👥 सपनोंं से जागो 👩
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मैं संसार-विरोधी नहीं हूं ;मैं जीवन-विरोधी नहीं हूं ।मेरा संन्यास जीवन को जानने की कला है ।जीवन को त्यागने की नहीं ,जीवन के परम भोग की कला है ।मैं तुम्हें भगोडा़ नहीं बनाना चाहता ।भगोडा़पन तो कायरता है ।
जो संसार से भागते हैं , वे कायर हैं ।वे डर गए हैं । वे कहते हैं : यहां रहे , तो फंस जाएंगे ।
यह सौ का नोट उन्हें दिखायी पडा़ कि उनके भीतर एकदम उथल-पुथल मच जाती है कि अब नहीं बचा सकेंगे अपने को ।यह सौ का नोट डुबा लेगा ।
यह सुंदर स्त्री जाती है ।अब भागो यहां से , अन्यथा इसके पीछे लग जाएंगे ।मगर यह आदमी , जो नोट देखकर लार टपकाने लगता है ,यह आदमी जो सुंदर स्त्री को गुजरते देखकर एकदम होश खो देता है , यह पहाड़ पर भी बैठ जाएगा ,तो क्या होगा ! यह आदमी यही का यही रहेगा ।यह पहाड़ पर बैठकर भी क्या सोचेगा ?आंख बंद करेगा -- सौ के नोट तैरेंगे !आंख बंद करेगा -- सुंदर स्त्रियां खडी़ हो जाएंगी ।
और ध्यान रखना : कोई स्त्री इतनी सुंदर नहीं है ,जितनी जब तुम आंख बंद करते हो तब सुंदर हो जाती है ,क्योंकि वह कल्पना की स्त्री होती है ।वास्तविक स्त्री में तो कुछ झंझटें होती हैं ।और जितनी सुंदर हो , उतनी ज्यादा झंझटें होती हैं ।क्योंकि उतनी कीमत चुकानी पड़ती है ।जितना बडा़ सौंदर्य होगा , उतनी कीमत स्त्री मांगेगी ।
लेकिन कल्पना की स्त्री तो सुंदर ही सुंदर होती है ।वह तो बनती ही सपनों से है ।और तुम्हारे ही सपने हैं , तुम जैसा चाहो बना लो ।नाक थोडी़ लंबी , तो लंबी । छोटी कर दो नाक , तो छोटी ।या छोटी है , तो थोडी़ लंबी कर दो ।
मैंने सुना है : एक स्त्री ने रात सपना देखा कि आ गया राजकुमार ,जिसकी प्रतीक्षा थी ; घोड़े पर सवार ।उतरा घोड़े से । घोड़ा भी कोई ऐसा-वैसा घोड़ा नहीं रहा होगा ।रहा होगा चेतक । शानदार घोड़े से उतरा शानदार राजकुमार ।जब सपना ही देख रहे हो , तो फिर अच्चर-खच्चर पर क्या बिठाना । अपना ही सपना है , तो चेतक पर बिठाया होगा ।और राजकुमार ही आया ।फिर राजकुमार भी रहा होगा सुंदरतम ।अब जब सपना ही देखने चले हैं , तो इस में क्या कंजूसी ,क्या खर्चा ! मुफ्त सपना है ; अपना सपना है !उतरा राजकुमार ।सुंदर देह उसकी । नील वर्ण । रहा होगा कृष्ण जैसा ।उठाया गोद में इस युवती को बिठाया घोडे़ पर ।जैसे पृथ्वीराज संयोगिता को ले भागा ।
पढी़ होगी कहानी कहीं पृथ्वीराज-संयोगिता की ।चला घोडा़ । उसकी टापें मीलों तक सुनायी पडे़ं , ऐसी आवाज । चला घोडा़ भागता हुआ । काफी दूर निकल गए संसार से ।
प्रेमी सदा दूर निकल जाना चाहते हैं संसार से ,क्योंकि संसार बडी़ बाधा देता है ।यहां अड़ंगे खडे़ करने वाले बहुत लोग हैं ।प्रेम में अड़ंगा खडे़ करने वाले तो बहुत लोग हैं ।सब तैयार बैठे हैं ।क्योंकि खुद प्रेम नहीं कर पाए , दूसरे को कैसे करने दें !खुद चूक गए हैं , अब औरों को भी चुकाकर रहेंगे ।बदला लेकर रहेंगे ।
यहां सब प्रेम के शत्रु हैं ।तो जब सपना ही देख रहे हैं , तो फिर चले संसार से दूर ।युवती बडी़ प्रफुल्लित हो रही है ।बडी़ खिली जा रही है ।उसके हृदय की कली पहली दफे खिली है ।आ गया राजकुमार , जिसकी जन्मों से प्रतीक्षा थी ।उसी घोडे़ पर सवार , जिस पर सदा राजा-महाराजा आते हैं ;कि देवता आते हैं ।फिर उसने पूछा , युवती ने , बडे़ सकुचाते हुए ,बडे़ शरमाते हुए --- अपना ही सपना है , तो शरमाओ खूब ,सकुचाओ खूब --- उसने पूछा कि हे राजकुमार !मुझे कहां लिए चलते हो ?
और राजकुमार हंसने लगा ।और उसने कहा : यह सपना तुम्हारा है ; तुम जहां कहो !इसमें मेरा क्या बस है ! मैं इसमें आता कहां हूं !सपना तुम्हारा है ।
तो वे जो तुम्हारे ऋषि-मुनि बैठ जाते हैं पहाड़ों पर ... ।यहां अगर स्त्री मोह लेती थी , तो वहां सपने स्त्री के हीचलेंगे । तुम जिससे भागोगे , वह तुम्हारा पीछा करेगा ।तुम जिससे डरोगे , तुम उसी से हारोगे ।
इसलिए मैं भागने को नहीं कहता ।मैं कहता हूं : यहीं समझो , पहचानो , निखारो अपने चैतन्य को ।
मैं जीवन विरोधी नहीं हूं ।जीवन से मेरा असीम प्रेम है । और मैं चाहता हूं कि तुम्हारा संन्यास ऐसा हो कि तुम्हारे संसार को निखार दे ;तुम्हारे संसार को ऐसा बना दे कि परमात्मा झलकने लगे ।
♥ ओशो ♥
एस धम्मो सनंतनो १२
११४ जीने की कला
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