Buddha Ghar Vapas Laute

बुद्ध घर वापस लौटे... ओशो
बुद्ध घर वापिस लौटे बारह वर्ष के बाद। 
तो बुद्ध ने आनंद से कहा, महल मुझे जाना होगा। 
ओशो

यशोधरा बारह वर्ष से प्रतीक्षा करती है। मैं उसका पति न रहा, लेकिन वह अभी भी मेरी पत्नी है। यह ज्ञानी और अज्ञानी की समझ है। मैं उसका पति न रहा। अब तो मैं कुछ भी नहीं हूं। न किसी का पति हूं, न किसी का पिता हूं, न किसी का बेटा हूं, लेकिन वह अब भी मेरी पत्नी है। उसका भाव अभी भी वही है। और वह नाराज बैठी है।

 बारह साल का क्रोध इकट्ठा है। और उसका क्रोध स्वाभाविक है क्योंकि एक रात अचानक मैं घर छोड़कर भाग गया उससे बिना कहे। वह माननीय है, राजघर की है, राजपुत्री है, बड़ी अहंकारी है। और उसको भारी आघात लगा है। उसने किसी से एक शब्द भी नहीं कहा, वह कोई छोटे घर की अकुलीन महिला नहीं है।
बुद्ध के जाने के बाद यशोधरा ने बुद्ध के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा। बारह वर्ष चुप रही। इस बात को उठाया ही नहीं। बुद्ध के पिता भी चकित, बुद्ध के परिवार के और लोग भी चकित। साधारण घर की स्त्री होती, छाती पीटती, रोती, चिल्लाती, हल्की भी हो जाती। असाधारण थी। यह बात किसी और से कहने की तो थी ही नहीं। 

यह बुद्ध और उसके बीच का मामला था। मान! क्षत्रिय की लड़की, बड़े राजघर की पुत्री! आंसू कोई देखे यह तो बात समझ में नहीं आती थी। लेकिन मुस्कुराती रही।

 बच्चे को बड़ा किया। राहुल बारह वर्ष का हो गया। बेटे को भी कभी उसने कुछ नहीं कहा पिता के संबंध में। वह चुप ही रही, जैसे बात ही समाप्त। लेकिन भीतर तो आग जलती रही। बाहर निकल जाती तो हल्की हो जाती।
 भीतर तो बड़ा क्रोध इकट्ठा होता गया। और किसी पर निकाल भी नहीं सकती। यही आदमी जब मिलेगा तभी बात हो सकती है। दूसरे से तो अब कोई बात करने में कोई अर्थ भी नहीं है। दूसरे से तो अब कोई संबंध भी नहीं है।

तो बुद्ध ने कहा, 'वह प्रतीक्षा कर रही है, बारह साल का क्रोध है; मुझे जाना होगा'। सारा गांव बुद्ध को लेने आया था। पिता आये थे, परिवार के लोग आये थे, बुद्ध ने देखा लेकिन पत्नी वहां नहीं थी। बुद्ध ने कहा, 'वह आयेगी भी नहीं क्योंकि मैं ही उसे छोड़कर भागा हूं, जाना मुझे ही चाहिए।'

यह ज्ञानी झुकता है। अज्ञानी को उठाना हो तो ज्ञानी को झुकना पड़ता है। महल के भीतर जाकर बुद्ध ने आनंद से कहा कि तेरी चार शर्तें जो मैंने स्वीकार की हैं, अगर तू आज्ञा दे तो आज तू घड़ी भर मुझे अकेला छोड़ दे।
 क्योंकि मैं यशोधरा को जानता हूं। तेरे सामने उसकी आंख से आंसू न गिरेगा। तेरे सामने वह एक अभद्र शब्द मुझसे न बोलेगी। तेरे सामने वह शिष्टाचार कायम रखेगी।

 और यह जरा ज्यादती होगी मेरी तरफ से। तेरी मौजूदगी उसे हल्का न होने देगी। बारह साल उसने प्रतीक्षा की है। तू कृपा कर। अगर तू कर सके तो तू थोड़ा पीछे रुक जा, ताकि वह अकेले में पाकर अपने सारे क्रोध को निकाल दे।

यह एक ही मौका है, जब बुद्ध ने आनंद से आज्ञा मांगी--पुरानी जो प्रतिज्ञा थी, जो शब्द मानने थे उसके विपरीत। और आनंद ने भी यही सवाल उठाया कि परम ज्ञान को उपलब्ध होकर, बुद्धत्व को उपलब्ध होकर कौन पत्नी है? कौन पति? बुद्ध ने कहा, 'वह मैं जानता हूं, लेकिन यशोधरा नहीं जानती। यह मैं जानता हूं, लेकिन यशोधरा नहीं जानती। और वह भी एक दिन जान सके, इसके लिये मुझे दो-चार कदम उसकी तरफ चलने पड़ेंगे'।
बुद्ध गये। यशोधरा पागल हो उठी। चीखी, चिल्लाई, रोई, नाराज हुई, शिकायतें कीं। थोड़ी देर में उसे खयाल आया, लेकिन बुद्ध चुप खड़े हैं। उन्होंने एक भी बात का जवाब नहीं दिया। उसकी आंखें तो करीब-करीब अंधीं थीं क्रोध से, कुछ दिखाई नहीं पड़ता था। आंसू जो बारह साल से रुके थे, वर्षा की तरह बह रहे थे।

