"आध्यात्म और विज्ञान"
आत्मा को वैज्ञानिक कभी भी न पकड़ पाएंगे और जिस दिन पकड़ लेंगे, उस दिन आप समझिए कि आत्मा नहीं है। इसलिए विज्ञान से आशा मत रखिए कि वह कभी आत्मा को पकड़ पायेगा ।
विज्ञान के पकड़ने का ढंग ऐसा है कि वह सिर्फ पदार्थ को ही पकड़ सकता है।
वह विज्ञान की जो पकड़ने की व्यवस्था है, वह जो मेथडॉलाजी है, उसकी जो विधि है, वह पदार्थ को ही पकड़ सकती है, वह आत्मा को नहीं पकड़ सकती।
पदार्थ वह है, जिसे हम विषय की तरह, ऑब्जेक्ट की तरह देख सकते हैं और
आत्मा वह है, जो देखती है। विज्ञान देखने वाले को कभी नहीं पकड़ सकता; जो भी पकड़ेगा, वह दृश्य होगा।
जो भी पकड़ में आ जाएगा, वह देखने वाला नहीं है, वह जो दिखाई पड़ रहा है, वही है।
द्रष्टा विज्ञान की पकड़ में नहीं आएगा।
आध्यात्म और विज्ञान का यही फासला है।
अगर विज्ञान आत्मा को पकड़ ले, तो आध्यात्म की फिर कोई भी जरूरत नहीं है।
और अगर आध्यात्म पदार्थ को पकड़ ले, तो विज्ञान की फिर कोई भी जरूरत नहीं है।
हालांकि दोनों तरह के मानने वाले पागल हैं।
कुछ पागल हैं, जो समझते हैं, आध्यात्म काफी है, विज्ञान की कोई जरूरत नहीं है।
वे उतने ही गलत हैं, जितने कि कुछ वैज्ञानिक समझते हैं कि विज्ञान काफी है और आध्यात्म की कोई जरूरत नहीं है।
विज्ञान पदार्थ की पकड़ है, पदार्थ की खोज है।
आध्यात्म आत्मा की खोज है, अपदार्थ की, नॉनमैटर की खोज है।
ये दोनों खोज अलग हैं।
इन दोनों खोज के आयाम अलग हैं।
इन दोनों खोज की विधियां अलग हैं।
अगर विज्ञान की खोज करनी है, तो प्रयोगशाला में जाओ।
और अगर आत्मा की खोज करनी है, तो अपने भीतर जाओ।
अगर विज्ञान की खोज करनी है, तो पदार्थ के साथ कुछ करो। अगर आध्यात्म की खोज करनी है, तो अपने चैतन्य के साथ कुछ करो।
इस चैतन्य को न तो टेस्टटयूब में रखा जा सकता है, न तराजू पर तौला जा सकता है, न काटापीटा जा सकता है सर्जन की टेबल पर, कोई उपाय नहीं है।
इसका तो एक ही उपाय है कि अगर आप अपने को सब तरफ से शांत करके भीतर खड़े हो जाएं जागकर, तो इसका अनुभव कर सकते हैं।
यह अनुभव निजी और वैयक्तिक है।
और हाँ कर्मकांडों को धर्म और फिर आध्यात्म समझने की भूल मत करना !
सम्प्रदायों को धर्म भी मत मान बैठना ।
*ओशो*
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