Osho Hindi Books
Series :R
- Ram Dware :
भारत का आकाश संतों के सितारों से भरा है। अनंत—अनंत सितारे हैं, यद्यपि ज्योति सबकी एक है। संत रैदास उन सब सितारों में ध्रुवतारा हैं— इसलिए कि शूद्र के घर में पैदा होकर भी काशी के पंडितों को भी मजबूर कर दिया स्वीकार करने को। महावीर का उल्लेख नहीं किया ब्राह्मणों ने अपने शास्त्रों में। बुद्ध की जड़ें काट डालीं, बुद्ध के विचार को उखाड़ फेंका। लेकिन रैदास में कुछ बात है कि रैदास को नहीं उखाड़ सके और रैदास को स्वीकार भी करना पड़ा।
ब्राह्मणों के द्वारा लिखी गई संतों की स्मृतियों में रैदास सदा स्मरण किए गए। चमार के घर में पैदा होकर भी ब्राह्मणों ने स्वीकार किया— —वह भी काशी के ब्राह्मणों ने! बात कुछ अनेरी है, अनूठी है।
महावीर को स्वीकार करने में अड़चन है, बुद्ध को स्वीकार करने में अड़चन है। दोनों राजपुत्र थे जिन्हें स्वीकार करना ज्यादा आसान होता। दोनों श्रेष्ठ वर्ण के थे, दोनों क्षत्रिय थे। लेकिन उन्हें स्वीकार करना मुश्किल पड़ा।
रैदास में कुछ रस है, कुछ सुगंध है— जो मदहोश कर दे। रैदास से बहती है कोई शराब, कि जिसने पी वही डोला। और रैदास अड्डा जमा कर बैठ गए थे काशी में, जहां कि सबसे कम संभावना है जहां का पंडित पाषाण हो चुका है। सदियों का पांडित्य व्यक्तियों के हृदयों को मार डालता है, उनकी आत्मा को जड़ कर देता है। रैदास वहां खिले, फूले। रैदास ने वहां हजारों भक्तों को इकट्ठा कर लिया। और छोटे—मोटे भक्त नहीं,मीरा जैसी अनुभूति को उपलब्ध महिला ने भी रैदास को गुरु माना! मीरा ने कहा है. गुरु मिल्या रैदास जी! कि मुझे गुरु मिल गए रैदास। भटकती फिरती थी, बहुतों में तलाशा था लेकिन रैदास को देखा कि झुक गई। चमार के सामने राजरानी झुके तो बात कुछ रही होगी। यह कमल कुछ अनूठा रहा होगा! बिना झुके न रहा जा सका होगा।
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