Jivan Hi Asali Pooja Hai - Osho


जीवन ही असली पूजा है  - ओशो 
जीवन ही असली पूजा है ओशो

तुम्हारी सारी पूजा और आराधना नकली है क्योँ कि असली पूजा तो जीवन जीना है, वह पूजा या आराधना नहीँ है । जीना और क्षण प्रतिक्षण जीना — और इस प्रमाणिक रूप से जीने मेँ ही कोई एक जानता है कि परमात्मा क्या है, क्योँ कि वह एक जानता है कि वह एक है कौन । 
तुम्हारा परमात्मा का विचार जीने से एक पलायन है । तुम जीने से और प्रेम से डरे हुए हो, तुम मृत्यु से भी भयभीत हो । तुम अपने मन मेँ एक बड़ी कामना सृजित करते हो, एक बहुत दूर की कामना — जो कहीँ भविष्य मेँ पूरी होगी और तुम उसके साथ सम्मोहित हो जाते हो । तब तुम परमात्मा की पूजा करने लगते हो, और तुम एक नकली परमात्मा की पूजा कर रहे हो ।


असली पूजा छोटी-छोटी चीजोँ से बनती है, न कि शास्त्रोँ के अनुसार बताए क्रिया काण्डोँ से — ये सारे क्रिया काण्ड तुममेँ यह विश्वास उत्पन्न करने के लिए केवल व्यूह रचनाएं या तरकीबेँ हैँ कि तुम कुछ विशिष्ट चीज अथवा कुछ पवित्र कार्य कर रहे हो । तुम और कुछ भी नहीँ, केवल पूरी तरह से मूर्ख बनाए जा रहे हो । तुम नकली परमात्मा सृजित करते हो — तुम प्रतिमाएं, मूर्तियां और पूजाघर बनाते हो — तुम वहां जाते हो और वहां मूर्खतापूर्ण चीज़े करते हो, जिन्हेँ तुम यज्ञ, प्रार्थना और इसी तरह की सामग्री कहकर पुकारते हो । तुम अपनी मूर्खता की सजावट कर सकते हो, तुम वेद – मंत्रोँ का पाठ कर सकते हो, तुम बाइबिल पढ़ सकते हो, तुम गिरजाघरोँ, मंदिरोँ आदि मेँ जाकर क्रियाकाण्ड कर सकते हो, तुम अग्नि के चारोँ ओर बैठकर गीत और भजन गा सकते हो, लेकिन तुम पूरी तरह से मूर्ख बन रहे हो, यह ज़रा भी धार्मिक होना है ही नहीँ ।
धर्म अर्थात “अनुभूति ” धर्म अर्थात ” प्रत्यक्ष व्यवहार” । एक सच्चा धार्मिक व्यक्ति दिन- प्रतिदिन, क्षण प्रति क्षण जीता है । वह फर्श पर पोँछा लगाकर उसे साफ करता है, और यही पूजा और आराधना है । एक पुत्र अपने बुजुर्ग माता – पिता की सेवा मेँ लीन है यही पूजा है । एक स्त्री पति के लिए भोजन बनाती है और यही उसकी पूजा है । प्रेम से स्नान करने मेँ ही पूजा हो जाती है । पूजा अथवा आराधना करना एक गुण है, उसका स्वयं कृत्य के साथ कुछ लेना – देना नहीँ है, यह तुम्हारी स्थिति और भाव मुद्रा है, जो तुम उस कृत्य मेँ लाते हो ।
यदि तुम किसी पुरूष को प्रेम करती हो और उसके लिए भोजन तैयार करती हो, तो यही तुम्हारी पूजा और आराधना है क्योँकि वह पुरूष ही दिव्य है । प्रेम प्रत्येक व्यक्ति को दिव्य बना देता है, प्रेम दिव्यता के रहस्य को प्रकट करता है । तब वह केवल तुम्हारा पति ही नहीँ रह जाता, वह पति के रूप मेँ तुम्हारा परमात्मा होता है । अथवा वह केवल तुम्हारी पत्नी ही नहीँ होती, वह स्त्री के रूप मेँ अंतिम रूप से तुम्हारा परमात्मा होती है, और हमेशा परमात्मा ही बनी रहती है । तुम्हारे बच्चे के रूप मेँ, विशिष्ट रूप मेँ तुम्हारे पास परमात्मा ही आता है ।
उसे पहचानो, समझो, यही तुम्हारी पूजा और आराधना होगी । तुम अपने बच्चोँ के साथ केवल खेल रहे हो, और यही पूजा है — यह उससे कहीँ अधिक महत्वपूर्ण है, जो नकली पूजा तुम मंदिरोँ मेँ जाकर करते हो । 
तुम्हेँ एक सच्चा और प्रमाणिक जीवन, उत्सव – आनंद के साथ , समग्रता के साथ और सत्यनिष्ठा के साथ जीना है, और तब तुम परमात्मा के बारे मेँ सभी कुछ भूल सकते हो — क्योँकि प्रत्येक क्षण तुम उससे मिल रहे होगे, प्रत्येक क्षण तुम उससे होकर गुज़र रहे होगे । तब प्रत्येक चीज़ केवल परमात्मा की ही अभिव्यक्ति है । प्रत्येक चीज़ की पहली और पूर्व शर्त परमात्मा ही है — बिना उसके कुछ भी अस्तित्व मेँ नहीँ हो सकता । इसलिए केवल वही विद्यमान है, केवल वही अस्तित्व मेँ है, और शेष सभी कुछ उसी का एक रूप है………..🙏🏻
 ओशो  
सहज जीवन , भाग – 2  

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