धार्मिक युद्ध - ओशो
आज तक कभी कोई शान्ति नहीं हुई। इतिहास में अभी तक दो ही अवधियाँ आई हैं: एक अवधि जिसे हम युद्ध कहते हैं और एक जिसे हम शांति कहते हैं, जो कि असलियत पर पर्दा है-- वास्तव में इसे अगले युद्ध की तैयारी कहना चाहिए। पूरा इतिहास दो ही चीज़ों से निर्मित है: युद्ध और युद्ध की तैयारी। और तुम मुझसे पूछते हो, " जब से दुसरे विश्व युद्ध के बाद शासन में शान्ति फिर से स्थापित हुई है, तब से हमारे नेता क्या कर रहे हैं?
राजनेता वही कर रहे हैं जो आज तक वे करते आएं हैं: और संघर्ष का निर्माण, और अशांति, और भेद-भाव, और खतरनाक हथियार-- और तीसरे विश्व युद्ध की तैयारी।
एक बार, ऐल्बर्ट आइन्स्टीन से किसी ने पूछा: "एक वैज्ञानिक हेने के नाते जिसने एटॉमिक ऊर्जा की खोज की, आप यह जानकारी देने की क्षमता रखते होंगे कि तीसरे विश्व युद्ध में क्या होने वाला है।" आइन्स्टीन की आन्कोंह में आसूं भर आए और उसने कहा, "मुझसे तीसरे विश्व युद्ध के बारे में न पूछो-- मुझे उसके बारे में कुछ नहीं पता। पर यदि तुम मुझसे चौथे के बारे में पूछते हो तो मैं जरूर कुछ बता सकता हूँ।" जिस पत्रकार ने प्रश्न किया था अत्यंत हैरान और विस्मित हुआ: यह व्यक्ति तीसरे विश्व युद्ध के बारे में कुछ कह नहीं रहा—बोलता है कि उसे तीसरे विश्व युद्ध के बारे में कुछ नहीं पता, परन्तु वह चौथे विश्व युद्ध के बारे में कुछ कहने के लिए अवश्य तैयार है? उसने उत्तेजित होकर पूछा, "तब कृपया कर मुझे चौथे विश्वयुद्ध के बारे में बताएं।" आइन्स्टीन बोला, "उसके बारे में केवल एक ही बात बोली जा सकती है-- कि वह कभी नहीं होगा।" तीसरा विश्व युद्ध अंतिम विश्व युद्ध होगा। जब से दुसरे विश्व युद्ध के बाद शांती की दुबारा शासकीय स्थापना हुई है राजनेता इस अंतिम विश्व युद्ध की तैयारी करने में लगे हुए हैं।
राजनेता और उसकी राजनीती वे कुरूप बातें हैं जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। हम एक अन्धकार भरी रात का सामना कर रहे हैं, और मुझे एक पुरानी कहावत याद आ रही है कि "जब रात अंधकारमय हो तब सुबह बहुत नज़दीक होती है।"पर मुझे यह कहते हुए सम्न्कोच होता है कि जिस अँधेरी रात ने हमें घेर रखा है उसका कभी अंत होगा। मैं तुम्हे बस यह सटीक तौर से बताना चाहता हूँ कि १९४५ से क्या होता आ रहा है--और लोगों को इसके प्रति बिलकुल अनजान रखा गया है; उन्हें इस बात का बोध नहीं है कि वे एक ज्वालामुखी पर बैठे हें जो कभी भी फूट सकता है। उन्हें तुच्छ विषयों में व्यस्त कर दिया गया है, और असली समस्याओं को छिपा रखा है जैसे कि वे हों ही नहीं।
१९४५ से ६६ देशों में एक सौ पांच युद्ध हो चुके हैं--सभी “तीसरे विश्व” में। पूछने का मन होता है, "तीसरे विश्व में क्यों?" अमरीका और सोवीयत यूनियन दोनों ही विनाशकारी हथियारों के निर्माण में इतना आगे निकल गये है, कि दुसरे विश्व युद्ध में इस्तेमाल किये गए हथियार अब पुराने हो चुके हैं। उनके लिए वे किसी काम के नहीं हैं। इन्हें कहीं तो बेचना है, एक बाज़ार की आवश्यकता है, और बाज़ार तभी हो सकता है अगर युद्ध हो। अमेरिका पाकिस्तान को हथियार दिए चला जाता है। तब स्वाभाविक रूप से भारत भी सोवियत यूनियन से हथियार लिए चले जाता है। और यह तीसरे विश्व में हो रहा है: एक देश सोवियत यूनियन से पुराने हथियार खरीदता है; फिर उसका क्षत्रु अमेरिका से खरीदता है। यह अच्छा व्यापार है। और वे नहीं चाहते कि यह लोग युद्ध बंद करें, नहीं तो वे यह हथियार कहाँ बेचेंगे, जिन पर उन्होंने अरबों डॉलर खर्च कियें हैं? और यह गरीब देश और उनके राजनेता उन्हें खरीदने के लिए तैयार है, जबकि उनके लोग भूखे मर रहे हैं--उनके बजट का पचहत्तर प्रतीशत युद्ध में चला जाता है। औसत रूप से, हर युद्ध साढ़े तीन साल में समाप्त होता है--और तुम इसे शान्ति कहते हो?
