उत्सव - ओशो
उत्सव मेरे जीवन जीने के ढंग की बुनियाद है--त्याग नहीं, आनंद। आनंद सभी सुंदरताओं में, सभी उल्लास में, वो सब जो कुछ जीवन लाता है, क्योंकि यह सारा जीवन परमात्मा का उपहार है। मेरे लिए जीवन और परमात्मा पर्यायवाची है। सच तो यह है कि जीवन ‘परमात्मा’ से अधिक अच्छा शब्द है। परमात्मा दार्शनिक शब्द है जबकि जीवन वास्तविक है, अस्तित्वगत है। ‘परमात्मा’ शब्द सिर्फ शास्त्रों में होता है। यह मात्र शब्द है, निरा शब्द है। जीवन तुम्हारे भीतर है और बाहर है--वृक्षों में, बादलों में, तारों में। यह सारा अस्तित्व जीवन का नृत्य है ।
जीवन को प्रेम करो। अपने जीवन को संपूर्णता से जीओ, जीवन के द्वारा दिव्य से मदमस्त हो जाओ। मैं जीवन के बहुत गहन प्रेम में हूं, इसी कारण मैं उत्सव सिखाता हूं। हर चीज का उत्सव मनाया जाना चाहिए; हर चीज को जीया जाना चाहिए, प्रेम किया जाना चाहिए। मेरे लिए कुछ भी लौकिक नहीं है और कुछ भी पारलौकिक नहीं है। सब कुछ पारलौकिक है, सीढ़ी की सबसे निचली पायदान से सबसे ऊपर की पायदान तक। यह एक ही सीढ़ी है : शरीर से लेकर आत्मा तक, शारीरिक से आध्यात्मिक तक, सैक्स से समाधि तक--सब कुछ दिव्य है।
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