सम्बन्ध एक ढांचा है -ओशो
सम्बन्ध एक ढांचा है, प्रेम का कोई ढांचा नहीं है। तो प्रेम सम्बंधित तो अवश्य होता है, पर कभी सम्बन्ध नहीं बनता। प्रेम एक क्षण-से-क्षण की प्रक्रिया है। स्मरण रखें। प्रेम तुम्हारे होने कि स्तिथि है, वह कोई सम्बन्ध नहीं। ऐसे लोग हैं जो प्रेम करते हैं और ऐसे भी जो प्रेम नहीं करते। जो लोग प्रेम नहीं करते वे संबंधो के माध्यम से प्रेममय होने का नाटक करते हैं। प्रेम करने वाले लोगों को सम्बन्ध बनाने की कोई आवश्यकता नहीं होती-- प्रेम पर्याप्त है।
एक प्रेम सम्बन्ध में पड़ने के बजाय तुम एक प्रेम करने वाले व्यक्ति बनो--क्योंकि सम्बन्ध एक दिन बनते हैं और अगले ही दिन मिट जाते हैं। वे फूलों के सामान हैं; सुबह खिलते हैं, और श्याम ढलते ही विदा हो जाते हैं।
तुम एक प्रेममय व्यक्ती बनो, मंत्रा।
परन्तु लोगों को प्रेममय व्यक्ती बनने में बहुत कठिनाई होती है, तो वे एक सम्बन्ध खड़ा कर लेते हैं-- और इस तरह से बेफकूफ बनाते है “मैं एक सम्बन्ध में हूँ इसलिए मैं अब एक प्रेममय व्याक्ति हूँ।" और वह सम्बन्ध चाहे किसी पर एकाधिकार ज़माने वाला, सबसे अलग कर देने वाला हो।
हो सकता है वो सम्बन्ध बस किसी डर से बनाया गया हो, जिसका प्रेम से कुछ लेना-देना न हो। हो सकता है सम्बन्ध मात्र एक सुरक्षा हो--आर्थिक या कोई और। सम्बन्ध की आवश्यकता केवल इसलिए होती है क्योंकि प्रेम नहीं है। सम्बन्ध एक विकल्प है।
सचेत हो जाओ! सम्बन्ध प्रेम को नष्ट कर देता है, वह उसके जन्म की सारी संभावनाओं को नष्ट कर देता है।
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