प्रेम का एक नियम - ओशो
प्रेम का एक नियम है :कि हो तो हो, न हो तो किया नहीं जा सकता। हां, ढोंग कर सकते हो। दिखावा कर सकते हो।
अपने को समझा लेते हो, दूसरे को समझा देते हो कि है, सब ठीक है। लेकिन प्रेम हो तो हो, न हो तो न हो। प्रेम ऐसी घटना है
परमात्मा की तरफ से, तुम्हारे हाथ में नहीं है।
तीन घटनाएं परमात्मा के हाथ में हैं:
जन्म, प्रेम और मृत्यु और बाकी घटनाओं का कोई मूल्य नहीं है जो तुम्हारे हाथ में हैं।
तुम किस तरफ की दुकान करते हो, किस दक्तर में बैठते हो, किस राजनीतिक पार्टी के सदस्य हो; इन बातों का कोई मूल्य नहीं है। यह सब बीच का भरावा है।
जीवन का सब महत्वपूर्ण परमात्मा के हाथ में है।परमात्मा यानी समय। व्यक्ति के हाथ में नहीं है, समष्टि के हाथ में है। “होता है तो होता है”………..
ओशो
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