इन युद्धों के कारण एक करोड़ साठ लाख मौतें हुईं है, दुसरे विश्व युद्ध में, लाखों मौते हुईं हैं। दुसरे विश्व युद्ध के बाद से, जो की शान्ति का समय है, एक करोड़ साठ लाख लोग युद्ध में मारे गए हैं--और तुम फिर भी तुम उसे शान्ति बुलाते जा रहे हो? परन्तु राजनेता इतने चालाक हैं, और लोग इतने अंधे हैं कि वे आस-पास देखते ही नहीं कि क्या हो रहा है। वे तुच्छ बातों के लिए लड़ते जायेंगे: कौन सा जिला किस राज्य में होना चाहिए? बेलगाम यहाँ का जिला है; क्या यह महाराष्ट्र में होना चाहिए? क्योंकि वह कर्नाटका और महाराष्ट्र का सीमान्तर जिला है।
ऐसे लोग हैं जो दोनों ही भाषाओँ के हैं और वे एक दुसरे को तीन दशकों से निरंतर रूप से मार-काट रहें हैं-- और एक छोटी सी बात का निर्णय नहीं लिया जा सका। वास्तव में, कोई निर्णय लेना भी नहीं चाहता। नहीं तो समस्या ही क्या है? एक छोटा सा प्लेबीसाईट, एक निष्पक्ष अवलोकन में रखा गया वोट, और लोग निर्णय ले सकते हैं कि वे कहाँ रहना चाहतें हैं। किसी को कोई हत्या करने की आवश्यकता नहीं है। परन्तु ऐसा लगता है कि राजनेता कहीं न कहीं उपद्रव चलते रहने में ज्यादा रुचि रखतें हैं, ताकि उनकी आवश्यकता बनी रहे। एक करोड़ साठ लाख लोग मारे जा चुके हैं, पर तब भी हर स्कूल, हर कॉलेज, हर विश्व-विध्यालय, वे यही बात दोहराते रहतें हैं कि, "हम शांति के युग में जी रहें हैं।" जब कि वास्तव में विश्व युद्ध लगभग इससे ज्यादा शांतिमय था!
ज्यादातर युद्ध एशिया में घटे हैं। यह ताकतवर देशों और उनके राजनेताओं की रणनीतियों में से एक हैं कि वे हमेशा दुसरे देशों में युद्ध करवाते रहें; सोविअत यूनियन और अमेरिका अफ्गानिस्तान में युद्ध करे। ताकी अफ्गानिस्तान के लोग मारे जाएं, अफ्गानिस्तान एक शमशान घाट बन जाए और अमेरिका और सोविअत यूनियन दोनों हथियार बेच कर मुनाफा कमाए। वे अपने विशेषज्ञ, अपने हथियार भेज रहे हैं, वे अफ्गानिओं को प्रशिक्षित कर रहें हैं और वे अफगानी दुसरे अफगानियों को मार रहें हैं। एक तरफ अमेरिका से हथियार आ रहें हैं और दूसरी तरफ सोवियत यूनियन से। हिरोशिमा के बाद से नबे लाख असैनिक जनता परंपरागत युद्धों में मारी जा चुकी है। पुराने समय में, असैनिक जनता नहीं मारी जाती थी। यह बिलकुल बेहुदा है; यदि तुम्हारी सेनाएं लड़ रही हैं, तो लोग जो सेना में लड़ रहें हैं वे मारे जा सकते हैं, किन्तु मालूम होता है की अब इसमें कोई विवेक, कोई जिम्मेदारी नहीं रही-- नबे लाख लोग जो कि असैनिक जनता है मारे गए हैं। हो सकता है उनमे छोटे बच्चे हों, औरतेंहों, वृद्ध हों--जिन्हें युद्ध से कुछ लेना-देना न हो, जो अपने स्कूलों में पढ़ रहे हों, या फिर अपनी फक्ट्रियों में काम कर रहे हों, या अपनी रसोइओं में खाना पका रहे हों।
