स्वर्ग और नर्क जीने के ढंग हैं ~ ओशो
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एक झेन फकीर के पास
एक सम्राट मिलने गया था।
सम्राट, सम्राट की अकड़! झुका
भी तो झुका नहीं। औपचारिक था
झुकना। फकीर से कहा: मिलने आया हूं,
सिर्फ एक ही प्रश्न पूछना चाहता हूं।
वही प्रश्न
मुझे मथे डालता है। बहुतों से पूछा है; उत्तर संतुष्ट
करे कोई, ऐसा मिला नहीं। आप की बड़ी खबर सुनी
है कि आपके भीतर का दीया जल गया है। आप, निश्चित
ही आशा लेकर आया हूं कि मुझे तृप्त कर देंगे।
फकीर ने कहा:
व्यर्थ की बातें छोड़ो,
प्रश्न को सीधा रखो। दरबारी
औपचारिकता छोड़ो, सीधी - सीधी
बात करो, नगद!
सम्राट थोड़ा चौंका:
ऐसा तो कोई उस से कभी
बोला नहीं था! थोड़ा अपमानित
भी हुआ, लेकिन बात तो सच थी। फकीर
ठीक ही कह रहा था कि व्यर्थ लंबाई में क्यों
जाते हो? बात करो सीधी, क्या है प्रश्न तुम्हारा?
सम्राट ने कहा:
प्रश्न मेरा यह है कि
स्वर्ग क्या है और नर्क क्या
है? मैं बूढ़ा हो रहा हूं और यह
प्रश्न मेरे ऊपर छाया रहता है कि
मृत्यु के बाद क्या होगा - स्वर्ग या नर्क?
फकीर के पास उसके शिष्य बैठे थे,
उस ने कहा: सुनो, इस बुद्धू की बातें सुनो!
और सम्राट से कहा कि कभी आईने में अपनी
शक्ल देखी? यह शक्ल लेकर और ऐसे प्रश्न पूछे
जाते हैं! और तुम अपने को सम्राट समझते हो? तुम्हारी
हैसियत भिखमंगा होने की भी नहीं है!
यह भी कोई उत्तर था!
सम्राट तो एकदम आगबबूला
हो गया। म्यान से उसने तलवार
निकाल ली। नंगी तलवार, एक क्षण
और कि फकीर की गर्दन धड़ से अलग
हो जाएगी। फकीर हंसने लगा और उसने
कहा: यह खुला नर्क का द्वार!
एक गहरी चोट -
एक अस्तित्वगत उत्तर:
यह खुला नर्क का द्वार! समझा
सम्राट। तत्क्षण तलवार म्यान में भीतर
चली गई। फकीर के चरणों पर सिर रख दिया।
उत्तर तो बहुतों ने दिए थे - शास्त्रीय उत्तर - मगर
अस्तित्वगत उत्तर, ऐसा उत्तर कि प्राणों में चुभ जाए
तीर की तरह, ऐसा स्पष्ट कर दे कोई कि कुछ और पूछने को शेष न रह जाए - यह खुला नर्क का द्वार! झुक गया फकीर के चरणों में। अब इस झुकने में औपचारिकता न थी दरबारीपन
न था। अब यह झुकना हार्दिक था।
फकीर ने कहा:
और यह खुला स्वर्ग का द्वार!
पूछना है कुछ और? और ध्यान रखो,
स्वर्ग और नर्क मरने के बाद नहीं है; स्वर्ग
और नर्क जीने के ढंग हैं, शैलियां हैं। कोई चाहे
यहीं स्वर्ग में रहे, कोई चाहे यहीं नर्क में रहे।
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~ ओशो ~✍
(अमी झरत बिसगत कवंल, प्रवचन #2)
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