प्रवचनमाला- मैं मृत्यु सिखाता हूँ
प्रवचन नं -15
भाग----9..
परम शांति, परम तनावमुक्तता, परम मुक्ति तथाता में ही संभव है। पर संकल्प हो, तो साक्षी तक जाया जा सकता है। साक्षी भाव हो, तो तथाता तक जाया जा सकता है। क्योंकि जिस व्यक्ति ने अभी साक्षी होना ही नहीं जाना, वह सर्व —स्वीकार नहीं जान सकता। जिसने अभी यही नहीं जाना कि मैं कांटे से अलग हूं, वह अभी यह नहीं जान सकता कि मैं कांटे से एक हूं। असल में काटे से अलग होना जो जान ले, वह दूसरा कदम भी उठा सकता है काटे से एक होने का।
तो तथाता सारभूत है। समस्त साधना में जो श्रेष्ठतम खोज हुई है, वह तथाता की है। इसलिए बुद्ध का एक नाम है तथागत। तथागत शब्द को समझना थोड़ा उपयोगी है, उससे तथाता को समझने में यह सहयोगी होगा।
बुद्ध खुद अपने लिए भी तथागत का उपयोग करते हैं। बुद्ध खुद कहते हैं कि तथागत ने ऐसा कहा। तथागत का मतलब है, दस केम, दस गान। ऐसे आए और ऐसे गए। जैसे हवा का झोंका आए और चला जाए; न कोई प्रयोजन, न कोई अर्थ। बस हवा का झोंका आए भीतर और चला जाए। जो ऐसे ही आए और गए। जिनका आना—जाना ऐसा निष्प्रयोजन, निष्काम है, जैसा हवा का झोंका है। ऐसे व्यक्तित्व को कहते हैं तथागत।
लेकिन हवा के झोंके की तरह कौन आएगा और कौन जाएगा? हवा के झोंके की तरह वही आ और जा सकता है, जो तथाता को उपलब्ध है। जिसको न आने से कोई फर्क पड़ता है, न जाने से कोई फर्क पड़ता है। आए तो आए, गए तो गए। वैसे ही जैसे डायोजनीज चला गया। न इससे फर्क पड़ता है कि जंजीर डालों, न इससे फर्क पड़ता है कि जंजीर मत डालों।
क्योंकि डायोजनीज ने बाद में कहा कि जो गुलाम हो सकता है, वही गुलामी से डरता है, हम तो गुलाम हो ही नहीं सकते, तो हम गुलामी से कैसे डरें। जिसको थोड़ा—सा भी डर है गुलाम होने का, वही तो गुलामी से डर सकता है। और जिसको डर है, वह गुलाम है। हम ठहरे मालिक। तुम हमें गुलाम बना नहीं सकते। हम तुम्हारी जंजीरों के भीतर भी मालिक हैं। हम तुम्हारे कारागृह में जाकर भी मालिक ही होंगे। हम मालिक हैं। इससे क्या फर्क पड़ता है कि तुम हमें कहा डाल देते हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारी मालकियत पूरी है।
संकल्प से साक्षी, साक्षी से तथाता, ऐसी यात्रा है
ओशो
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