Nirbharta to dasta hai

• निर्भरता तो दासता ही है •
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किस कदर सीधा सहल साफ है यह रस्ता देखो
न किसी शाख का साया है , न दीवार की टेक
न किसी आंख की आहट , न किसी चेहरे का शोर
न कोई दाग जहां बैठ के सुस्ताए कोई 
दूर तक कोई नहीं , कोई नहीं , कोई नहीं 
चंद कदमों के निशां , हां , कभी मिलते हैं कहीं 
साथ चलते हैं जो कुछ दूर फकत चंद कदम 
और फिर टूट के गिरते हैं यह कहते हुए 
अपनी तनहाई लिए आप चलो , तन्हा , अकेले 
साथ आए जो यहां कोई नहीं , कोई नहीं 
किस कदर सीधा सहल साफ है यह रस्ता देखो 

अच्छा है कि तुम्हें परमात्मा तक अकेले ही पहुंचने की
संभावना है । नहीं तो किसी पर निर्भर होना पड़ता ।
और निर्भरता से कभी कोई मुक्ति नहीं आती ।
निर्भरता तो गुलामी का ही एक अच्छा नाम है ।
निर्भरता तो दासता ही है ।
वह दासता की ही दास्तान है  - नए ढंग से लिखी गयी ;
नए लफ्जों में , नए शब्दों में , नए रूप-रंग से ;
लेकिन बात वही है ।

इसलिए कोई सदगुरु तुम्हें गुलाम नहीं बनाता ।
और जो गुलाम बना ले , वहां से भाग जाना ।
वहां क्षणभर मत रुकना । वहां रुकना खतरनाक है ।
जो तुम्हें कहे कि मेरे बिना तुम्हारा कुछ भी नहीं होगा ;
जो कहे कि मेरे बिना तुम कभी भी नहीं पहुंच सकोगे ;
जो कहे : मेरे पीछे ही चलते रहना ,
तो ही परमात्मा मिलेगा , नहीं तो चूक जाओगे ---
ऐसा जो कोई कहता हो , उससे बचना ।
उसे स्वयं भी अभी नहीं मिला है ।
क्योंकि यदि उसे स्वयं मिला होता , तो एक उसे साफ हो
गयी होती कि परमात्मा जब मिलता है ,
एकांत में मिलता है ; वहां कोई नहीं होता ; 
कोई दूसरा नहीं होता ।
उसे परमात्मा तो मिला ही नहीं है ;
उसने लोगों के शोषण करने का नया ढंग , नयी तरकीब 
ईजाद कर ली है । उसने एक जाल ईजाद कर लिया है ,
जिसमें दूसरों की गरदनें फंस जाएंगी ।

ऐसा आदमी धार्मिक नहीं है , राजनैतिक है ।
ऐसा आदमी गुरु नहीं है , नेता है ।
ऐसा आदमी भीड़-भाड़ को अपने पीछे खडा़ करके
अहंकार का रस लेना चाहता है ।
इस आदमी से सावधान रहना ।
इस आदमी से दूर-दूर रहना ।
इस आदमी के पास मत आना ।

जो तुमसे कहे कि मेरे बिना परमात्मा नहीं मिलेगा ,
वह महान से महान असत्य बोल रहा है ।
क्योंकि परमात्मा उतना ही तुम्हारा है , जितना उसका ।
हां , यह हो सकता है कि तुम जरा लड़खड़ाते हो ।
वह कम लड़खड़ाता है । या उसकी लड़खड़ाहट मिट
गयी है और वह तुम्हें चलने का ढंग , शैली सिखा सकता
है । हां , यह हो सकता है कि उसे तैरना आ गया
और तुम उसे देखकर तैरना सीख ले सकते हो ।
लेकिन उसके कंधों का सहारा मत लेना ,
अन्यथा दूसरा किनारा कभी न आएगा ।
उसके कंधों पर निर्भर मत हो जाना ,
नहीं तो वही तुम्हारी बर्बादी का कारण होगा ।
इसी तरह तो यह देश बरबाद हुआ ।
यहां मिथ्या गुरुओं ने लोगों को गुलाम बना लिया ।
इस मुल्क को गुलामी की आदत पड़ गयी ।
इस मुल्क को निर्भर रहने की आदत पड़ गयी ।

यह जो हजार साल इस देश में गुलामी आयी ,
इसके पीछे और कोई कारण नहीं है ।
इसके पीछे न तो मुसलमान हैं , न मुगल हैं ,
न तुर्क हैं , न हूण हैं , न अंग्रेज हैं ।
इसके पीछे तुम्हारे मिथ्या गुरुओं का जाल है ।

मिथ्या गुरुओं ने तुम्हें सदियों से 
यह सिखाया है : निर्भर होना 
उन्होंने इतना निर्भर होना सिखा दिया कि 
जब कोई राजनैतिक रूप से भी
तुम्हारी छाती पर सवार हो गया , 
तुम उसी पर निर्भर हो गए ।
तुम जी-हुजूर उसी को कहने लगे
तुम उसी के सामने सिर 
झुकाकर खडे़ हो गए ।
तुम्हें आजादी का रस ही नहीं लगा ;
स्वाद ही नहीं लगा ।

अगर कोई मुझसे पूछे ,
तो तुम्हारी गुलामी की कहानी के पीछे
तुम्हारे गुरुओं का हाथ है ।
उन्होंने तुम्हें मुक्ति नहीं सिखायी ,
स्वतंत्रता नहीं सिखायी ।

काश ! बुद्ध जैसे गुरुओं की तुमने सुनी होती ,
तो इस देश में गुलामी का कोई कारण नहीं था ।
काश ! तुमने व्यक्तित्व सीखा होता , निजता सीखी होती ;
काश ! तुमने यह सीखा होता कि मुझे मुझी होना है ;
मुझे किसी दूसरे की प्रतिलिपि नहीं होना है ;
और मुझे अपना दीया खुद बनना है ,
तो तुम बाहर के जगत में भी पैर जमाकर खडे़ होते ।
यह अपमानजनक बात न घटती कि चालीस करोड़ का
मुल्क ( प्रवचनसमयानुसार ) मुट्ठीभर लोगों का गुलाम हो 
जाए ! कोई भी आ जाए और यह मुल्क गुलाम हो जाए !

जरूर इस मुल्क की आत्मा में गुलामी की गहरी छाप
पड़ गयी । किसने डाली यह छाप ?
किसने यह जहर तुम्हारे खून में घोला ?
किसने विषाक्त की तुम्हारी आत्मा ?
किसने तुम्हें अंधेरे में रहने के लिए विधियां सिखायीं ?
तुम्हारे तथाकथित गुरुओं ने । वे गुरु नहीं थे ।

गुरु तो बुद्ध जैसे ही व्यक्ति होते होते हैं ,
जो कहते हैं , अप्प दीपो भव !

• ओशो √
एस धम्मो सनंतनो १२
१२० प्रवचन अप्प दीपो भव ! से संकलन ।

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