Osho - Hindi Book Series : K

Osho

  • Ka Sove Din Rein

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प्रेम एक रहस्य है। सबसे बड़ा रहस्य ! रहस्यों का रहस्य !
प्रेम से ही बना है अस्तित्व और प्रेम से ही समझ में आता है। प्रेम से ही हम उतरे हैं जगत में और प्रेम की सीढ़ी से ही हम जगत के पार जा सकते हैं। प्रेम को जिसने समझा उसने परमात्मा को समझा। और जो प्रेम से वंचित रहा वह परमात्मा की लाख बात करे, बात ही रहेगी, परमात्मा उसके अनुभव में न आ सकेगा। प्रेम परमात्मा को अनुभव करने का द्वार है। प्रेम आंख है।
मोहब्बत एक राज है -- एक भेद, एक कुंजी -- जिससे अस्तित्व के सारे ताले खुल जाते हैं।. . .
पे्रम एक क्रांति है, क्योंकि तुम उठने लगते हो -- जीवन की क्षुद्रता से विराट की तरफ; सीमा से असीम की तरफ।
~ ओशो
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  • Kahe Kabir Diwana

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कबीर अनूठे हैं। और प्रत्येक के लिए उनके द्वारा आशा का द्वार खुलता है। 
ओशो 

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  • Kan Thore Kankar

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बाबा मलूकदास—यह नाम ही मेरा हृदय-वीणा को झंकृत कर जाता है। जैसे अचानक वसंत आ जाय! जैसे हजारों फूल अचानक झर जायं! नानक से मैं प्रभावित हूं; कबीर से चकित हूं; बाबा मलूकदास से मस्त। ऐसे शराब में डूबे हुए वचन किसी और दूसरे संत के नहीं हैं। नानक में धर्म का सारसूत्र है, पर रूखा-सूखा। कबीर में अधर्म को चैनौती है—बड़ी क्रांतिकारी, बड़ी विद्रोही। मलूक में धर्म की मस्ती है; धर्म का परमहंस रूप; धर्म को जिसने पीया है, वह कैसा होगा। न तो धर्म के सारतत्व को कहने की बहुत चिंता है, न अधर्म से लड़ने का कोई आग्रह है। धर्म की शराब जिसने पी है, उसके जीवन में कैसी मस्ती की तरंग होगी, उस तरंग से कैसे गीत फूट पड़ेंगे, उस तरंग से कैसे फूल झरेंगे, वैसे सरल अलमस्त फकीर का दिग्दर्शन होगा मलूक में।
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  • Kano Suni So

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‘संत दरिया प्रेम की बात करेंगे। उन्होंने प्रेम से जाना। इसके पहले कि हम उनके वचनों में उतरें...अनूठे वचन हैं ये। और वचन हैं बिलकुल गैर-पढ़े लिखे आदमी के। दरिया को शब्द तो आता ही नहीं था; अति गरीब घर में पैदा हुए—धुनिया थे, मुसलमान थे। लेकिन बचपन से ही एक ही धुन थी कि कैसे प्रभु का रस बरसे, कैसे प्रार्थना पके। बहुत द्वार खटखटाए, न मालूम कितने मौलवियों, न मालूम कितने पंडितों के द्वार पर गए लेकिन सबको छूंछे पाया। वहां बात तो बहुत थी, लेकिन दरिया जो खोज रहे थे, उसका कोई भी पता न था। वहां सिद्धांत बहुत थे, शास्त्र बहुत थे, लेकिन दरिया को शास्त्र और सिद्धांत से कुछ लेना न था। वे तो उन आंखों की तलाश में थे जो परमात्मा की बन गई हों। वे तो उस हृदय की खोज में थे, जिसमें परमात्मा का सागर लहराने लगा हो। वे तो उस आदमी की छाया में बैठना चाहते थे जिसके रोएं-रोएं में प्रेम का झरना बह रहा हो। सो, बहुत द्वार खटखटाए लेकिन खाली हाथ लौटे। पर एक जगह गुरु से मिलन हो ही गया।’ - ओशो
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  • Karuna aur Kranti

