संकल्प साधना - 2
संकल्प कैसे काम करता है? - ओशो
अचेतन है संकल्प का मार्ग, और ध्यान की सीढ़ी है संकल्प ।
हमारा संकल्प बहुत ही क्षीण हो गया है । नाम मात्र को ही रह गया है। सुबह जिस बात का संकल्प हम लेते हैं शाम होते - होते वह बात ही भूला देते हैं । जीवन की छोटी - छोटी बातों को ही हम नहीं समझ पाते हैं, तंबाखू और धूम्रपान जैसे व्यसनों ने हमें अपना गुलाम बना लिया है । रोज यह कह कर कि "आज आखरी बार है... कल से ऐसा नहीं होगा..." हम अपने मन की चालबाजियों में फंसते चले जाते हैं ।
छोटे छोटे सुख सारा जीवन हमें अपने में उलझाए रखते हैं । हममें इतना संकल्प भी नहीं है कि हम छोटे - छोटे व्यसनों को छोड़ पाएं! छोटी मोटी आदतों को बदल पाएं! जब हममें इतना भी संकल्प नहीं है तो फिर ध्यान के लिये तो बहुत अधिक संकल्प की जरूरत होगी! ध्यान तो महा संकल्प है । यानी संकल्प का पूरा होना ही ध्यान की उपलब्धि है!
हमारे शरीर पर हमारे मन का अधिकार है । वह इसे अपने हिसाब से संचालित करता है । दूसरे भाव वाले तल पर भी हमारा कोई अधिकार नहीं, प्रेम, क्रोध, कामवासना, सारे मनोविकार हमारे बावजूद सक्रिय हो उठते हैं, उन पर भी हमारा कोई वश नहीं चलता ।बाद में हम यही कहते हैं कि "मैंने तो ऐसा चाहा ही नहीं था!" यानी हमारे न चाहने के बावजूद ऐसा घटा है!
तीसरे विचारों वाले तल पर तो हमारा बिलकुल भी वश नहीं है । वह हमें चौबिसों घंटे अपने में उलझाए रखता है । दिन में विचार और रात में स्वप्न के रूप में । दिन में चेतन और रात में अचेतन के रूप में । हमें स्वयं ही पता नहीं होता कि कब हम विचारों से स्वप्न में गति कर गये हैं और हमारा शरीर नींद में प्रवेश कर गया गया है...।
जीवन में कभी - कभी ही ऐसा कोई क्षण आता है जब हम विचारों के इस मकड़जाल से बाहर निकल पाते हैं ।अचानक घटी कोई घटना ही हमें थोड़ा झिंझोड़ती है, थोड़ा होश लाती है ... जैसे अभी - अभी हमारा एक्सीडेंट होते - होते बचा हो! अचानक हम हठात खडे़ रह जाते हैं, पूरा शरीर कंपने लगता है, श्वास गहरी हो जाती है, दिल की धड़कनें तेज होकर सुनाई देने लगती है, मन में कोई विचार नहीं और सिर के भीतर होता है एक सन्नाटा... यही... यही सन्नाटा है अचेतन का, अनाहत का, अनहद नाद का...! हम ठीक उस स्थिति में होते हैं जैसे हमारा शरीर तो गहरी नींद में हो और भीतर हम जाग जाएं । जहां कोई स्वप्न न हों, कोई विचार न हों, हम निर्विचार और बोध से भरे हुए हों ।
क्यों हमारा संकल्प इतना क्षीण है? क्यों हम स्वयं को इतना विवश पाते हैं?
क्योंकि हमारे मन का सिर्फ दस प्रतिशत हिस्सा जागा हुआ होता है, बाकी नब्बे प्रतिशत हिस्सा सोया होता है । वह जो नब्बे प्रतिशत हिस्सा सोया होता है, वह रात तब जागता है जब हमारा शरीर नींद में चला गया होता है और हमारा जागा हुआ दस प्रतिशत हिस्सा सो चुका होता है । चूंकि हमारे मन का यह जाग्रत दसवां हिस्सा जिसे चेतन मन कहा गया है, यह संकल्प लेता है कि व्यसन नहीं करूंगा, या कि क्रोध नहीं करूंगा, कि टेंशन नहीं करूंगा । लेकिन नब्बे प्रतिशत हिस्सा, जिसे अचेतन कहा गया है और जो इससे बहुत बड़ा है, उसे तो इस दसवें हिस्से चेतन मन द्वारा लिये गये संकल्प का कोई पता ही नहीं नहीं होता है!
