Aadmi Ke Sat Prakar Ke Sharir - Osho

आदमी के सात प्रकार के शरीर  - ओशो 
Aadmi Ke Sat Prakar Ke Sharir - Osho


सात शरीरों से गुजरती कुंडलिनी)

सातवीं प्रश्नोत्तर चर्चा:
प्रश्न: ओशो कल की चर्चा में आपने कहा कि कुंडलिनी के झूठे अनुभव भी प्रोजेक्ट किए जा सकते हैं— जिन्हें आप आध्यात्मिक अनुभव नहीं मानते हैं मानसिक मानते हैं। लेकिन प्रारंभिक चर्चा में आपने कहा था कि कुंडलिनी मात्र साइकिक है। इसका ऐसा अर्थ हुआ कि आप कुंडलिनी की दो प्रकार की स्थितियां मानते हैं— मानसिक और आध्यात्मिक। कृपया इस स्थिति को स्‍पष्‍ट करें।
ओशो::– असल में, आदमी के पास सात प्रकार के शरीर हैं। एक शरीर तो जो हमें दिखाई पड़ता है—फिजिकल बॉडी, भौतिक शरीर। दूसरा शरीर जो उसके पीछे है और जिसे ईथरिक बॉडी कहें— आकाश शरीर। और तीसरा शरीर जो उसके भी पीछे है, जिसे एस्ट्रल बॉडी कहें—सूक्ष्म शरीर। और चौथा शरीर जो उसके भी पीछे है, जिसे मेंटल बॉडी कहें— मनस शरीर। और पांचवां शरीर जो उसके भी पीछे है, जिसे म्प्रिचुअल बॉडी कहें— आत्मिक शरीर। छठवां शरीर जो उसके भी पीछे है, जिसे हम कास्मिक बॉडी कहें—ब्रह्म शरीर। और सातवां शरीर जो उसके भी पीछे है, जिसे हम निर्वाण शरीर, बॉडीलेस बॉडी कहें— अंतिम।

इन सात शरीरों के संबंध में थोड़ा समझेंगे तो फिर कुंडलिनी की बात पूरी तरह समझ में आ सकेगी।

पहले सात वर्ष में भौतिक शरीर ही निर्मित होता है। जीवन के पहले सात वर्ष में भौतिक शरीर ही निर्मित होता है, बाकी सारे शरीर बीजरूप होते हैं; उनके विकास की संभावना होती है, लेकिन वे विकसित उपलब्ध नहीं होते। पहले सात वर्ष, इसलिए इमिटेशन, अनुकरण के ही वर्ष हैं। पहले सात वर्षों में कोई बुद्धि, कोई भावना, कोई कामना विकसित नहीं होती, विकसित होता है सिर्फ भौतिक शरीर।
कुछ लोग सात वर्ष से ज्यादा कभी आगे नहीं बढ़ पाते; कुछ लोग सिर्फ भौतिक शरीर ही रह जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों में और पशु में कोई अंतर नहीं होगा। पशु के पास भी सिर्फ भौतिक शरीर ही होता है, दूसरे शरीर अविकसित होते हैं।
दूसरे सात वर्ष में भाव शरीर का विकास होता है, या आकाश शरीर का। इसलिए दूसरे सात वर्ष व्यक्ति के भाव जगत के विकास के वर्ष हैं। चौदह वर्ष की उम्र में इसीलिए सेक्स मैच्योरिटी उपलब्ध होती है; वह भाव का बहुत प्रगाढ़ रूप है। कुछ लोग चौदह वर्ष के होकर ही रह जाते हैं, शरीर की उम्र बढ़ती जाती है, लेकिन उनके पास दो ही शरीर होते हैं।
तीसरे सात वर्षों में सूक्ष्म शरीर विकसित होता है— इक्कीस वर्ष की उम्र तक। दूसरे शरीर में भाव का विकास होता है; तीसरे शरीर में तर्क, विचार और बुद्धि का विकास होता है।
इसलिए सात वर्ष के पहले दुनिया की कोई अदालत किसी बच्चे को सजा नहीं देगी, क्योंकि उसके पास सिर्फ भौतिक शरीर है; और बच्चे के साथ वही व्यवहार किया जाएगा जो एक पशु के साथ किया जाता है। उसको जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता। और अगर बच्चे ने कोई पाप भी किया है, अपराध भी किया है, तो यही माना जाएगा कि किसी के अनुकरण में किया है, मूल अपराधी कोई और होगा।