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"करुणा और क्रांति’--ऐसा शब्दों का समूह मुझे अच्छा नहीं मालूम पड़ता है। मुझे तो लगता है--करुणा यानी क्रांति। करुणा अर्थात क्रांति। कम्पैशन एंड रेवोल्यूशन ऐसा नहीं, कम्पैशन मीन्स रेवोल्यूशन। ऐसा नहीं कि करुणा होगी--और क्रांति होगी। अगर करुणा आ जाए, तो क्रांति अनिवार्य है। क्रांति सिर्फ करुणा की पड़ी हुई छाया से ज्यादा नहीं है। और जो क्रांति करुणा के बिना आएगी, वह बहुत खतरनाक होगी। ऐसी बहुत क्रांतियां हो चुकी हैं। और वे जिन बीमारियों को दूर करती हैं, उनसे बड़ी बीमारियों को पीछे छोड़ जाती हैं।" ओशो

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  • Kashta Dukh Aur Shanti

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आज सारी मनुष्यता बीमार है। प्रकृति के चारों तरफ दीवालें उठा दी गई हैं और आदमी उनके भीतर बैठ गया है। और यह आदमियत स्वस्थ नहीं हो सकेगी जब तक कि चारों तरफ उठी हुईं दीवालों को हम गिरा कर प्रकृति से वापस संबंध न बांध सकें। ... पहला संबंध अद्वैत से होता है|

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  • Kople Phir Phoot

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अंतिम रुप में मैं तुमसे यही कहना चाहता हूं कि अगर तुम्हारे जीवन में जरा सी भी बुद्धि है, तो इस चुनौती को स्वीकार कर लेना कि बिना अपने को जाने अरथी को उठने नहीं दोगे। हां, अपने को जान कर कल की उठने वाली अरथी आज उठ जाए तो भी कोई हर्ज नहीं। क्योंकि जिसने अपने को जान लिया, उसकी फिर कोई मृत्यु नहीं है। अमृत का अनुभव एकमात्र विकास है।

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  • Kranti Sutra

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जो लोग भी जीवन में क्रांति चाहते हैं, सबसे पहले उन्हें समझ लेना होगा कि बंधा हुआ आदमी कभी भी जीवन की क्रांति से नहीं गुजर सकता है। और हम सारे ही लोग बंधे हुए लोग हैं। यद्यपि हमारे हाथों पर जंजीरें नहीं हैं, हमारे पैरों में बेड़ियां नहीं हैं|

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  • Krishna Smriti

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सोलह कला संपूर्ण व्यक्तित्व वाले कृष्ण कोई व्यक्ति नहीं, एक संपूर्ण जीवन-दृ‍ष्टि के रूप में हमारे जीवन के कैनवस पर अपने रंग बिखेरते चलते हैं। भारतीय जन-मानस पर कृष्ण की इतनी गहरी छाप ने ओशो को समझने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। कृष्ण ने जीवन को उसके सभी आयामों में अंगीकार किया है। संस्कारों में बंधे व्यक्ति के लिए यह इतना आसान नहीं परंतु भले ही अवतार की छवि ‍के रूप में, लेकिन कहीं तो उसका अंतरतम उसे सब स्वीकारने को आंदोलित करता है। उसी साहस को जुटाने के लिए शायद ओशो जैसे रहस्यदर्शी द्वारा इस पुस्तक में की गयी चर्चा सहायक होगी। २६ सितंबर १९७० में नव-संन्यास का सूत्रपात हुआ और २८ सितंबर को ओशो ने इस विषय पर जो प्रवचन दिया वह परिशिष्ट के रूप में इस पुस्तक में जोड़ा गया है जिसमें नव-संन्यास को लेकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर हैं।
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  • Kya Ishwar Mar Gaya Hai

कौन सा ईश्र्वर झूठा ईश्वर है? मंदिरों में जो पूजा जाता है, वह ईश्र्वर झूठा है, वह इसलिए झूठा है कि उसका निर्माण मनुष्य ने किया है। मनुष्य ईश्र्वर को बनाए, इससे ज्यादा झूठी और कोई बात नहीं हो सकती है।

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  • Kya Sove To Bawari

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‘अगर कोई भी विचार पहुंचाना हो, लगता हो कि प्रीतिपूर्ण है, पहुंचाने जैसा है, तो उसके लिए बल इकट्ठा करना, संगठित होना, उसके लिए सहारा बनना एकदम जरूरी है। तो उसके लिए तो डिटेल्स में सोचें, विचार करें। लेकिन ये सारी बातें जो मुझे सुझाई हैं, ये सब ठीक हैं।
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