Osho In America

ओशो संन्यासियों को हरदम यही चिंता सताती रहती थी कि कहीं ओशो पर कोई प्राणघातक हमला नहीं कर दें, क्योंकि उन पर दो बार हमले हो चुके थे। लेकिन आखिरकार ओशो रजनीश को अमेरिका ने नाटकीय ढंग से गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। जेल में ही उन्हें थैलियम जहर का एक इंजेक्शन लगाकर छोड़ दिया। इस इंजेक्शन से ओशो तीन दिन तक कोमा में रहे।
तीन दिन बाद उन्हें अमेरिका से देश निकाला दे दिया। देश निकाले के बाद वे बहुत से देश में भटकते रहे, लेकिन किसी भी देश ने उन्हें शरण नहीं दी। खुद भारत ने भी अमेरिकी विरोध के चलते हाथ खड़े कर दिए थे।
यह बात सार्वजनिक थी कि उन्हें अस्थमा था तब भी जहर दिए जाने के पहले तक 53 साल की उम्र में ओशो रजनीश के पास लंबी दूर तक दौड़ने और तैरने का दम-खम था। इससे पहले 20 वर्षों से भी अधिक समय तक वे रोज प्रवचन देते थे। ‍‍1981 के बाद फिर वे साढ़े 3 वर्षों तक मौन में रहे, तब भी वे तेज गति से कार चलाते थे।
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अक्टूबर 1985 को ओशो रजनीश अमेरिकी फेडरल मार्शलों द्वारा शारलट, नॉर्थ केरोलाइन में गिरफ्तार किए गए। अटर्नी जनरल सू एपलटन अनुसार गिरफ्‍तारी का कोई वारंट नहीं था फिर भी उनको जबरन हाथ-पैरों में हथकड़ियां डालकर जेल में डाल दिया गया। अमेरिकी इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ था। उन्हें किसी खूंखार अपराधियों की तरह गले, हाथ और पैरों में हथकड़ियां पहनाकर ले जाया गया जबकि उन पर आव्रजन कानून के उल्लंघन के मामूली आरोप लगाए गए थे।
अमेरिकी सरकार ने एक जज से कहा कि उन्हें तब तक सरकारी हिरासत में रखा जाए जब तक ‍कि वे पोर्टलैंड न पहुंच जाए। पोर्टलैंड में उन्हें 'अप्रवास नियमोल्लंघन' का सामना करना था। अमेरिकी सरकार की योजना के तहत सरकारी वकील ने यह भ्रम फैलाने का कार्य किया कि उनके संन्यासी उन्हें जहर देने का प्रयास कर रहे हैं या हो सकता है कि वे खुद आत्महत्या कर लें।'
सात दिनों तक शारलट में मार्शलों की हिरासत में रहने के बाद रजनीश को सोमवार, 4 नवंबर 1985 को पोर्टलैंड की संघीय जेल में ले जाने के लिए विमान में मार्शलों के साथ बिठाया गया, जहां वे गुरुवार 7 नवंबर को शाम को पहुंचे जबकि शारलट से पोर्टलैंड की दूरी केवल 5 घंटे की है। सवाल उठता है कि 3 दिन बीच में वह विमान कहां रहा?
सू एपलटन के अनुसार ओशो कहते हैं कि इन तीन दिनों का मुझे कुछ पता नहीं। तीन दिन रजनीश को पूरी दुनिया से अमेरिकी सरकार ने लापता कर दिया था। अमेरिकी सरकार ने ओशो के वकीलों को यह बताने से इंकार कर दिया कि वे कहां थे।
बाद में यह पता चला कि पहली रात यानी नवंबर को ओशो को ओक्लोहॉमा की काउंटी जेल में रखा गया, लेकिन जेल के शेरिफ ने इससे इंकार किया। लेकिन जेल के रिकॉर्ड अनुसार रजनीशपुरम का एक 'डेविड वाशिंगटन' नाम का व्यक्ति 4 नवंबर को वहां रहा था, यानी रजनीश को नाम बदलकर वहां रखा गया था!
मार्शलों ने रजनीश के साथ उसके बाद की दो रातें ओक्लोहॉमा सिटी के बाहर फेडरल पेनिटेंशियरी में बिताईं। नवंबर 7 की सुबह उनके वकील ने उन्हें खोज निकाला। यदि उनके वकील उन्हें नहीं ढूंढ निकालते तो संभवत: उन्हें और कुछ दिन ओक्लोहॉमा में इसी तरह कोमा में रखा जाता।
सू एपलटन के अनुसार 7 नवंबर के बाद पूरे दिन ओशो रजनीश को मितली आने, चक्कर आने, सिरदर्द रहने और भोजन के प्रति अरुचि की शिकायत रही। उनका वजन गिरफ्तारी से पहले 150 पौंड था, वह गिरकर 140 पौंड रह गया था। वे पोर्टलैंड की जेल से 8 नवंबर को रिहा किए गए।
अगले पूरे दिन वे उनके निजी चिकित्सक की देखभाल में रहे और उनकी अच्छे से जांच की गई जिसमें उन्हें इन तीन दिनों में थैलियम नामक धीमा जहर दिए जाने की पुष्टि हुई। यह जहर ऐसा था जिससे व्यक्ति की 6 माह में मृत्यु हो जाती है। इस जहर के असर के रूप में धीरे-धीरे व्यक्ति का शारीरिक क्षरण होता जाता है।
अमेरिका की रोनाल्ड रीगन सरकार द्वारा उन्हें जहर दिए जाने की घटना के बाद ही ओशो रजनीश के तेजी से बाल झड़ने लगे। आंखें कमजोर हो गईं। अस्थमा के अटैक बढ़ गए। रीढ़ की उनकी पुरानी तकलीफ फिर से उभर गई।
लगातार सेहत में गिरावट के बावजूद थैलियम से उपजी बीमारियों को उन्होंने सुंदर ढंग से वश में कर रखा था और बहुत तेजी से वे अपने बचे हुए कार्यों को निपटाने लगे थे। अंतत: वे जहर से हार गए और 19 जनवरी 1990 में उन्होंने देह छोड़ दी। यदि ओशो को जहर नहीं दिया जाता तो वे आज भी आपके और हमारे बीच होते और तब देश का वर्तमान कुछ और होता।

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