प्रेम को छिपाना
इसीलिए तो मुश्किल है।
तुम सब छिपा लो,
प्रेम को तुम नहीं छिपा सकते।
अगर तुम्हें किसी से प्रेम हो गया,
तो वह प्रगट होगा ही। उसको
बचाने का कोई भी उपाय नहीं।
क्योंकि तुम चलोगे और ढंग से,
उठोगे और ढंग से,
तुम्हारी आंखें उसकी खबर देंगी।
तुम्हारा रोआं-रोआं उसकी खबर देगा।
क्योंकि प्रेम एक स्मरण है।
साधारण जीवन में भी अगर
तुम्हारा प्रेमी तुम्हें स्वीकार कर
ले तो तुम इतनी पुलक से भर जाते हो;
तुम जरा हिसाब लगाओ,
पूरा अस्तित्व तुम्हें स्वीकार कर
ले तब तुम्हारी पुलक कैसी होगी?
पूरा अस्तित्व तुम्हें प्रेम करे,
हृदय से लगा ले,
आलिंगन घटित हो,
तुम पूरे अस्तित्व के
साथ प्रेम में बंध जाओ…।
यही तो मीरा कह रही है
कि कब कृष्ण तुम मेरी
शय्या पर आओगे?
ये प्रतीक प्रेमी के हैं।
मीरा कह रही है,
मैंने सेज-शय्या को
संवार कर रखा है।
फूलों से तुम्हारी
सेज बनाई है।
कब तुम आओगे?
कब तुम मुझे स्वीकार करोगे?
भक्त भगवान के लिए ऐसा ही प्यासा है,
प्रेयसी जैसे प्रेमी के लिए, जैसे चकोर
स्वाति की बूंद के लिए। प्यासा है,
पुकार रहा है, फिर एक बूंद भी
तृप्ति बन जाती है। एक बूंद
भी मोती बन जाती है।
और जब उतनी पुकार और
प्यास से कोई जीता है,
तो साधारण पानी मोती हो जाता है।
अगर उतनी ही पुकार और प्यास हो,
तो गुरु की एक सिखावन माणिक बन जाएगी।
एक बूंद काफी है। एक बूंद सागर हो जाएगी।
और जिसने गुरु की सिखावन समझ ली…
सिखावन ही क्या है? छोटा सा सूत्र है।
समझ लो तो बहुत छोटा है। न समझो,
तो अनंत जन्म बीत जाते हैं।
छोटा सा सूत्र है, नानक कहते हैं,
गुरा इक देहि बुझाई,
सारी प्यास बुझा देता है एक गुर।
सभना जीआ का इकु दाता,
सो मैं बिसरि न जाई।।
बस, उसको भर मैं विस्मरण न करूं।
एक छोटा सा गुर सारी प्यास बुझा देता है।
सारी तृष्णा मिटा देता है।
सारी चाह खो जाती है।
नानक कहते हैं,
‘वह गुणहीनों को गुणवान बना देता है।
गुणी बना देता है।’
एक ओंकार सतनाम (गुरू नानक) प्रवचन–4
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