अभी कुछ ही दिन पहले, रोनाल्ड रीगन ने बिना किसी कारण के लीबिया पर आक्रमण कर दिया-- उसने लीबिया के असैनिक भागों पर बम गिरा दिया। उसका निशाना कद्दाफी था और क्योंकि नगर में कद्दाफी के तीनघर हैं, इसलिए इन तीनों घरों को नष्ट करना पढ़ा। और उसके घरों पर बम गिराने में दुसरे घरों पर भी बम गिरे और आग में जल गय। और बिलकुल अभी शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि जब बम गिराए जा रहे थे, पेशेवर हत्यारे लीबिया में कद्दाफी को खोज रहे थे क्योंकि सम्भावना थी कि वह बम से नहीं मरे, वह अपने घर में ना हो। तो इसलिए वे आम जनता पर बम गिरा रहे थे और पेशेवर हत्यारे लीबिया के भीतर कद्दाफी को ढून्ढ रहे थे। वे कद्दाफी की बेटी को ही मार सके। और ना तो कद्दाफी ने और ना ही लीबिया के लोगों ने उनके खिलाफ कुछ गलत किया है। और यह एक संयोग है कि जिस दिन इंग्लैण्ड ने रोनाल्ड रीगन को लीबिया पर बम गिराने के लिए इंग्लैंड का एक अड्डे के रूप में इस्तमाल करने की अनुमति दी, इंग्लैण्ड के संविधान ने मुझे अपने एअरपोर्ट के लौन्ज़ पर छ: घंटे ठहरने की भी अनुमति नहीं दी--क्योंकि मैं एक खतरनाक व्यक्ति हूँ! और रोनाल्ड रीगन को एक निर्दोष देश पर बम गिराने के लिए इंग्लैण्ड का इस्तेमाल करने की अनुमति दी, जिसने उसे कोई नुक्सान नहीं पहुंचाया। यह एक ऐसी अंधकारमयी रात है जिसका अब तक मनुष्यता ने सामना नहीं किया है। इस समय का युद्ध का बजट लगभग सात सौ अरब डॉलर सालाना है। हर वर्ष, एक करोड़ पांच लाख लोग कुपोषण और बीमारियों से मरते हैं, और हर वर्ष सात सौ अरब डॉलर युद्ध पर खर्च किये जाते हैं। हर मिनट, तीस बच्चे खाने और सस्ती दवाइयों के आभाव में मर रहें हैं और हर मिनट तेरहलाख डॉलर दुनिया के मिलिटरी बजट में खर्च हो जातें हैं।
ऐसा लगता है हमें जीवन में अब और रुचि नहीं है; हमने आत्मघात करने का निर्णय ले लिया है। आदमी कभी भी इतनी आत्मघाती मनोदशा में नहीं था-- पूरे इतिहास में कभी भी नहीं।
पच्चीस करोड़ बच्चों को प्राथमिक शिक्षा भी नहीं मिली है। एक परमाणु पनडुब्बी तेईस विकासशील देशों के सोलह करोड़ स्कूल जाने वाले बच्चों की पढ़ाई के बजट के बराबर है। केवल एक पनडुब्बी! और ऐसी हजारों सब-मरीन हैं जो पूरी दुनिया में समुद्र में घूम रहीं हैं--अमरीकी और रूसी दोनों--और हर पनडुब्बी के पास दुसरे विश्व युद्ध में इस्तेमाल किये हुए हथियारों से छ: गुना ज्यादा ताकतवर हथियार हैं। और वे इतने महंगे हैं कि उस पैसे से हम अपने बच्चों को शिक्षा और पोषक खाना दे सकते हैं। परन्तु हमारी रुचि उसमे नहीं है।
यह राजनेता हैं जो इस से अपने जीवन में हसक्षेप नहीं लाना चाहते। जो मानवता पर अपना पूर्ण अधिकार ज़माना चाहते हैं-जहाँ उन से ऊपर कोई ना हो। दुनिया के जंगल लगभग दो करोड़ हेक्टर की दर से गुम होते जा रहे है--कैलिफोर्निया से आधा क्षेत्र, और कैलिफोर्निया अमेरिका के सबसे बड़े प्रदेशों में से एक है। अगले बीस से तीस सालों में, सभी ट्रॉपिकल जंगल समाप्त हो जायेंगे क्योंकि यह जंगल तुम्हे जीवन और ऑक्सीजन वायु प्रदान कर रहें हैं। यदि इसी दर पर यह जंगल समाप्त होते रहे, मनुष्यता आक्सीजन की खोज करने में असहाय हो जाएगी, कहां से वह ऑक्सीजन वायु लाएगी? और दुसरे हाथ जो भी कार्बन डाइऑक्साइड तुम बाहर फैंकते हो, वह ये जंगल भीतर लेते हैं। यदि यह जंगल नहीं होते...