Ram Bina Fika, Sab Kiriya Sastar Gyan

राम बिना फीका, सब किरिया सास्तर ग्यान।
दरिया कहते हैं: तुम किन के पास भटक रहे हो? राम जिन्हें मिला नहीं, राम जो अभी हो नहीं गए, राम जिनके भीतर अभी जगा नहीं...राम बिना फीका लगै! पंडित—पुरोहित, उनकी जरा आंखों में झांको। उनके जरा हृदय में टटोलो। अक्सर तो तुम उन्हें अपने से भी ज्यादा अंधकार में पड़ा हुआ पाओगे।
सब किरिया सास्तर ग्यान...जरूर क्रियाकांड वे जानते हैं और शास्त्र भी बहुत उनके पास हैं और शास्त्रों से सीखा हुआ तोतों जैसा ज्ञान भी उनके पास बहुत है। मगर उसका कोई मूल्य नहीं है। उनके जीवन पर उसकी कोई छाप नहीं है।
मैं मुल्ला नसरुद्दीन के गांव गया था। मुल्ला मुझे नगर का दर्शन कराने ले गया। विश्वविद्यालय की भव्य इमारत को देखकर मैंने मुल्ला से कहा: नसरुद्दीन, क्या यही विश्वविद्यालय है? सुंदर है, भव्य है!
हऔ—मुल्ला ने उत्तर दिया। फिर गांधी मैदान आया, विशाल मैदान! मैंने कहा: यही है गांधी मैदान? मुल्ला ने कहा हऔ! हर बात के उत्तर में हऔ शब्द सुनकर मैंने पूछा: यह हऔ क्या होता है?
हऔ—मुल्ला ने कहा—यहां का आंचलिक शब्द है। बिना पढ़े—लिखे लोग हां को हऔ बोलते हैं।
तो मैंने कहा: लेकिन नसरुद्दीन, तुम तो पढ़े—लिखे हो।
उसने कहा: हऔ!
पढ़े—लिखे होने से क्या होगा? शास्त्र ऊपर ही ऊपर रह जाते हैं; तुम्हारे अंतर को नहीं छू पाते। क्रियाकांड जड़ होते हैं। तुम रोज दोहरा लो गायत्री, मगर तोतों जैसी होती है।
एक—लिखे होने से क्या होगा? शास्त्र ऊपर ही ऊपर रह जाते हैं; तुम्हारे अंतर को नहीं छू पाते। क्रियाकांड जड़ जाते हैं। तुम रोज दोहरा लो गायत्री, मगर तोतों जैसी होती है।
एक नव—रईस ने, नए—नए हुए रईस ने, अपने मेहमानों का स्वागत करने के लिए अपने नौकर मुल्ला नसरुद्दीन को सिखाया कि वे जब भी कोई चीज मंगाएं तो वह पहले पूछ ले कि किस किस्म की चीज लाए। जैसे अगर वे कहें कि पान लाओ तो नौकर को तुरंत मेहमानों के सामने पूछना चाहिए: हुजूर, कौन सा पान? मगही या बनारसी? महोबा या कपूरी? ताकि रोब बंध जाए मेहमान पर कि कोई साधारण रईस नहीं है; सब तरह के पान उपलब्ध हैं घर में।
एक दिन मेहमानों के लिए उन्होंने शरबत मंगाया, तो हुक्म के मुताबिक मुल्ला नसरुद्दीन ने तुरंत लिस्ट दोहराई: कौन सा शरबत लाऊं हुजूर? खस का या अनार का? केवड़े का या बादाम का?
शरबत पी कर जब मेहमान विदा लेने लगे तो सौजन्यवश बोले: आप के पिताजी के दर्शन किए बहुत दिन हो गए हैं,क्या हम उन के दर्शन कर सकते हैं? नव रईस ने मुल्ला से कहा: जा मुल्ला पिताजी को बुला ला। आज्ञाकारी नसरुद्दीन तुरंत बोला: कौन से पिताजी? इंग्लैंड वाले या फ्रांस वाले या अमरीका वाले?
