Bhagat sinh Ki Maut - Osho


👉 भगत सिंह की मौत के साथ ही हिंदुस्तान की जवानी मर गई -_ओशो

            मैंनें एक मजाक सुना है। मैंनें सुना है, एक युवक एक युवती से प्रेम करता था और उसके प्रेम में दीवाना था, लेकिन इतना कमजोर था कि हिम्मत भी नहीं जुटा पाता था कि विवाह करके उस लड़की को घर ले आये, क्योंकि लड़की का बाप राजी नहीं था।
फिर किसी समझदार ज्ञानी ने उसे सलाह दी कि अहिंसात्मक सत्याग्रह क्यों नहीं करता?
कमजोर कायर, वह डरता था, उसको यह बात जंच गयी। कायरों को अहिंसा की बात एकदम जंच जाती है _ इसलिए नही की अहिंसा ठीक है, बल्कि कायर इतने कमजोर होते हैं कि कुछ और नहीं कर सकते। 
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      गांधीजी की अहिंसा का जो प्रभाव इस देश पर पड़ा वह इसलिए नहीं कि लोगों को अहिंसा ठीक मालूम पड़ी। लोग हजारों साल के कायर है और कायरो को यह बात समझ में पड़ गई कि ठीक है, इसमें मरने मारने का डर नहीं हम आगे जा सकते हैं। लेकिन तिलक, गांधीजी की अहिंसा से प्रभावित नहीं हो सके, सुभाष भी प्रभावित नहीं हुये। भगतसिंह फांसी पर लटक गया और हिंदुस्तान में एक पत्थर नहीं फेंका गया उसके विरोध में! आखिर क्यों! उसका कुल कारण यह था कि हिंदुस्तान जन्मजात कायरता में पोषित हुआ है। 

       भगतसिंह फांसी पर लटक रहे थे, गांधी वायसराय से समझौता कर रहे थे और समझौते में हिंदुस्तान के लोगों को आशा थी कि शायद भगतसिंह बचा लिया जाएगा, लेकिन गांधीजी ने एक शर्त रखी कि मेरे साथ जो समझौते हो रहा है उस समझौते के आधार पर सारे कैदी छोड़ दिये जायेंगे लेकिन सिर्फ वे ही कैदी जो अहिंसात्मक ढंग के कैदी होंगे। उसमें भगतसिंह नहीं बच सके, क्योंकी उसमें एक शर्त जुड़ी हुई थी कि अहिंसात्मक कैदी ही सिर्फ छोड़े जायेंगे। भगतसिंह को फांसी लग गयी।
       जिस दिन हिंदुस्तान में भगतसिंह को फांसी हुई उस दिन हिंदुस्तान की जवानी को भी फांसी लग गयी। उसी दिन हिंदुस्तान को इतना बड़ा धक्का लगा जिसका कोई हिसाब नहीं। गांधी की भीख के साथ हिंदुस्तान का बुढापा जीता, भगतसिंह की मौत के साथ हिंदुस्तान की जवानी मरी।
क्या भारत की युवा पीढ़ी ने कभी इस पर सोचा है?

        उस युवक को किसी ने सलाह दी, तू पागल है, तेरे से कुछ और न बन सकेगा, अहिंसात्मक सत्याग्रह कर दे। वह जाकर उस लड़की के घर के सामने बिस्तर लगाकर बैठ गया और कहा कि मैं भूखा मर जाउंगा, आमरण अनशन करता हूँ, मेरे साथ विवाह करो । घर के लोग बहुत घबरायें, क्योंकि वह और कुछ धमकी देता तो पुलिस को खबर करते लेकिन उसने अहिंसात्मक आंदोलन चलाया था और गांव के लड़के भी उसका चक्कर लगाने लगे। वह अहिंसात्मक आंदोलन है, कोई साधारण आंदोलन नहीं है और प्रेम में भी अहिंसात्मक आंदोलन होना ही चाहिए। 

          घर के लोग बहुत घबरायें। फिर बाप को किसी ने सलाह दी कि गांव में जाओ, किसी रचनात्मक, किसी सर्वोदयी, किसी समझदार से सलाह लो कि अनशन में क्या किया जा सकता है। बाप गये, हर गांव में ऐसे लोग हैं जिनके पास और कोई काम नहीं है। वे रचनात्मक काम घर बैठे करते है। बाप ने जाकर पूछा, हम क्या करें बड़ी मुश्किल मे पड़ गये हैं। अगर वह छुरी लेकर धमकी देता तो हमारे पास इंतजाम था, हमारे पास बंदूक है, लेकिन वह मरने की धमकी देता है अहिंसा से। उस आदमी ने कहा घबराओ मत, रात मैं आऊँगा, वह भाग जायेगा। वह रात को एक बूढ़ी वेश्या को पकड़ लाया उस वेश्या ने जाकर उस लड़के के सामने बिस्तर लगा दिया और कहा कि मैं आमरण अनशन करती हूँ, तुमसे विवाह करना चाहती हूं। वह  रात बिस्तर लेकर लड़का भाग गया। 
         गांधीजी ने अहिंसात्मक आंदोलन के नाम पर, अनशन के नाम पर, जो प्रक्रिया चलायी थी, भारत उस प्रकिया से बर्बाद हो रहा है। हर तरह की नासमझी इस आंदोलन के पीछे चल रही है। किसी को आंध्र अलग करना हो तो अनशन कर दो, कुछ भी करना हो, आप दबाव डाल सकते है और भारत को टुकड़े टुकड़े किया जा रहा है, भारत को नष्ट किया जा रहा है। वह एक दबाव मिल गया है आदमी को दबाने का। मर जायेगे, अनशन कर देंगे, यह सिर्फ हिंसात्मक रूप है, अहिंसा नहीं है।

                            ओशो
      "अस्वीकृति में उठा हाथ" प्रवचन माला से

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