पहले ही कार्बन डाइऑक्साइड की बहुत मोटी परत आकाश में निरंतर एकत्रित होती जा रही है, केवल बीस मील की सीमा पर जहाँ वातावरण समाप्त होता है। और उस कार्बन डाइऑक्साइड के कारण वातावरण का तापमान बढता चला जा रहा है। यह पहले ही सामान्य से चार डिग्री बढ़ चूका है। यदि सभी जंगल समाप्त हो जाते हैं, तो तापमान इतना बढ़ जाएगा कि दो बातें होंगी: पहला, जीवन का बचना नामुमकिन हो जाएगा, दूसरा, उत्तरी और पूर्वी ध्रुव की सारी बर्फ, हिमालय, ऐल्प्स और दुसरे पहाड़ो की सारी बर्फ उस ताप के कारण पिघलने लगेगी। और नतीजा यह होगा कि सारे सागर चालीस फीट ऊँचे उठ जाएंगे। हमारे सारे शहर, सारे देश डूब जाएंगे; लगभग सारी धरती इसके कारण डूब जाएगी--और यह ऐसा सैलाब नहीं है जो की रुक जाएगा। पर ये राजनेता ऐसा करते जा रहें हैं।
कुछ ही माह पहले मैं नेपाल में था। नेपाल दुनिया का सबसे गरीब देश है, पर बजाये युद्ध की तैयारी छोड़ने के, उसने अपने जंगल बेच दिए हैं--हिमालय के शाश्वतजंगल--सोवियत यूनियन को। और सोवियत यूनियन ने उन सब पहाड़ो को काट डाला है और उन्हें सूखा छोड़ दिया है। और यह उसने क्यों किया है? और अखबार बनाने के लिए। भला इतनी अखबारों की क्या आवश्यकता है? हर दिन एक सी ही तो खबर आती है, और अब जब कि हमारे पास जेआदा बेहतर संचार माध्यम आ गए हैं--अखबार पुराना तरीका है--अब रेडियो है, टैली-विज़न है। क्यों तुम अखबार से चिपके जा रहे हो और जंगलों को नष्ट कर रहे हो? केवल इसलिए कि इन सब राजनेताओं, राष्ट्रपतियों, और प्रधान-मंत्रियों को उसके पहले पृष्ठ पर अपने चित्र; अपने भाषण चाहिए, जो की कोरी बकवास है - छापी जा रही है-- बिना इस बात की परवाह किए कि वह क्या हानि पहुंचा रहे हैं। इसी दौरान दुनिया की जनसंख्या तीस से चालीस प्रतिशत बाद जाने की सम्भावना है, पांच अरब से सात अरब। यह जनसंख्या विस्फोट अकेले ही आधी दुनिया में पानी की आवश्यकता को दुगना कर देगा। भोजन तो अलग...पानी तक मिलना दूभर हो जाएगा, क्योंकि जरूरत दुगुनी हो जाएगी और हमारे पास पीने के लिए उतना पानी उपलभ्द नहीं है। इसके अतिरिक्त यूनाइटेड नेशन की रिपोर्ट कहती है कि विश्व स्तर पर हर वर्ष दुनिया की दो करोड़ हेक्टर उपजाऊ भूमि और चारागाह जमीन बंजर हो जाती है। हर वर्ष एक हजार पेड़ और पशुओं की प्रजाति लुप्त हो जाती है--एक दर जिसके और बढ़ने की ही सम्भावना है। विकासशील देशों में पंद्रह से बीस लाख लोग हर वर्ष कीटनाशक के जहर से पीड़ित होतें हैं, और हर वर्ष लगभग दस हजार मृत्यु कीटनाशकों के प्रभाव से सम्बंधित होती हैं। भारत के प्लानिंग कमीशन के अवसरों की नई रिपोर्ट के अनुसार: "भारत में पानी के स्त्रोत सूखने के कारण हम एक बहुत बड़े पारिस्थितिक विनाश के कगार पर खड़े हैं । अफ्रीका में जो हो रहा है, कुछ ही दशकों में वह भारत के साथ भी होने वाला है।" तुम्हारी