ओशो : रहस्य पथ
मैं किसी संत, महापुरुष पर क्या लिख सकता हूँ... जो लोग स्वयंसिद्ध थे, उनके लिए कोई शब्द लिखा भी नहीं जा सकता हे... तो अनंत से अनंत तक विस्तृत हे.... पर एक प्रश्न था, जिसका उत्तर देने का प्रयास रहा.... ओशो ने सारी मिथ्या गणनाओ को तोड़, मर्यादाओ का उल्लंघन कर एक सत्य प्रकाशित किया, जो आधुनिक युग मे सबसे उत्तम जान पड़ता हे... पर ये अर्थ नहीं की.... नानक, मीरा, कबीर, महावीर, बुद्ध, या मुहम्मद, ईसा की राह सही नहीं थी.... हर एक अपनी राह लिए था... ओर भविष्य मे कोई ओशो को भी कोई नकार दे, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी... जैसा तुम आज ओशो के लिए समर्पित हो... वैसा ही कभी बुद्ध के लिए या महावीर के लिए कोई समर्पित था... मानव उत्पति के विभिन्न चरणों मे अपनी हृदयगत वेदना के लिए कितने ही सौपानों मे अभिव्यक्ति हुई... कहीं मंदिर बने....मस्जिद बनी, गिरजे बने....बस केवल एक अवयव के रूप मे ही इनका औचित्य रहा... पहलू था, यात्रा का जिसे तो भुला दिया गया... ओर केवल रह गए... मंदिर, मस्जिद, गिरजे...मठ... बस मानव आस्तीत्व के खंडहर रूप मे... जो मूल था... वो था... मन , वचन ओर कर्म शुद्धि.... जिसके लिए... दुर्गम स्थानो पर मंदिरो की स्थापना की गई, मक्का की पदयात्रा का आयोजन हुआ.... बुद्ध ने इन यात्राओ से मुक्त कर... यम नियम , दिखाये.... तो महावीर ने... इस शुद्धि प्रयोजन के लिए शील व्रत,... पर उद्देश्य एक ही था... परम से साक्षात्कार....... राह भिन्न थी, पर... मंजिल एक ही तय थी....ओशो ने तुम्हें सीधे ही... परमात्मा का निर्मल जल से भरा कुआ दिखाया, पर वहाँ तक जाने की एक राह तय नहीं की.... तुम पर ही छोड़ दिया, जो चाहो राह चुन लो...तुम उस कुए तक पहुँच जाओगे ओर अपनी प्यास तृप्त कर लोगे.... पर बिना मन वाचा कर्मणा, शुद्धि के कैसे पहुँच पाओगे... उस कुए तक... ओर पहुँच भी गए तो... निर्मल जल कहा मिलेगा... जिसकी तुम्हें प्यास हे... , तुम्हारी उछल कूद तुम्हें कहाँ ले जाएगी...कहीं नहीं...तुम जहां हो वही ठहरे हो, कोई गति ही नहीं हुई तुम्हारी.... एक कदम भी नहीं बढ़े तुम उस कुए की ओर... बस, कुआ-कुआ चिल्लाये ही जा रहे हो.... ओर क्या ओशो इतने अज्ञानी थे की तुम्हें सीधे शब्दो मे...वहाँ का रास्ता बता देंगे......नहीं, उन्होने रहस्य ही रखा इस कुए का पता, ओर उन्होने तुमने ये सिखाया की पहुचना कैसे हे... पर तुम उलझ गए...बाहर से ही, शब्दो मे ही.... ओर कुए मे छलांग भी लगाई होगी तो... खोपड़ी ही टूटी होगी...क्योंकि वहाँ वो परम नीर न मिला होगा....ओर कुआ सूखा ही रहा होगा.................
ओशो का ये रहस्यमय पथ... की उन्होने कभी ये नहीं सिखाया की कैसे चलना हे...तुम जो चाहो चुन लो.... क्या ये अपने आप मे एक रहस्य नहीं हे... ?
सच मे ...... एक रहस्य॥
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