Piv Piv Lagi Pyas - Story Osho

पीव पीव लागी प्यास -  Osho
यूनान में एक बहुत अदभुत फकीर हुआ डायोजनीज। उसने सब त्याग कर दिया था, लेकिन ऐसे वह एक बड़े रईस और कुलीन घराने से आया था। सब छोड़ दिया था, लेकिन कभी अपना काम अपने हाथ से तो किया न था, तो एक गुलाम बचा रखा था। एक नौकर, जो उसकी देखभाल कर देता, सेवा-टहल कर देता। ऐसे वह संन्यासी हो गया था सब छोड़ कर; सिर्फ एक गुलाम बचा लिया था। पुरानी आदत थी, अपना काम कभी किया न था। बिस्तर कौन लगाता, भोजन कौन बनाता? तो एक नौकर रख छोड़ा था।एक दिन वह नौकर भाग गया। 
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आखिर नौकर को रख छोड़ना आसान मामला नहीं है। जब उस नौकर ने देखा, कि अब यह डायोजनीज बिलकुल फकीर हो गया है, तो वह यह उसको रोक भी कैसे सकेगा? इसके पास कुछ भी रोकने को भी नहीं बचा है। तुम अपने नौकर को रोक पाते हो क्योंकि वहां पुलिस है, कानून है, अदालत है। वे सब रक्षा कर रहे हैं। नहीं तो नौकर भाग जाए, तुम क्या करोगे? अब यह आदमी अकेला जंगल में था, नौकर भाग गया।दूसरे फकीर जो जंगल में साधना में रत थे, उन्होंने कहा, कि पीछा करो। यह बात ठीक नहीं है। 
इस नौकर को दंड देना उचित है।लेकिन डायोजनीज ने कहा, कि मैं सोचता हूं कि अगर नौकर मेरे बिना जी सकता है और मैं उसके बिना नहीं जी सकता, कौन मालिक है, तो कौन नौकर है, यह जरा संदिग्ध हो जाता है। दास मेरे बिना जी सकता है, उसे मेरी कोई जरूरत नहीं और मैं दास के बिना नहीं जी सकता? तो मैं दासानुदास हो गया। नहीं, अब यह भूल मैं न करूंगा। अच्छा हुआ, कि वह भाग गया। अब वह आए भी, तो उसे हाथ जोड़ लूंगा।

यह आदमी मुक्ति की तरफ एक कदम रख रहा है। इसका कल भी तो इसी से निकलेगा।तब उसके पास सिर्फ एक भिक्षापात्र बचा। एक दिन उसने देखा एक कुत्ते को पानी पीते झरने पर, तो उसने सोचा यह कुत्ता तो मुझसे ज्यादा मुक्त है। यह भिक्षापात्र तो मुझे ढोना पड़ता है और अगर कुत्ता बिना भिक्षापात्र के रह लेता है, तो मैं आदमी होकर न रह सकूं? कुत्ते से गई बीती दशा हो गई। उसने भिक्षापात्र वहीं छोड़ दिया। वह हाथ से ही पानी पीने लगा। वह हाथ में ही भिक्षा लेने लगा। मुक्ति से दूसरा क्षण निकल आया। दृष्टि!

सिकंदर जब भारत आ रहा था, तो इस फकीर को मिला था। तो उस फकीर ने सिकंदर को कहा था, तू व्यर्थ परेशान मत हो। तू किसलिए दुनिया जीतना चाहता है? 

सिकंदर ने कहा, ताकि मैं आनंद से विश्राम कर सकूं। डायोजनीज हंसने लगा जोर से। वह पहाड़, नदी उसकी हंसी से गूंज उठी होगी। सिकंदर थोड़ा हतप्रभ हुआ। उसने कहा, मैं समझा नहीं; इसमें हंसने की क्या बात है?
डायोजनीज ने कहा, कि हंसने की बात है। मुझे देखो, बिना दुनिया को जीते मैं आराम कर रहा हूं, तो तुम दुनिया को जीतकर आराम करोगे यह मेरी समझ में नहीं आता। अगर आराम ही करना है, तो अभी क्या बिगड़ा है? यह नदी काफी बड़ी है और रेत का घाट बहुत बड़ा है। इस में मेरे लिए भी जगह है, तुम्हारे लिए भी जगह है। सारी दुनिया भी आ जाए, तो विश्राम कर सकती है। तुम लेट जाओ। सुबह कितनी सुंदर है! कहां जाते हो?

डायोजनीज लेटा था नग्न, सुबह धूप ले रहा था। कहते हैं, सिकंदरर् ईष्या से भर गया था डायोजनीज की स्वतंत्रता को देखकर। सिकंदरर् ईष्या से भर जाए, सोचने जैसा है। और सिकंदर ने कहा था, अगर परमात्मा से दुबारा मुझे जन्म लेने का मौका मिला तो मैं कहूंगा इस बार मुझे सिकंदर मत बना, डायोजनीज बना दे। लेकिन अभी तो जाना होगा। अभी तो यात्रा अधूरी है, संसार जीतने को पड़ा है।

लेकिन तुम्हारी बात याद रखूंगा। डायोजनीज, तुम्हें भूलूंगा नहीं। तुम्हारे लिए कुछ करना हो, तो मुझे कहो। तुम जो कहोगे करवा दूंगा। मैं खुश हूं।

डायोजनीज ने कहा, ज्यादा से ज्यादा तुम इतना कर सकते हो, कि थोड़ा धूप छोड़कर खड़े हो जाओ। और न कुछ चाहिए, न कोई जरूरत है। सुबह सर्द है और मैं धूप का मजा ले रहा हूं। तुम नाहक बीच में खड़े हो।और इतना तुमसे कहे देता हूं, कि कोई भी संसार को लौटकर कभी विश्राम नहीं कर पाया। जिसने भी विश्राम किया है, उसने इसी क्षण शुरू किया है। क्योंकि हर क्षण इस क्षण से पैदा होता है।

तुम कहते हो, कल करेंगे। आज तुम कुछ तो करोगे? तुम जो करोगे, उससे तुम्हारा कल पैदा होगा। तुम कहते हो, आज तो दूकान कर लेने दो, फिर कल पूजा कर लेंगे। लेकिन कल आएगा कहां से? आज की दुकानदारी से ही आएगा। फिर पूजा कैसे पैदा होगी? उससे दुकानदारी ही पैदा होगी।

एक दिन और बीत गया निद्रा में, निद्रा और मजबूत हो गई।

🐬🐬🐬🐬पीव पीव लागी प्यास🐬🐬🐬🐬

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