Bhagwan Ko Khojane Se Pahale Swayam Ko Jan Lo - Osho

​भगवान खोजने से पहले स्वयं को जान लो - ओशो 
Bhagwan Ko Khojane Se Pahale Swayam Ko Jan Lo - Osho

खुद को जानने में ही वह जान लिया जाता है, जो परमात्मा है ।
उस रियासत के राजा ने जाकर संन्यासी को कहा : स्वामी , एक प्रश्न बीस वर्षो से निरंतर पूछ रहा हूं । कोई उत्तर नहीं मिलता । क्या आप मुझे उत्तर देंगे ? 
स्वामी ने कहा : निश्चित दूंगा । 
उस संन्यासी ने उस राजा से कहा : नहीं , आज तुम खाली नहीं लौटोगे । पूछो ।
उस राजा ने कहा : मैं ईश्वर से मिलना चाहता हूं । ईश्वर को समझाने की कोशिश मत करना । मैं सीधा मिलना चाहता हूं ।
उस संन्यासी ने कहा : अभी मिलना चाहते हैं कि थोड़ी देर ठहर कर ?
राजा ने कहा : माफ़ करिए , शायद आप समझे नहीं । मैं परम पिता परमात्मा की बात कर रहा हूं , आप यह तो नहीं समझे कि किसी ईश्वर नाम वाले आदमी की बात कर रहा हूं ; जो आप कहते हैं कि अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हो ?
उस संन्यासी ने कहा : महानुभाव , भूलने की कोई गुंजाइश नहीं है । मैं तो चौबीस घंटे परमात्मा से मिलाने का धंधा ही करता हूं | अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हैं , सीधा जवाब दें ।
बीस साल से मिलने को उत्सुक हो और आज वक्त आ गया तो मिल लो ।
राजा ने हिम्मत की , उसने कहा : अच्छा मैं अभी मिलना चाहता हूं मिला दीजिए ।
संन्यासी ने कहा : कृपा करो , इस छोटे से कागज पर अपना नाम पता लिख दो ताकि मैं भगवान के पास पहुंचा दूं कि आप कौन हैं ।
राजा ने लिखा —- अपना नाम , अपना महल , अपना परिचय , अपनी उपाधियां और उसे दीं ।
वह संन्यासी बोला कि महाशय,ये सब बाते मुझे झूठ और असत्य मालूम होती हैं जो आपने कागज पर लिखीं ।
उस संन्यासी ने कहा : मित्र , अगर तुम्हारा नाम बदल दें तो क्या तुम बदल जाओगे ? तुम्हारी चेतना , तुम्हारी सत्ता , तुम्हारा व्यक्तित्व दूसरा हो जाएगा ?
उस राजा ने कहा : नहीं, नाम के बदलने से मैं क्यों बदलूंगा ? नाम नाम है , मैं मैं हूं ।
तो संन्यासी ने कहा : एक बात तय हो गई कि नाम तुम्हारा परिचय नहीं है , क्योंकि तुम उसके बदलने से बदलते नहीं । आज तुम राजा हो , कल गांव के भिखारी हो जाओ तो बदल जाओगे ?
उस राजा ने कहा : नहीं , राज्य चला जाएगा , भिखारी हो जाऊंगा , लेकिन मैं क्यों बदल जाऊंगा ? 
मैं तो जो हूं हूं । राजा होकर जो हूं , भिखारी होकर भी वही होऊंगा । न होगा मकान , न होगा राज्य , न होगी धन- संपति , लेकिन मैं ? मैं तो वही रहूंगा जो मैं हूं ।
तो संन्यासी ने कहा : तय हो गई दूसरी बात कि राज्य तुम्हारा परिचय नहीं है , क्योंकि राज्य छिन जाए तो भी तुम बदलते नहीं । तुम्हारी उम्र कितनी है ?
उसने कहा : चालीस वर्ष |
संन्यासी ने कहा : तो पचास वर्ष के होकर तुम दुसरे हो जाओगे ? बीस वर्ष या जब बच्चे थे तब दुसरे थे ?
उस राजा ने कहा : नही । उम्र बदलती है , शरीर बदलता है लेकिन मैं ? मैं तो जो बचपन में था,जो मेरे भीतर था, वह आज भी है ।
उस संन्यासी ने कहा : फिर उम्र भी तुम्हारा परिचय न रहा, शरीर भी तुम्हारा परिचय न रहा ।
फिर तुम कौन हो ? उसे लिख दो तो पहुंचा दूं भगवान के पास , नहीं तो मैं भी झूठा बनूंगा तुम्हारे साथ । यह कोई भी परिचय तुम्हारा नहीं है।
राजा बोला : तब तो बड़ी कठिनाई हो गई । उसे तो मैं भी नहीं जनता फिर ! जो मैं हूं , उसे तो मैं नहीं जनता ! इन्हीं को मैं जनता हूं मेरा होना ।
उस संन्यासी ने कहा : फिर बड़ी कठिनाई हो गई, क्योंकि जिसका मैं परिचय भी न दे सकूं , बता भी न सकूं कि कौन मिलना चाहता है,तो भगवान भी क्या कहेंगे कि किसको मिलना चाहता है ? 
तो जाओ पहले इसको खोज लो कि तुम कौन हो । और मैं तुमसे कहे देता हूं कि जिस दिन तुम यह जान लोगे कि तुम कौन हो , उस दिन तुम आओगे नहीं भगवान को खोजने । क्योंकि खुद को जानने में वह भी जान लिया जाता है जो परमात्मा है ।
 उत्सव आमार जाति 

आनंद आमार गोत्र । - ओशो 

Post a Comment

1 Comments