Tathata : Swikar Bhav

तथाता : स्वीकार भाव ।
  °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°  बुद्ध कहते हैं , 🌿

" न अंतरिक्ष में , न समुद्र के गर्भ में ,न पर्वतों के विवर में प्रवेश कर ---- संसार में कोई स्थान नहीं है , जहां रहकर प्राणी पापकर्मों के फल से बच सके । "

न अंतरिक्ष में , न समुद्र के गर्भ में , न पर्वतों के विवरमें प्रवेश कर --- संसार में कोई स्थान नहीं है ,जहां घुसकर मृत्यु से मनुष्य बच सके ।पाप का फल आएगा । पाप में आ ही गया है ।तुम्हें थोड़ी देर लगेगी पहचानने में ।
फिर करना क्या है ?

बुद्ध कहते हैं , पाप के फल से बचो मत ।उसके , पाप के फल को निष्पक्ष भाव से भोग लो ।यह बड़ा कीमती सूत्र है ।
तुमने कुछ किया , अब उसका दुख आया ,इस दुख को तटस्थ भाव से भोग लो !अब आनाकानी मत करो ।अब बचने का उपाय मत खोजो ।क्योंकि बच तुम न सकोगे ।बचने की कोशिश में तुम और लंबा दोगे प्रक्रिया को ।तुम इसे भोग लो जानकर कि मैंने किया था ,
अब फल आ गया । फसल बो दी थी ,अब काटनी है ; काट लो ।लहूलुहान हों हाथ , पीड़ा हो , होने दो ।लेकिन तुम तटस्थ भाव से ----इसे खयाल में रखना ---- तटस्थ भाव !
अगर तुमने इस फल के प्रति कोई भाव न बनाया ,तुमने यह न कहा कि मैं नहीं भोगना चाहता ,यह कैसे आ गया मेरे ऊपर , यह तो जबर्दस्ती है , अन्याय है --- क्योंकि ऐसी तुमने कोई भी प्रतिक्रिया की तो तुमने आगे के लिए फिर नया कर्म बो दिया । तुम कुछ मत कहो ।तुम इतना ही कहो कि मैंने किया था ,उसका फल मुझे मिल गया , निपटारा हुआ ।सौभाग्यशाली हूं ! बात खतम हुई ।

बुद्ध के ऊपर एक आदमी थूक गया ।उन्होंने पोंछ लिया । दूसरे दिन क्षमा मांगने आया ।बुद्ध ने कहा , तू फिक्र मत कर । मैं तो खुश हुआ था कि चलो निपटारा हुआ । किसी जन्म में तेरे ऊपर थूका था , राह देखता था कि तू जब तक न थूक जाए ,छुटकारा नहीं है । तेरी प्रतीक्षा कर रहा था ।तू आ गया , तेरी बड़ी कृपा ! बात खतम हो गयी ।
अब मुझे इस सिलसिले को आगे नहीं ले जाना है ।अब तू यह बात ही मत उठा । हिसाब-किताब पूरा होगया । तेरी बड़ी कृपा है ।

जो भी आए , उसे शांत भाव से स्वीकार कर लो ।उसे गुजर जाने दो । अब कोई नया संबंध मत बनाओ ,कोई नयी प्रतिक्रिया मत करो , ताकि छुटकारा हो ,ताकि तुम वापस बाहर निकल आओ ।धीरे-धीरे ऐसे एक-एक कर्म से व्यक्ति बाहर आता जाता है । और एक ऐसी घड़ी आती है कि सब हिसाब पूरा हो जाता है । तुम पार उठ जाते हो ,तुम्हें पंख लग जाते हैं । तुम उस परम दशा की तरफ उड़ने लगते हो । जब तक कर्मों का जाल होगा ,तुम्हारे पंख बंधे रहेंगे जमीन से । तुम आकाश की तरफ यात्रा न कर सकोगे ।

मृत्यु से भी बचने का कोई उपाय नहीं है ,इसलिए बचने की चेष्टा छोड़ो । जिससे बचा न जा सकेउससे बचने की कोशिश मत करो ।उसे स्वीकार करो । स्वीकार बड़ी क्रांतिकारी घटना है।
बुद्ध ने इसके लिए खास शब्द उपयोग किया है ---तथाता । तथाता का अर्थ है : जो है , मैं उसे स्वीकार करता हूं ।मेरी तरफ से कोई इनकार नहीं ।मौत है , मौत सही ।मेरी तरफ रत्तीभर भी इनकार नहीं कि ऐसा न हो , या अन्यथा होता ।जैसा हो रहा है , वैसा ही होना था , वैसा ही होगा ।मुझे स्वीकार है । मेरी तरफ से कोई विरोध नहीं ,कोई प्रतिरोध नहीं । मेरी तरफ से कोई निर्णय नहीं ।मेरी तरफ से कोई निंदा , प्रशंसा नहीं ।

ऐसी शांत दशा में जो जीवन के सुख-दुखों को स्वीकार कर लेता है , जीवन-मृत्यु के पार हो जाता है ।आवागमन उसे वापस नहीं खींच पाता ।वह आकाश का हो जाता है।
इस परम वीतराग दशा को हमने लक्ष्य माना था ।जीवन का लक्ष्य है , जीवन और मृत्यु के पार हो जाना ।वही सुख सुख है , जो दुख और सुख दोनों के पार है ।ऐसी दशा ही अमृत है , जहां न तो मृत्यु आती अब ,और न जीवन आता ।

भारत की इस खोज को अनूठी कहा जा सकता है ।क्योंकि पश्चिम में , और मुल्कों में , और संस्कृतियों -सभ्यताओं ने हजार-हजार लक्ष्य खोजे हैं मनुष्य के जीवन के , लेकिन जीवन के पार हो जाने का लक्ष्य सिर्फ भारत का अनुदान है । और थोड़ा ध्यान करोगे इस पर , तो समझ में आएगा कि जीवन का जिसने उपयोग इस तरह कर लिया कि सीढ़ी बना ली और जीवन के भी पार हो गया । मृत्यु पर भी पैर रखा ,जीवन पर भी पैर रखा , द्वंद्व के पार हो गया --------निर्द्वन्द्व हो गया ।

एक तरफ से लगेगा कि यह तो शून्य की दशा होगी --
है । और जब इसका अनुभव करोगे , तो पता चलेगा 
कि यही ब्रह्म की भी दशा है । शून्य और पूर्ण एक के 
ही नाम हैं । तुम्हारी तरफ से देखो , तो ब्रह्म शून्य जैसा 
मालूम होता है । बुद्धों की तरफ से देखो , तो शून्य 
ब्रह्म जैसा मालूम होता है । क्योंकि शून्य इस जगत में
सबसे बड़ा सत्य है ।

और इस शून्य की तरफ जाना हो ,तो शांति को साधना । शांति धीरे-धीरे तुम्हारे भीतर शून्य को सघन करेगी । तुम्हारे भीतर अनंत आकाश उतर आएगा । तुम खोते जाओगे । सीमाएं विलीन होती जाएंगी ।कोरे दर्पण रह जाओगे । 
उस कोरे दर्पण का नाम बुद्धत्व है ।और उस बुद्धत्व को पा लेने का जो उपाय है ,उसको एस धम्मो सनंतनो कहा है ।
🙏🙏🌹🌹🔥🔥
ओशो ✍
एस धम्मो सनंतनो , 
भाग ५ प्रवचन ४६ जीवन-मृत्यु से पार है अमृत
से संकलित प्रवचनांश ।।

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