जनसंख्य बड़ती जा रही है और तुम्हारी जमीन और बंजर होती जा रही है, तुम्हारे पानी का भंडार कम होता जा रहा है, और क्योंकि जंगल काटे जा चुके हैं, जो नदियाँ नेपल से हो कर बंगलादेश जाती हैं वे हर वर्ष इतनी बाढ़ ला रहीं हैं जैसे की कभी न देखी हो। हजारों लोग मर रहे हैं, हजारों गाँव बस यूँ ही गायब होते जा रहे हैं--क्योंकि वे बड़े पेड़ नदियों के प्रवाह को धीमा रखते थे। अब जब के कोई पेड़ नहीं बचे, नदियाँ इतने तेज प्रवाह से आतीं हैं कि समुद्र इतनी जल्दी एक साथ इतना पानी अपने अन्दर समां पाने के लिए तैयार नहीं है। वह पानी लौटने लगता है और वह लौटता हुआ पानी बांग्लादेश में बाढ़ ले आता है। न तो भारतीय राजनेता और ना ही नेपाली राजनेता पेड़ काटने से रुक रहे हैं। कोई भी मानव जीवन के प्रति उन्मुख नहीं है। किसी का भी इस बात के प्रति झुकाव नहीं है कि वह इस बात की खोजबीन करे कि हमारी प्राथमिकता क्या होनी चाहिए। भारत जैसे एक गरीब देश में इतने अखबार हैं, इतनी मगज़ीन हैं, जो कि बिलकुल अनावश्यक हैं। और वह अखबार को छापने वाला कागज़ खेतो में नहीं उगता, आसमान से नहीं गिरता; उसके लिए तुम्हे पेड़ काटने पड़ते हैं। ऐसे पेड़ जिन्हें बढ़ने में डेड सौ से दो सौ साल लग गए, वे गायब हो जाते हैं। और अपने अखबारों से तुम क्या हासिल कर पाते हो? असली अपराधी ये राजनेता हैं--वे नहीं जो तुम्हारी जेलों में बंद हैं। यदि इसके बदले उल्टा होता कि सारे राजनेता जेल में होते और सारे अपराधी राजनेताओं की जगह पर तो यह दुनिया इससे बहुत बेहतर होती।।।वे ज्यादा मानवीय साबित होते। राजनेता जितना हो सके सच्चाई को छिपाते हैं, जैसे कि सच्चाई को छिपाने से तुम खुच बदल सकते हो।
अब बहुत से देश इस बात को घोषित नहीं करते कि उनके देश में कितने समलैंगि हैं। घरवाले यह नहीं बताते कि उनके परिवार में जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई है वह एड्स से मरा है। वे डाक्टरों को रिश्वत देतें हैं ताकि वे इस बात का सर्टिफिकेट पा सके कि वह हृदयघात से या कैंसर से मारा है--क्योंकि घर वाले इस बात के फिकर में ज्यादा होते हैं कि उनके सम्मान का क्या होगा, कि लोग क्या सोचेंगे: " तुम्हारे घर में किसी की मृत्यु एड्स से हुई है?" परन्तु सत्य को छिपाने का अर्थ है कि।।। उस व्यक्ति की पत्नी भी होगी; उसने वह बीमारी अपनी पत्नी को दे दी होगी और यदि उनके बच्चे भी हैं तो, हो सकता है वे भी उस बीमारी को लेकर पैदा हुए होंगे-- और किसी को पता नहीं चलेगा और वे इसे ऐसे ही फैलाए चले जाएंगे।
यह बीमारी कोई आम यौन रोग नहीं है-- कुछ भी जो तुम्हारे शरीर से बाहर आता है, यहाँ तक के तुम्हारा आंसू भी, वह बीमारी का वायरस लिए रहता है। यदि कोई बच्चा रो रहा है और करुणावश तुम उसके आंसू पोंछते हो तो इस बात का खतरा है कि तुम्हे इससे एड्स हो जाए। थूक वायरस को लिए रहता है, और सारी मनुष्यता को अन्धकार में रखा गया है: चुम्भन लेना तुरंत रोक देना चाहिए--पूरी तरह!
