भी बोल सकते हो, कि इश्वर नहीं है, उतनी ही कट्टरता से। आस्तिक और नास्तिक दोनों ही विश्वासी होतें हैं, और विशवास विज्ञान का क्षेत्र नहीं है। विज्ञान का अर्थ है किसी बात को अनुभव करना, वह जो है; इसके लिए किसी विशवास की आवश्यकता नहीं।"
पतंजलि--मैं उन्हें धर्म के जगत का वैज्ञानिक बुलाऊंगा, रहस्यवाद के गणितग्य, विसंगत बातों के तार्किक। उनके भीतर विपरीत का मिलन होता है। यदि कोई वैज्ञानिक पतंजलि के योग सूत्रों को पढ़े तो वह उन्हें तुरंत समझ जाएगा। वित्गेनेस्तीन जैसा तार्किक मन, पतंजलि के साथ तुरंत एक आत्मीयता अनुभव करेगा। वे परम रूप से तर्कसंगत हैं। और यदि वे तुम्हे विसंगतियों में ले जाते हैं ये तो वे इतने तर्कसंगत ढंग से करते हैं कि तुम कभी नहीं जान सकते कि तर्क को पीछे छोड़ वे कब तुम्हे उसके पार ले गए।
वे एक दर्शनशास्त्री, एक विचारक की तरह चलतें हैं, और इतने सूक्ष्म विभेदन करतें हैं कि जिस क्षण वे तुम्हे निर्विचार में, गैर-चिंतन में ले जातें है तुम देख भी नहीं पाओगे कि कब वो छलांग लग चुकी है। उन्होंने छलांग को कई छोटे क़दमों में बाँट दिया है।
पतंजलि के साथ तुम कभी भी डर महसूस नहीं करोगे, क्योंकि उन्हें बोध है कि तुम कब डर महसूस करोगे। वे कदमो को छोटे से छोटा काटते जातें हैं, बिलकुल ऐसे जैसे कि तुम किसी समतल भूमि पर चल रहे हो। वे तुम्हे इतना धीमे ले जाते हैं कि तुम ये निरीक्षण भी नहीं करते कि कब छलांग लग गई, कब तुम सीमा को पार कर गए। और वे एक कवि भी हैं, और एक रहस्यवादी भी--एक दुर्लभ मेल।
यहाँ तिलोपा जैसे रहस्यवादी हैं, उपनिषदों के ऋषिओं जैसे महान कवि और अरिस्तोतल जैसे महान तर्कशास्त्री भी हैं, पर तुम पतंजलि को कहीं नहीं पाओगे। वे एक ऐसा मेल हैं कि उनके बाद ऐसा कोई भी नहीं हुआ है जिनसे उनकी तुलना की जा सके। एक कवी होना बेहद सरल है क्योंकि तुम एक ही टुकड़े में से हो, एक तर्कशास्त्री होना बेहद सरल है-- तुम एक ही टुकड़े से बने हो। पतंजलि होना लगभग ना के बराबर है क्योंकि तुम्हे वो होने के लिए बहुत सी विपरीत बातों को समझना होगा--और वे इन सब का बेहद सुन्दर मेल हैं। इसी कारण वे योग की पूरी परंपरा के अल्फ़ा और ओमेगा बन गए हैं।
वास्तव में, उन्होंने योग का आविष्कार नहीं किया था; योग उस से कहीं ज़ियादा प्राचीन है। योग, पतंजलि से भी कई सदियों पूर्व उपस्थित था। उन्होंने उसकी खोज नहीं की, परन्तु वे इस दुर्लभ मेल वाले व्यक्तित्व की वजह से वे लगभग उसके खोजी और संस्थापक बन गए। उनसे पहले कई लोगों ने इस पर काम किया था और लगभग सभी-कुछ पता भी था, परन्तु योग पतंजलि की प्रतीक्षा कर रहा था। और अचानक जब पतंजलि ने इस पर बोला, तो सब-कुछ ठीक बैठ गया और वे इसके संस्थापक बन गए। वे संस्थापक थे नहीं, परन्तु उनका व्यक्तित्व विपरीत का ऐसा जोड़ हैं, वे अपने भीतर ऐसे बेबूझ तत्वों कोसम्मिलित करते हैं कि वे इसके संस्थापक बन गए--लगभग एक संस्थापक। अब योग हमेशा के लिए पतंजलि से सम्भंदित रहेगा।
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