सच्चा प्रेम अकेला होने में सक्षम है
“तुम गहरे प्रेम में होकर भी अकेले हो सकते हो। वास्तव में तुम अकेले तभी हो सकते हो जब तुम गहरे प्रेम में होओ। प्रेम की गहराई तुम्हारे आस-पास एक सागर निर्मित करती है, एक गहरा सागर, और तुम एक द्वीप बन जाते हो, निपट एकांत। हां, सागर तुम पर किनारे से लहरें उछालता रहता है, परंतु जितना ज्यादा सागर की लहरें तुम्हारे किनारे से टकराती हैं, उतने ही एकाग्र, उतने ही गहरे, उतने ही केंद्रित तुम हो जाते हो। प्रेम का मूल्य केवल इसलिए है क्योंकि वह तुम्हें एकांत करता है। वह तुम्हें स्वयं होने के लिए उचित आकाश देता है।
"परन्तु प्रेम के प्रति तुम्हारी एक सोच है; वह सोच उलझन निर्मित कर रही है--प्रेम नहीं अपितु उसकी सोच। यह सोच है कि प्रेम में प्रेमी एक-दूसरे में विलीन हो जाते हैं, एक-दूसरे में समा जाते हैं। हां प्रेम में ऐसे क्षण आतें हैं जब प्रेमी एक-दूसरे में खो जाते हैं--परन्तु यही जीवन का सौन्दर्य है और उस सबका भी जो आस्तित्व्गत है: कि जब प्रेमी एक-दूसरे में विलीन हो जातें हैं, वही क्षण होतें हैं जब वे बहुत चेतन, बहुत होशपूर्ण हो जाते हैं। वह विलीनता किसी प्रकार कि मदहोशी नहीं होती, वह विलीनता बेहोशी नहीं है। वह एक महान चेतना लाती है, उससे एक महान जागरूकता पैदा होती है। एक हाथ तो वे मिट जाते हैं--और दूसरे हाथ वह अपने अकेले होने के परम सौन्दर्य को देखते हैं। दोनों एक-दूसरे को, एक-दूसरे के एकांत को परिभाषित करते हैं। और दोनों एक-दूसरे के प्रति धन्यवाद से भरे होते हैं। यह दूसरे के कारण ही वे स्वयं को देख पाएं हैं; दूसरे ने एक दर्पण का काम किया है जिसमें वे स्वयं का प्रतिबिम्ब देख सकते हैं. प्रेमी एक-दूसरे का दर्पण हैं। प्रेम तुम्हें अपने मौलिक चेहरे के प्रति जागरूक करता है।
"इस कारण, यह बहुत विरोधाभासी और असंगत लगता है जब कहा जाता है: "प्रेम एकांत लाता है।" अब तक तुम सोचते आए थे कि प्रेम समीपता लाता है। मैं यह नहीं कह रहा कि यह समीपता नहीं लाता, परन्तु जब तक कि तुम अकेले ना हो जाओ तुम समीप नहीं हो सकते। कौन समीप होगा? समीप होने के लिए दो व्यक्ति चाहिए, समीप होने के लिए दो स्वतंत्र व्यक्ति चाहिए। जब दोनों व्यक्ति परम स्वतंत्र होंगे तब वह समीपता बहुत बहुमूल्य होगी अत्यंत बहुमूल्य। यदि वे एक-दूसरे पर निर्भर हैं, तब वह समीपता नहीं है--वह एक दासता है, एक कैद।
“यदि वे एक-दूसरे पर निर्भर हैं, एक-दूसरे को पकड़े हुए, एक-दूसरे पर अधिकार जमाते हुए, यदि वे एक-दूसरे को आगे बढ़ने के लिए अवकाश नहीं देते तो वे क्षत्रु हैं, प्रेमी नहीं; वे एक-दूसरे के लिए विनाशकारी हैं, वे एक-दूसरे को अपनी आत्मा खोजने में, अपना स्वयं खोजने में कोई मदद नहीं कर रहे। यह किस प्रकार का प्रेम है? यह केवल अकेले होने का भय होगा; इसी लिए वे एक-दूसरे को पकड़े हुए हैं। परन्तु सच्चा प्रेम कोई भय नहीं जानता। सच्चा प्रेम अकेले होने में सक्षम होता है, परम एकांत, और उसी एकांत से समीपता का उदय होता है।"
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