मनुष्यता का केवल एक ही हिस्सा है--वे लोग जो साइबेरिया में रहते हैं, एस्कीमोस--मनुष्यता के पूरे इतिहास में वे ही लोग हैं जिन्होंने कभी चुम्भन नहीं लिया। और जब उन्होंने पहली दफा क्रिस्चियन मिशिनरीस को चुम्भन लेते देखा, वे तो विश्वास ही ना कर पाए: "यह कितने गंदे लोग हैं, एक दुसरे की लार ले रहें हैं! क्या ये मनुष्य हैं या फिर किसी प्रकार के दानव?" उनका तरीका कहीं ज्यादा वैज्ञानिक और स्वच्छ है। वे केवल प्रेम दिखाने के लिए ही चुम्भन नहीं लेते--क्योंकि वह प्रेम न होकर मृत्यु हो सकती है--वे एकदूसरे के साथ नाक रगड़ते हैं; जो कि बहुत स्वच्छ दीखता है, बशर्ते तुम्हे जुकाम ना हो। पिछले दिनों यह माना गया था कि इस समय एक करोड़ लोग एड्स से पीड़ित हैं; और यह कोई पक्की रिपोर्ट नहीं है क्योंकि भारत जैसे देश में यह पता लगाने का ना ही कोई तरीका है--न ही माध्यम।
बस कुछ ही विकसित देशों को पता चला है कि दस लाख लोग पीड़ित हैं....हो सकता है इन सब पिछड़े देशों में दस करोड़ लोग पीड़ित हैं।
उदहारण के तौर पर, अफ्रीका में एड्स किसी भी और जगह से ज्यादा फैला हुआ है। और इस बात का कभी पता नहीं लगने दिया गया था कि अफ्रीकी समलैंगी नहीं हैं, परन्तु उनके भीतर एक अजीब विकृति है: वे स्त्री से संभोग तो करते हैं पर सामने से नहीं।
पूरी दुनिया में छोटे-छोटे गाँव में ऐसे लोग हैं जो जानवरों तक के साथ मैथून करते हैं--और उन्होंने जानवरों तक को एड्स दे दिया है! और अब जानवर अपने दूध के द्वारा, अपने मांस के द्वारा उस एड्स को फैला रहें हैं। सब कुछ मनुष्य के नियंत्रण से बाहर चला गया है। कोई डॉक्टर नहीं चाहता....यदि उसे पता चल भी जाए कि उसके मरीज को एड्स है, तो वह उसे बताता नहीं क्योंकि उसे डर है कि मरीज उससे जिद्द करेगा, "मेरा इलाज करो!" कोई इलाज है ही नहीं। तो डॉक्टर उसे यह समझाने का प्रयत्न करता है, "तुम्हे कोई और बीमारी है," और उसे दुसरे किसी विशेषज्ञ के पास भेज देता है क्योंकि एक एड्स के मरीज के संपर्क में आने में डॉक्टर को खतरा है, नर्सों को खतरा है। पूरा का पूरा स्टाफ ही खतरे में है। जेलों की एक रिपोर्ट में मैंने देखा था.....जेलों में रहने वाले तीस प्रतिशत लोग समलैंगी होते हैं। और यह सही रिपोर्ट नहीं लगती। यह एक न्यूनतम संख्या होगी जिसे जेल प्राधिकारियों ने मान्यता दी होगी--क्योंकि जो लोग बीस, तीस साल से जेलों में रह रहे हैं और स्त्री के संपर्क में नहीं आए हैं, वे एक दुसरे के साथ समलैंगिक सम्बन्ध बनाने के लिए बाध्य हो जाते हैं।
सबसे आसन तरीका होगा.... स्त्रियों के लिए अलग जेल हैं--उन्हें अलग क्यों रखा जाए? कैदियों को एक साथ रहना चाहिए, स्त्रीइयन और पुरुष एक साथ, और तब एड्स और समलैंगिकता से बचाया जा सकता है। परन्तु राजनेता इसके बारे में कुछ नहीं कहेंगे, बस एक डर के कारण। उनका पूरा उद्देश्य बस उन बातों को कहना है जो जनता पसंद करती है, जो जनता की पूर्वधारना और पारंपरिक मन के विपरीत न जाए--क्योंकि इन्ही के वोटों पर तो वे निर्भर हैं।
