Osho Hindi Audio Discourses - Swayam Ki Satta

स्वयं की सत्ता  - ओशो 

"व्यक्ति बनें, तो ही आप सत्य को जान सकेंगे। और व्यक्ति बनने की पहली आधारशिला यहीं से शुरू होती है कि हम यह जानें कि असंदिग्ध रूप से जो सत्य मेरे निकटतम है, वह मैं हूं। कोई दूसरा मेरे लिए उतना सत्य नहीं है, जितना मैं हूं। कोई दूसरा किसी के लिए सत्य नहीं है--उसकी स्वयं की सत्ता। और वहां प्रवेश करना है। और वहां पहुंचना है। और इसके लिए जरूरी है कि ये जो भीड़ के संगठन हैं, ये जो भीड़ के चारों तरफ आयोजन हैं, उनसे थोड़ा अपने को बचाएं और स्वयं में प्रवेश करें। थोड़ा एकांत खोजें, अकेलापन खोजें, थोड़ी देर अपने साथ रहें।" ओशो


जीवन में जो भी पाने जैसा है वह नहीं पाया जा सकेगा अगर उस छोटी सी बात पर हमारा ध्यान न जाए। इस जमीन पर बहुत से आश्चर्य हैं, लेकिन उस छोटी सी बात से बड़ा और कोई आश्चर्य नहीं है। और वह छोटी सी बात यह है कि हम अपने को अस्वीकार किए हुए खड़े हैं। हममें से बहुत कम लोग हैं जिन्होंने अपने को स्वीकार किया हो, जिन्होंने माना हो कि वे हैं। मैं हूं, यह बोध हमारा खो गया है। हम जीते हैं, हम काम करते हैं, हम उठते हैं, चलते हैं और मर जाते हैं।लेकिन होने का, एक्झिस्टेंस का, अपनी सत्ता का, अपनी आत्मा का, अपने प्राणों का कोई अनुभव नहीं हो पाता। यह अनुभव होगा भी नहीं। क्योंकि अनुभव की शुरुआत जिस द्वार से हो सकती थी, वह यह है कि हम यह स्वीकार करते, हम किसी तल पर यह अनुभव करते कि मेरा होना है। मेरी कोई सत्ता है। मैं हूं। हम कहेंगे... मेरी बात को सुन कर आप कहेंगे: हम तो अस्वीकार नहीं किए हुए हैं। हमें तो अनुभव होता है कि हम हैं।

लेकिन कभी आपने खयाल किया है कि यह अनुभव आपके होने का है या आपके आस-पास जो चीजें हैं उनके होने का है? एक आदमी छोटे पद पर होता है, बड़े पद पर चला जाता है, तो उसे अनुभव होता है कि मैं हूं। उसे अनुभव होता है कि मैं कुछ हूं। यह ‘कुछ होना’ उसकी सत्ता का अनुभव है या उसके बड़े पद का? एक आदमी के पास बहुत धन होता है, तो उसे अनुभव होता है कि मैं हूं। यह अनुभव उसकी सत्ता का है या उसकी संपत्ति का? अगर हम स्मरण करेंगे, तो हमें ज्ञात होगा कि हमें अपने होने का कोई अनुभव नहीं होता। कुछ और चीजों के अनुभव होते हैं, और उनको ही हम मान लेते हैं कि हमारे होने का अनुभव है। अगर आपसे आपकी सारी संपत्ति छीन ली जाए, आपके वंश का गौरव छीन लिया जाए, आपका धर्म छीन लिया जाए, आपके वस्त्र छीन लिए जाएं, आपकी उपाधियां छीन ली जाएं, जो ज्ञान आपको सिखाया गया है वह छीन लिया जाए, प्रशंसा और निंदा जो आपको मिली है वह छीन ली जाए, तो आपके पास क्या बच रहेगा? जो दूसरों ने दिया है, अगर वह छीन लिया जाए, तो फिर आपके पास क्या बच रहेगा? आप एकदम खाली हो जाएंगे और लगेगा कि मर गए। आपके पास अपनी सत्ता का कोई अनुभव नहीं है। और जिसे हम कहते हैं: मेरा होना, मुझे लगता है कि मैं हूं--यह होना मेरा नहीं है, बल्कि और लोगों ने मुझे जो दिया है, उसका ही संग्रह है। स्वयं का यह अनुभव नहीं है, बल्कि आस-पास से आई हुई प्रतिध्वनियों का संग्रह है। कोई मुझे आदर देता है, कोई सम्मान देता है, कोई निंदा करता है, कोई बड़े पद पर बिठाता है; इस सारी बातों को मैंने इकट्ठा कर लिया है, और इसी के संग्रह को मैं समझता हूं कि मैं हूं। यह मेरा होना नहीं है, यह मेरा बीइंग नहीं है, यह मेरा प्राण, यह मेरी आत्मा नहीं है। लेकिन हम इसी को अपना होना समझे हुए हैं। -ओशो
Swayam Ki Satta Osho


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