दूसरे शरीर के विकास के बाद— चौदह वर्ष—एक तरह की प्रौढ़ता मिलती है; लेकिन वह प्रौढ़ता यौन—प्रौढ़ता है। प्रकृति का काम उतने से पूरा हो जाता है। इसलिए पहले शरीर और दूसरे शरीर के विकास में प्रकृति पूरी सहायता देती है, लेकिन दूसरे शरीर के विकास से मनुष्य मनुष्य नहीं बन पाता। तीसरा शरीर—जहां विचार, तर्क और बुद्धि विकसित होती है—वह शिक्षा, संस्कृति, सभ्यता का फल है। इसलिए दुनिया के सभी मुल्क इक्कीस वर्ष के व्यक्ति को मताधिकार देते हैं।
अभी कुछ मुल्कों में संघर्ष है अठारह वर्ष के बच्चों को मताधिकार मिलने का। वह संघर्ष स्वाभाविक है; क्योंकि जैसे— जैसे मनुष्य विकसित हो रहा है, सात वर्ष की सीमा कम होती जा रही है। अब तक तेरह और चौदह वर्ष में दुनिया में लड़कियां मासिक धर्म को उपलब्ध होती थीं। अमेरिका में पिछले तीस वर्षों में यह उम्र कम होती चली गई है; ग्यारह वर्ष की लड़की भी मासिक धर्म को उपलब्ध हो जाती है। अठारह वर्ष का मताधिकार इसी बात की सूचना है कि मनुष्य, जो काम इक्कीस वर्ष में पूरा हो रहा था, उसे अब और जल्दी पूरा करने लगा है, वह अठारह वर्ष में भी पूरा कर ले रहा है।
लेकिन साधारणत: इक्कीस वर्ष लगते हैं तीसरे शरीर के विकास के लिए। और अधिकतम लोग तीसरे शरीर पर रुक जाते हैं; मरते दम तक उसी पर रुके रहते हैं; चौथा शरीर, मनस शरीर भी विकसित नहीं हो पाता।
जिसको मैं साइकिक कह रहा हूं वह चौथे शरीर की दुनिया की बात है—मनस शरीर की। उसके बड़े अदभुत और अनूठे अनुभव हैं। जैसे जिस व्यक्ति की बुद्धि विकसित न हुई हो, वह गणित में कोई आनंद नहीं ले सकता। वैसे गणित का अपना आनंद है। कोई आइंस्टीन उसमें उतना ही रसमुग्ध होता है, जितना कोई संगीतज्ञ वीणा में होता हो, कोई चित्रकार रंग में होता हो। आइंस्टीन के लिए गणित कोई काम नहीं है, खेल है। पर उसके लिए बुद्धि का उतना विकास चाहिए कि वह गणित को खेल बना सके।

जो शरीर हमारा विकसित होता है, उस शरीर के अनंत—अनंत आयाम हमारे लिए खुल जाते हैं। जिसका भाव शरीर विकसित नहीं हुआ, जो सात वर्ष पर ही रुक गया है, उसके जीवन का रस खाने—पीने पर समाप्त हो जाएगा। जिस कौम में पहले शरीर के लोग ज्यादा मात्रा में हैं, उसकी जीभ के अतिरिक्त कोई संस्कृति नहीं होगी।
जिस कौम में अधिक लोग दूसरे शरीर के हैं, वह कौम सेक्स सेंटर्ड हो जाएगी; उसका सारा व्यक्तित्व—उसकी कविता, उसका संगीत, उसकी फिल्म, उसका नाटक, उसके चित्र, उसके मकान, उसकी गाडिया—सब किसी अर्थों में सेक्स सेंट्रिक हो जाएंगी; वे सब वासना से भर जाएंगी।
जिस सभ्यता में तीसरे शरीर का विकास हो पाएगा ठीक से, वह सभ्यता अत्यंत बौद्धिक चिंतन और विचार से भर जाएगी। जब भी किसी कौम या समाज की जिंदगी में तीसरे शरीर का विकास महत्वपूर्ण हो जाता है, तो बड़ी वैचारिक क्रांतियां घटित होती हैं। बुद्ध और महावीर के वक्त में बिहार ऐसी ही हालत में था कि उसके पास तीसरी क्षमता को उपलब्ध बहुत बड़ा समूह था। इसलिए बुद्ध और महावीर की हैसियत के आठ आदमी बिहार के छोटे से देश में पैदा हुए, छोटे से इलाके में। और हजारों प्रतिभाशाली लोग पैदा हुए।
सुकरात और प्लेटो के वक्त यूनान की ऐसी ही हालत थी। कनफ्यूशियस और लाओत्से के समय चीन की ऐसी ही हालत थी। और बड़े मजे की बात है कि ये सारे महान व्यक्ति पांच सौ साल के भीतर सारी दुनिया में हुए। उस पांच सौ साल में मनुष्य के तीसरे शरीर ने बड़ी ऊंचाइयां छुई।
लेकिन आमतौर से तीसरे शरीर पर मनुष्य रुक जाता है, अधिक लोग इक्कीस वर्ष के बाद कोई विकास नहीं करते।