इसीलिए मैंने कहा कि राजनेताओं को धार्मिक लोगों से सलाह लेते रहना चाहिए; उनकी सलाह पर पूरा ध्यान देना चाहिए।
लेकिन राजीव गाँधी कहते हैं कि धार्मिक लोगों को राजनेताओं से हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। राजनेता धार्मिक लोगों के साथ हस्ताख्षेप कर सकते हैं--इस बारे में, कोई सवाल नहीं खड़े किये गए। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण बात है, पर यह चलते जा रहाहै, और समय बहुत थोड़ा है। मैं बहुत आशावान था। अभी भी मैं और-और आशा करता हूँ कि शायद, किसी खतरनाक स्थिति में, आदमी जाग जाए। परन्तु मेरे ह्रदय में इस बात को लेकर उदासी महसूस होती है क्योंकि मैं देख सकता हूँ कि यदि कुछ न किया गया, तो यह शताब्दी हमारा अंत साबित होगा। और न सिर्फ हमारा अंत, बल्कि पूरे आस्तित्व की चेतना के निर्माण के स्वप्न का अंत। यह इसी गृह पर सफल हो पाया है। इस आस्तित्व में लाखों तारे हैं और हर तारे के दर्जनों गृह हैं; केवल इसी छोटे से गृह पर यह चमत्कार हुआ है कि न केवल यहां जीवन उपस्थित है--यहांचेतना भी उपस्थित है; न केवल यहां चेतना उपस्थित है, किन्तु यहांवे लोग भी हैं जो चेतना के परम शिखर को उपलभध हो चुके हैं: कोई गौतम बुद्ध, कोई सुकरात, कोई पाइथागोरस, कोई चुंग्त्सू।
इस छोटे से गृह से जीवन का मिट जाना इस पूरे ब्रह्माण्ड को इतना दरिद्र कर देगा कि इस स्थिति पर जहां चेतना सम्बुद्ध हो सकती है, उसे लाने में करोड़ों वर्ष लग जाएंगे।
मेरा विषाद मेरे खुद के लिए नहीं है। मैं पूर्ण रूप से संतुष्ट हूं। मृत्यु मुझसे कुछ भी नहीं ले जा सकती। मेरा विषाद इस पूरी मनुष्यता को लेकर है, क्योंकि उनकी मृत्यु उनसे सम्बुद्ध होने का, आनंदपूर्ण होने का, स्वयं को जानने, स्वयं का अर्थ और महत्त्व जानने का सारा अवसर छीन लेगी। वे अंधकार में जिए हैं। क्या वे अंधकार में मर भी जाएंगे?
मैं अपने लोगों से चाहूंगा, कम से कम वे अपने विकास में कोई विलम्ब ना करें, क्योंकि ये राजनेता एक दुसरे को नष्ट करने के लिए बिलकुल तैयार बैठे हैं - सभी और सब कुछ नष्ट करने के लिए । सत्ता के प्रति उनकी भूख अपने चरम पर आ गई है। इससे पहले कि वे वैश्विक आत्महत्या करवाने में सफल हो जाएं, कम से कम तुम्हे अपने भीतर विराजमान परमात्मा का बोध हो जाए। जो भी तुम्हारे संपर्क में आए तुम्हे अपनी प्रसन्नता, अपना मौन और अपनी हंसी उन तक पहुँच देनी चाहिए। अपने मित्रों, परिचितों, प्रेमियों और बच्चों को इससे बेहतर तोहफा तुम नहीं दे सकते।
समय बहुत कम है और काम बहुत अधिक, परन्तु यदि तुम में साहस है, यह चुनौती स्वीकार की जा सकती है। राजनेताओं पर निर्भर मत रहो; वे कुछ नहीं कर सकते; उन्हें तो इस बात का बोध भी नहीं कि वे मनुष्यता को कहां ले जा रहे हैं--किस अन्धकार में।
Osho, The Hidden Splendor, Talk #7
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