चेतन मन जो संकल्प लेता है, उस संकल्प की जानकारी जब तक उस बड़े हिस्से अचेतन मन को नहीं होगी, तब तक संकल्प नहीं साधा जा सकता है! लेकिन संकल्प के समय तो वह सोया रहता है । और चेतन मन, जिसने संकल्प लिया था , मन के दूसरे बड़े हिस्से अचेतन के जगने पर यानी शरीर के नींद में जाने पर यह चेतन मन सो जाता है । तो कैसे हमारा संकल्प मन के बड़े हिस्से अचेतन तक पहुचे ताकि हमारी संकल्प शक्ति का हमें बोध हो और हम उसे सीढ़ी बनाकर ध्यान में प्रवेश कर सकें ।
दिन में हमारा दसवां हिस्सा चेतन मन जागा हुआ होता है और बड़ा हिस्सा अचेतन मन सोया हुआ होता है । और अचेतन जगता है चेतन के सो जाने पर, यानी शरीर के नींद में जाने पर ।
और मन के इस बड़े हिस्से अचेतन की एक खास विशेषता यह है, कि वह बहुत ही मासूम और भोला है । वह कभी कोई शिकायत नहीं करता, कभी किसी बात पर तर्क नहीं करता, कभी कोई प्रश्न ही नहीं उठाता कि "क्या होगा इससे, या ऐसा करने से ।" जबकि हमारा दसवां हिस्सा, हमारा जाग्रत या कि चेतन मन हर बात पर तर्क करता है कि "क्या होगा सिगरेट पीने से! केंसर ही होगा न! एक दिन तो मरना ही है!" इस तरह यह तर्क करते हुए हर बात को टालता रहता है और हमारा संकल्प कभी भी जग नहीं पाता ।
लेकिन मन का बड़ा हिस्सा अचेतन, वह स्वीकार लेता है, यदि उससे कहें कि "सिगरेट नहीं पीना है।" तो वह सिगरेट की तलब ही नहीं लगने देगा। जैसे ही हम भोजन करते हैं अचेतन तलब उठा देता है और हम धूम्रपान शुरू कर देते हैं। यदि हम उसे कह दें तो वह तलब नहीं उठने देगा, तलब की जगह होगी एक मीठी-मीठी खुमारी, जो धूम्रपान की अनुपस्थिति से उपजी होती है।
अचेतन बहुत ही आज्ञाकारी है। वह प्रश्न ही नहीं उठाता और हमारी बहुत ही मदद करता है । हमारी जो भी अधूरी ईच्छाएं हैं, उन्हे सपना दिखाकर पूरी करता है । और इतना भोला है कि बेतुकी बातों को भी स्वीकार लेता है ।सपने में हमारा मित्र चला आ रहा है और पास आकर वह किसी जानवर में, घोड़े में परिवर्तित हो जाता है और अचेतन उसे गले लगा लेता है, स्वीकार लेता है, प्रश्न ही नहीं उठाता है कि मेरा यह मित्र घोड़ा कैसे हो गया? वह तो नींद से बाहर आकर चेतन मन इसे अपनी नासमझी समझ हंसता है।
जब अचेतन नींद में जागा हुआ होता है और सपने में बेतुकी बातों को भी स्वीकार कर लेता है, तो हमारी छोटी सी बात, कि "कोई व्यसन नहीं करूंगा और ध्यान में प्रवेश करके ही रहूँगा" क्यों नहीं स्वीकार सकता!! यदि ये छोटे - छोटे संकल्प हम उस तक पहुँचा देते हैं तो वह स्वीकार लेता है और हमारा संकल्प जाग्रत होने लगता है, हमारी संकल्प शक्ति प्रगाढ़ होने लगती है और हमारा भीतर प्रवेश आसान हो जाता है ।
अब प्रश्न यह उठता है कि अचेतन तक संकल्प पहुँचाएं तो पहुँचाएं कैसे? क्योंकि जब वह जगता है तब हमारा संकल्प लेने वाला चेतन मन सो जाता है, नींद में चला जाता हैं । हमें पता ही नहीं होता कि कब हम जाग्रत अवस्था से नींद में प्रवेश कर गए ।और कब हम विचारों से स्वप्न में गति कर गए?