लेकिन ध्यान रहे, चौथा जो शरीर है उसके अपने अनूठे अनुभव हैं—जैसे तीसरे शरीर के हैं, दूसरे शरीर के हैं, पहले शरीर के हैं। चौथे शरीर के बड़े अनूठे अनुभव हैं। जैसे सम्मोहन, टेलीपैथी, क्लेअरवायंस— ये सब चौथे शरीर की संभावनाएं हैं। आदमी बिना समय और स्थान की बाधा के दूसरे से संबंधित हो सकता है; बिना बोले दूसरे के विचार पढ़ सकता है या अपने विचार दूसरे तक पहुंचा सकता है; बिना कहे, बिना समझाए, कोई बात दूसरे में प्रवेश कर सकता है और उसका बीज बना सकता है, शरीर के बाहर यात्रा कर सकता है—एस्ट्रल प्रोजेक्शन—शरीर के बाहर घूम सकता है, अपने इस शरीर से अपने को अलग जान सकता है।
इस चौथे शरीर की, मनस शरीर की, साइकिक बॉडी की बड़ी संभावनाएं हैं, जो हम बिलकुल ही विकसित नहीं कर पाते हैं, क्योंकि इस दिशा में खतरे बहुत हैं—एक; और इस दिशा में मिथ्या की बहुत संभावना है— दो। क्योंकि जितनी चीजें सूक्ष्म होती चली जाती हैं, उतनी ही मिथ्या और फाल्स संभावनाएं बढ़ती चली जाती हैं।
अब एक आदमी अपने शरीर के बाहर गया या नहीं—वह सपना भी देख सकता है अपने शरीर के बाहर जाने का, जा भी सकता है। और उसके अतिरिक्त, स्वयं के अतिरिक्त और कोई गवाह नहीं होगा। इसलिए धोखे में पड़ जाने की बहुत गुंजाइश है; क्योंकि दुनिया जो शुरू होती है इस शरीर से, वह सब्जेक्टिव है; इसके पहले की दुनिया ऑब्जेक्टिव है।
अगर मेरे हाथ में रुपया है, तो आप भी देख सकते हैं, मैं भी देख सकता हूं पचास लोग देख सकते हैं। यह कॉमन रियलिटी है, जिसमें हम सब सहभागी हो सकते हैं और जांच हो सकती है—रुपया है या नहीं? लेकिन मेरे विचारों की दुनिया में आप सहभागी नहीं हो सकते, मैं आपके विचारों की दुनिया में सहभागी नहीं हो सकता, वह निजी दुनिया शुरू हो गई। जहां से निजी दुनिया शुरू होती है, वहां से खतरा शुरू होता है; क्योंकि किसी चीज की वैलिडिटी, किसी चीज की सच्चाई के सारे बाह्य नियम खतम हो जाते हैं।
इसलिए असली डिसेपान का जो जगत है, वह चौथे शरीर से शुरू होता है। उसके पहले के सब डिसेपान पकड़े जा सकते हैं, उसके पहले के सब धोखे पकड़े जा सकते हैं। और ऐसा नहीं है कि चौथे शरीर में जो धोखा दे रहा है, वह जरूरी रूप से जानकर दे रहा हो। बड़ा खतरा यह है! वह अनजाने दे सकता है; खुद को दे सकता है, दूसरों को दे सकता है। उसे कुछ पता ही न हो, क्योंकि चीजें इतनी बारीक और निजी हो गई हैं कि उसके खुद के पास भी कोई कसौटी नहीं है कि वह जाकर जांच करे कि सच में जो हो रहा है वह हो रहा है? कि वह कल्पना कर रहा है?

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