निष्क्रिय ध्यान का मतलब है जब शरीर स्थिर है, इसमें क्रिया नहीं होती, विश्राम में होता है । तो इसके लिये हम बुद्ध की विपश्यना विधि के बारे में बात करें । विज्ञान भैरव-तंत्र की व्याख्या में ओशो कहते हैं कि शिव ने जो 112 विधियाँ दी हैं ।
- ध्यान की उसमें से यह पहली विधि है विपश्यना की ।
- दूसरी विधि है होशपूर्ण जीवन ।
बुद्ध ने हमेशा ही अपने शिष्यों को सिखाया कि जो कुछ भी आप करते हैं, जहाँ कहीं भी होते हैं बस वहीं रहिए, नाऊ एंड हियर, अभी और यहीं । छोटे से छोटे काम होशपूर्वक करिए । आप जूते पहन रहे हैं तो देखिए कि आप जूते पहन रहे हैं, कि आपने जूतों को अपने पैरों में डाला, फिर बंध बाँधे; कपड़े पहन रहे हैं तो देखिए कि शर्ट में आपने बटन लगाए, लगा रहे हैं एक बटन, दूसरा बटन; आप खाना खा रहे हैं तो देखिए, होश में कि आपने रोटी तोड़ी, सब्ज़ी में डाली, मुँह में रखी, रोटी चबा रहे हैं; पानी पियें तो देखें कि पानी आपकी जीभ को छू रहा है, और गले तक जा रहा है, और उतर रहा है अंदर । हर एक चीज़ को जागे-जागे करें, सोये-सोये न करें । छोटी सी छोटी चीज़ आपके ध्यान को गहरा सकती है यदि आप जागरुक हो कर रहे हैं । कंघी कर रहे हैं तो देखिए कंघी आपने उठायी, बालों में फेरी; सुबह आप ब्रश करते हैं तो देखिए ब्रश पहले एक तरफ़ जा रहा है दाँतों में, फिर दूसरी तरफ़ जा रहा है । देखें होश में सब कुछ । और जब कभी आप विचारों में उलझें तो वही विधि, साँसों को झटके से छोड़ दें, आप फिर वहीं आ जायेंगे । फिर अपने रास्ते चल पड़ें ।
तो हमने आज चार सक्रिय ध्यान और दो निष्क्रिय ध्यान की विधियों के सम्बन्ध में चर्चा की । आप इनमें से कोई भी विधि चुन सकते हैं अपने लिये, जो आपको उपयुक्त लगे, जो आपको सुविधाजनक लगे और शुरू कर सकते हैं । वैसे आमतौर पर ध्यान सक्रिय ध्यान से ही शुरू किया जाना चाहिए क्योंकि सामान्यतः हम इतने दमन में जीते रहें हैं कि इतना कुछ इकट्ठा हो गया है हमारे अचेतन में – घृणा, क्रोध, रोष, द्वेष – इतना इकट्ठा हो चुका है कि वो मन को शांत होने देता ही नहीं । तो सबसे पहले हमें अपने अचेतन को ख़ाली करना होगा । तभी हम जब विपश्यना कर रहें होंगे तो साँस पर ध्यान केंद्रित कर पायेंगे । नहीं तो जैसे ही ध्यान केंद्रित करना शुरू करेंगे, विचारों की भीड़, विचारों की बाढ़ सारी शांति को भंग कर देगी । इसीलिए यह बहुत ही आवश्यक है कि आप कुछ समय तक सक्रिय ध्यान करें । कोई भी एक विधि चुन लें अपने लिए । उसके पश्चात् आप निष्क्रिय ध्यान में प्रवेश कर सकते हैं । और दोनों ध्यान साथ-साथ भी किये जा सकते हैं । कुछ समय सक्रिय, कुछ समय निष्क्रिय । यदि आप लेट कर कभी विपश्यना करेंगे तो आप देखेंगे कि आप बहुत जल्दी सो जाते हैं । शवासन निद्रासन बन जाता है क्योंकि शरीर को जागरण की समझ ही नहीं है । वैसे, हम कितने ही निष्क्रिय ध्यान करते रहें, लड़ते रहें, लेकिन अचेतन की हलचल ध्यान सधने ही नहीं देगी । इसीलिए पहले थोड़ा अचेतन को ख़ाली करें । सक्रिय और निष्क्रिय विधियों के बीच एक समन्वय स्थापित करें । और आज से ही, बल्कि अभी से ही इन विधियों को करें । जैसे कि होशपूर्ण जीवन की जो विधि है इस टेप को सुनते सुनते आप देखें कि अंदर कोई सुनने वाला है जो सुन रहा है । तुरन्त जागरुक होयें । बस धैर्य, लगन, ईमानदारी के साथ ध्यान करते रहें । आप अपने जीवन में निश्चित ही आनंदपूर्ण रूपान्तरण पायेंगे ।
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