क्रियाकांड में उलझा हुआ आदमी इससे ज्यादा ऊपर नहीं उठ पाता—सब थोथा—थोथा! समझ नहीं होती, क्या कर रहा है। जैसा बताया है वैसा कर रहा है। कितनी आरती उतारनी, उतनी आरती उतार देता है। कितने चक्कर लगाने मूर्ति के, उतने चक्कर लगा लेता है। कितने फूल चढ़ाने, उतने फूल चढ़ा देता है। कितने मंत्र जपने, उतने मंत्र जप लेता है। कितनी माला फेरनी,उतनी माला फेर देता है। लेकिन हृदय का कहीं भी संस्पर्श नहीं है। और न कहीं कोई बांध है।
राम बिना फीका लगै! दरिया ठीक कहते हैं: जब तक भीतर का राम न जगे या किसी जागे हुए राम के साथ संग—साथ न हो जाए तब तक सब फीका है।
सब किरिया सास्तर ग्यान...!
दरिया दीपक कह करै, उदय भया निज भान।।
और जब अपने भीतर ही सूरज उग आता है तो फिर बाहर के दीयों की कोई जरूरत नहीं रह जाती। न शास्त्र की जरूरत रह जाती है, न क्रियाकांडों की जरूरत रह जाती है। जब अपना ही बोध हो जाता है तो फिर आवश्यक नहीं होता कि हम दूसरों के उधार बोध को ढोते फिरें।
दरिया दीपक कह करै, उदय भया निज भान।
दरिया कहता है: अब तो कोई जरूरत नहीं है। अब उपनिषद कुछ कहते हों तो कहते रहें; ठीक ही कहते हैं। कुरान कुछ कहती हो तो कहती रहे; ठीक ही कहती है। अपना ही कुरान जग गया। अपने ही भीतर आयतें खिलन लगीं। अपने भीतर ही उपनिषद पैदा होने लगे। सदगुरु सिद्धांत नहीं देता; सदगुरु जागरण देता है। सदगुरु शास्त्र नहीं देता; स्वबोध देता है। सदगुरु क्रियाकांड नहीं देता; स्वानुभूति देता है, समाधि देता है।
दरिया नरत्तन पायकर, कीया चाहै काज।
राव रंक दोनों तरैं, जो बैठें नाम—जहाज।।
दरिया कहते हैं: जिंदगी मिली है तो कुछ कर लो। असली काम कर लो! कीया चाही चाहै काज! ऐसे ही व्यर्थ के कामों में मत उलझे रहना। कोई धन इकट्ठा कर रहा है, कोई बड़े पद पर चढ़ा जा रहा है। सब व्यर्थ हो जाएगा। मौत आती ही होगी। मौत आएगी सब पानी फेर देगी तुम्हारे किए पर। जिस काम पर मौत पानी फेर दे, उसको असली काज मत समझना।
दरिया नरत्तन पायकर, कीया चाहै काज।
यह मनुष्य का अदभुत जीवन मिला है। असली काम कर लो। असली काम क्या है? राव रंक दोनों तरैं, जो बैठैं नाम—जहाज। प्रभु का स्मरण कर लो। प्रभु के स्मरण की नाव पर सवार हो जाओ। इसके पहले कि मौत तुम्हें ले जाए, प्रभु की नाव पर सवार हो जाओ।
मुसलमान हिंदू कहा, षट दरसन रंक राव।
जन दरिया हरिनाम बिन, सब पर जम का दाव।।
और खयाल रखना, मौत फिकिर नहीं करती कि तुम हिंदू हो कि मुसलमान कि ईसाई कि जैन। और मौत फिकिर नहीं करती कि करीब हो कि अमीर। और मौत फिकिर नहीं करती कि चपरासी हो कि राष्ट्रपति। कोई फर्क नहीं पड़ता।
मुसलमान हिंदू कहा, षट दरसन रंक राव।
इससे भी फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हें छहों दर्शन कंठस्थ हैं, कि तुम चारों वेद के पाठी हो, कि तुम पुरी कुरान स्मृति से दोहरा सकते हो। मौत इन सब बातों की चिंता नहीं करेगी।
जन दरिया हरिनाम बिन...सिर्फ एक चीज पर मौत का वश नहीं चलता—वह है राम का तुम्हारे भीतर जग जाना, राम की सुरति पैदा हो जाना। अन्यथा सब पर जम का दाव! सब पर मौत का कब्जा है। सिर्फ राम अमृत है, बाकी सब मरणधर्मा हैं।
और कितना ही धन मिल जाए, कहां होती पूरी वासना! लगता है और कितना ही पद हो, सीढ़िया पर आगे और सोपान होते हैं। और कहीं भी पहुंच जाओ, दौड़ जारी रहती है, आपाधापी मिटती नहीं।

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