मीरा का कृष्ण मीरा का प्यारा है , प्रीतम है । छोटे बच्चे की तरह मीरा ने कृष्ण ने नही चुना है !….. संगी – साथी की तरह , मित्र की तरह । जैसे कोई स्त्री पति को चुने, ऐसे ही मीरा ने कृष्ण को चुना है ।
प्यारी कहानी है , छोटी थी मीरा और घर में एक साधू ठहरा । उस साधू के पास कृष्ण की बड़ी प्यारी प्रतिमा थी।
छोटी सी प्रतिमा ! सांवले – सलोने कृष्ण की ।
मीरा छोटी थी , होगी तीन – चार साल की , सुबह साधू ने पूजा के लिए प्रतिमा निकाली , और मीरा मचल गयी । वह प्रतिमा चाहती थी साधु देने को राजी नही था । साधु ने साफ़ इनकार भी कर दिया,मीरा की माँ ने भी समझाया , पैसा भी ले लो । उसने कहा : ‘ये मेरे भगवान है , इन्हें मैं बेच सकता हूं ? यह मैं नही दे सकता , इसके बिना मैं नही रह सकता ।’
साधु अपनी मूर्ति लेकर चला गया , दूसरे गांव रात सोया और कथा है कृष्ण उसे प्रकट हुए निद्रा में और कहा तूने ठीक नही किया । जिसकी मूर्ति थी उसे दे दे ।
साधु ने कहा : मूर्ति मेरी है , उस लड़की की नही । कृष्ण ने कहा : उसी की है ।
तेरा संबंध मुझसे औपचारिक है । तू और भी मूर्ति उठा लेना , उससे भी चलेगा । उसका संबंध मुझसे बहुत गहरा है । यह मूर्ति उसी की है तू लौट कर उसे दे आ ।इसी वक्त जा और दे आ । तूने ठीक नही किया ।
और वहां मीरा थी कि दिनभर भूखी बैठी थी , उसने खाना नही लिया ।
उसने कहा : मूर्ति मिलेगी तो ही खाना लुंगी, नही तो अब मर जाऊंगी ।
मां परेशान है , घर के लोग परेशान है !अब यह भी कोई जिद्द है ! क्योंकि दूसरे की चीज है, वह दे न दे …
फिर ऐसी वैसी चीज नही है , उसके आराध्य देव की प्रतिमा है ;वह नही दे तो कुछ नाराजगी की बात नही है , बिलकुल स्वाभाविक है ।
लेकिन दूसरे दिन सुबह होते ही साधु भागा हुआ आया ।
उसने कहा : मुझे क्षमा करो ! मीरा के पैरों में गिर पड़ा और कहा : सम्हालो अपने कृष्ण को , वे तुम्हारे है ।
फिर तो मीरा चौबीस घण्टे उस मूर्ति को अपनी छाती से लगाये घूमती रहती ।
फिर पड़ोस में एक विवाह हुआ किसी लड़की का । मीरा वहा गयी है अपने कृष्ण को लिए हुए। पांच साल की होगी और मां से पूछने लगी :‘इसका विवाह हो रहा है ,मेरा विवाह कब होगा ? …….. और मां ने ऐसे ही मजाक में कहा : ‘ तेरा विवाह तो हो गया न ! ये कृष्ण कन्हैया से ! और उसने बात मान ली ।
उस क्षण के बाद उसने कृष्ण के अतिरिक्त किसी को पति के रूप में नही देखा । विवाह भी हुआ , लेकिन कृष्ण ही पति रहे । वह कृष्णमय हो गयी ।
मीरा का कृष्ण गीता का कृष्ण नही है।
ऐसा था : मीरा के कृष्ण के फलसफे में , उनके दर्शनशास्त्र में कोई रस नही है ।
गीता दर्शनशास्त्र है, वह कृष्ण का दार्शनिक वक्तव्य है ।
मीरा को कृष्ण की आंखो में रस है,उनके शब्दो में नही ।
मीरा को कृष्ण के रूप में रस है,उनके सिद्धांतो में नही । मीरा को कृष्ण में रस है ; क्या कहते है, इसमें नही ।
झुक आयी बदरिया सावन की - ओशो
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