चेतना की उम्र - ओशो
चेतना की कोई उम्र नहीं होती। चेतना पर सिर्फ फिकसेशन होता है। चेतना को कोई उम्र नहीं होती। कि पाँच साल की चेतना की दस साल की चेतना। या पचास साल की चेतना। सिर्फ ख्याल है। आँख बंद कर के बताएं की आपकी चेतना की कितनी उम्र है। तो आँख बंद करके आप कुछ भी नहीं बता पायेंगे। आप कहेंगे कि मुझे डायरी देखनी होगी। कैलंडर का पता लगाना होगा। जन्म पत्री देखनी होगी। असल में जब तक दुनिया में जब तक जन्म पत्री नहीं थी। कैलंडर नहीं था, सालों की गणना नहीं थी। आंकड़े कम थे। दुनियां में किसी को अपनी उम्र का पता ही नहीं होता था। आज भी आदिवासियों में आप जाकर पूँछें कि कितनी उम्र है। तो वह बड़ी मुश्किल में पड़ जायेंगे। क्योंकि किसी की संख्या पंद्रह पर खत्म हो जाती है। किसी की दस पर खत्म हो जाती है। किसी की पाँच पर खत्म हो जाती है।
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एक आदमी को मैं जानता हूं। जिससे किसी ने पूछा की कितनी उम्र है? वह घर का नौकर था। उसने कहां होगी यहीं कोई पच्चीस साल। उसकी उम्र होगी कम से कम साठ साल की। तो घर के लोग हैरान रह गये। उन्होंने पूछा तुम्हारे लड़के की उम्र कितनी होगी। तो उन्होंने कहां होगी कोई पच्चीस साल। क्योंकि पच्चीस जो था वह आखरी आंकड़ा था। उसके आगे तो कुछ था ही नहीं। उन्होंने कहा तुम्हारी भी उम्र पच्चीस साल और तुम्हारे लड़के की उम्र भी पच्चीस साल ऐसा कैसे हो सकता है। हमें कठिनाई हो सकती है क्योंकि हमारे पास पच्चीस के बाद भी आंकड़ा है। उसके लिए पच्चीस के बाद कोई संख्या नहीं है। पच्चीस के बाद असंख्य शुरू हो जाता है। उसकी कोई संख्या नहीं होती।
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उम्र तो हमारे बाहर के कैलंडर, तारीख दिनों को हम हिसाब लगा कर पता लगा लेते है। अगर भीतर हम झांक कर हम देखें तो वहां कोई उम्र नहीं होती। अगर कोई भीतर से ही पता लगाना चाहे की मेरी उम्र कितनी है तो नहीं पता लगा पायेगा। क्योंकि उम्र बिलकुल बहारी माप जोख है। लेकिन बहारी माप जोख भीतर के चित्त पर फिकसेशन बन जाती है। वहां जाकर कील की तरह ठूक जाता है। और हम कीलें ठोकते चले जाते है। कि अब में पचास साल का हो गया हूं, अब इक्यावन साल का हो गया हूं। ये सब हम चेतना पर ठोकते चले जाते है।
– ओशो
[ मैं मृत्यु सिखाता हूं ]
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