हमें भले पता न चलता हो लेकिन जागरण और नींद के बीच एक क्षण होता जब हम जागरण से नींद में प्रवेश कर रहे होते हैं, चेतन से अचेतन में गति कर रहे होते हैं विचार से स्वप्न में प्रवेश कर रहे होते हैं । वह घड़ी महत्वपूर्ण धड़ी होती है । जैसे हम बस में सफर कर रहे हैं और सामने से जो बस आ रही है उसमें हमारा भाई आ रहा है। यदि हमें उससे कुछ कहना हो तो जैसे ही सामने से आनेवाली बस हमारी बस के निकट से गुजरती है और सामने खिड़की से हमें भाई दिखलाई पड़े और हम चिल्लाकर जो कहना हो वह कह दें ताकि वह सुन ले । इसी भांति यदि हम नींद में जाने से पूर्व, यानी जब जागरण विदा हो रहा हो और नींद अभी आई न हो तब संकल्प को दोहराएं तो संकल्प अचेतन में प्रवेश कर जाता है, यानी नींद में उतरते समय चेतन के द्वारा दोहराया संकल्प अचेतन सुन लेता है ।
जिस भांति परिक्षा के समय आधी रात तक पढ़ाई करने के बावजूद सुबह जल्दी नींद टूट जाती है । क्योंकि सोते समय एक ही विचार होता है, सुबह उठने का । वह विचार अचेतन में प्रवेश कर जाता है और अचेतन सुबह हमें जगा देता है वह भी ठीक समय पर । ठीक उसी भांति हमारे चेतन द्वारा दोहराया संकल्प भी अचेतन सुन लेता है और वह संकल्प को पूरा करने के लिये राजी हो जाता है और संकल्प शक्ति जगना शुरू हो जाती है।
तो संकल्प की शक्ति को जगाने के लिये हमें अपने संकल्प को अचेतन में प्रवेश करवाना होगा, नींद में जाने से पूर्व हमें अपने संकल्प को दोहराना होगा ।
संकल्प का सूत्र देते हुए सद्गुरु कहते हैं, संकल्प के इस प्रयोग को सोते समय शुरू करें। पहले धीरे से पेट सिकोड़ लें और फेफड़े और पेट से सारी श्वास बाहर फेंक दें। अब श्वास को भीतर नहीं लें, बाहर ही रोक दें और संकल्प दोहराएं कि "मैं ध्यान में प्रवेश करके रहूंगा" जितनी देर आप बाहर श्वास रोक सकें, रोके रहें और संकल्प दोहराते रहें।
फिर धीरे से श्वास को भीतर लें, फेफड़े और पूरा पेट श्वास से भर लें और अब श्वास को भीतर रोक लें, जितनी देर तक आप भीतर रोक सकें और पुनः संकल्प को दोहराएं कि "मैं ध्यान में प्रवेश करके रहूंगा"
इस तरह श्वास को छ:बार बाहर रोक कर संकल्प दोहराएं और छ:बार भीतर रोककर दोहराएं।
उसके बाद संकल्प को भीतर मन में दोहराते हुए नींद में चले जाएं।
जब हम श्वास को बाहर या भीतर रोकते हैं, उस समय हमारे विचार विलिन हो जते हैं। और विचारों के विलिन होते ही हमारा अचेतन से संपर्क हो जाता है। यानि यह प्रयोग हमें अचेतन के निकट ले आता है और संकल्प का अचेतन में प्रवेश आसान हो जाता है। इसे सतत साधना होगा, तभी एक दिन ऐसा आता है जब हमारा संकल्प अचेतन में प्रवेश कर जाता है, और संकल्प के अचेतन में प्रवेश करते ही हमारी संकल्प शक्ति प्रगाढ़ हो जगने लगती है तथा हमारा अचेतन में या कि ध्यान में प्रवेश हो जाता है ।
पुनश्च - भोजन के एकदम बाद ही प्रयोग को शुरू न करें, भोजन के कुछ समय बाद शुरू करें। जब नींद में जाएं तब शुरू करें। और सब प्रयोग को हम व्यसन छोड़ने के लिए भी उपयोग में ला सकते हैं।
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