उसने आंखें पोंछी और गौर से बुद्ध को देखा। और कहा कि बोलते क्यों नहीं? तुम्हारी जबान खो गई? तुम मुझसे पूछे होते, मैं तुम्हें आज्ञा देती। क्या तुम्हें इतना भरोसा नहीं था? मैं क्षत्रिय की पुत्री हूं। तुमने कहा होता, मुझे सब छोड़ना है, मुझे अकेले जाना है तो मैं मार्ग में बाधा नहीं बनती। या तुम कहते कि तुझे भी छोड़कर जाना है, तो मैंने वह भी किया होता। लेकिन यह थोड़ा ज्यादा था कि तुम चुपचाप चोर की तरह रात भाग गये। यह कैसा भरोसे का उल्लंघन? मैंने एक श्रद्धा रखी थी प्रेम पर, वह तुमने तोड़ी।'
बुद्ध उसकी बातें सुनते रहे। लेकिन उन्हें मौन देखकर उसने कहा, 'तुम चुप क्यों हो? तुम्हारी जबान खो गई?'
बुद्ध ने कहा कि 'नहीं ; तू अपना सब निकाल ले। तेरा रेचन हो जाए ताकि तू देख सके, कि जो आदमी बारह साल पहले इस घर को छोड़कर गया था, वही वापस नहीं लौटा है। 

तू किसी और से बातें कर रही है। जो भाग गया था, वह मैं नहीं हूं; क्योंकि वह आदमी तो खत्म हो गया, खो गया, मिट गया। अब यह कोई और आया है। तू उसको गौर से तभी देख पायेगी, तेरी आंख तभी खुलेगी, जब तेरा सारा भाव क्रोध का निकल जाए। तू निकाल ले, तू उसे रोक मत। तू शिष्टाचार को बाधा मत बनने दे। तुझे जो कहना हो तू कह ले ताकि तू हल्की हो जाए। 

और मैं आया इसीलिए हूं, कि इन बारह सालों में जो मैंने खोया, उसको तू पहचान ले; और जो मैंने पाया उसको तू देख ले। और उस आदमी की तरफ से मैं क्या जवाब दूं, जो तुझे छोड़कर भाग गया था, वह तो मर चुका और उस आदमी को अब तू कहीं भी न पा सकेगी। वह सपना टूट चुका।
 इसलिए अब कोई तुझे उत्तर देने वाला नहीं है। मैं तुझे उत्तर दे सकता हूं लेकिन वह उस आदमी का उत्तर नहीं है, क्योंकि वह धारा विछिन्न हो गई। यह अलग ही हूं मैं।

यशोधरा ने गौर से देखा, निश्चित यह ज्योतिर्मय पुरुष बिलकुल अन्य था। जिसे उसने जाना था, वासना से पीड़ित सिद्धार्थ को, यह वह नहीं था। जिसकी आंखों से वासना थी, जिसके शरीर में संसार का सब कुछ था, यह वह नहीं है। यह देह और है। यह काया और है। इन आंखों से कोई और बरस रहा है। और बुद्ध अपनी पत्नी से मिलने नहीं आये हैं; न अब बुद्ध पति हैं, न कोई पत्नी है। कोई सोया है उसे जगाने आये हैं।

पत्नी झुकी उनके चरणों में और संन्यस्त हुई; और उसने कहा कि मुझे भी मिटने का रास्ता दो। क्योंकि हो-होकर मैंने दुख ही पाया है; और लगता है, तुम्हें सुख का सूत्र मिल गया है। उसने अपने बेटे को भी आगे किया और कहा कि यह तुम्हारा बेटा है। बारह वर्ष पहले तुम इसे छोड़कर चले गये थे। इसके लिये कोई संपदा, पिता की धरोहर, परंपरा, वंशगत संपति?
बुद्ध आनंद को पीछे छोड़ आये थे। उन्होंने आनंद को बुलाया और कहा, मेरा भिक्षापात्र! वह भिक्षापात्र राहुल को दिया और कहा तू भी दीक्षित हुआ क्योंकि यही मेरी संपदा है। 

बुद्धों के पास और कुछ देने को नहीं। न तो मैं तेरा पिता हूं, न तू मेरा बेटा है। यह नाता कभी था, वह सपना मेरा टूट गया, तेरा नहीं टूटा; लेकिन जिनका नहीं टूटा, उनको मैं सहारा दूंगा कि उनका सपना भी टूट जाए।

बारह साल का यह बेटा दीक्षित होकर भिक्षु हो गया, पत्नी भिक्षुणी हो गई। यशोधरा निश्चित हिम्मत की महिला रही होगी। फिर हम उसके नाम की कोई खबर नहीं पाते।
 फिर क्या हुआ? बुद्ध की पत्नी थी। जो भूल आनंद ने की, वह भूल उसने नहीं की। बुद्ध की पत्नी थी, छा सकती थी पूरे संघ पर। घोषणा कर सकती थी अपनी महत्ता की; लेकिन फिर हमें कुछ पता नहीं चलता कि उसका क्या हुआ? यह आखिरी है उसके संबंध में कहानी। 

इसके बाद बौद्ध शास्त्र बिलकुल चुप हैं, फिर यशोधरा का क्या हुआ? राहुल का क्या हुआ? क्योंकि वह बुद्ध का बेटा था। मरने के बाद कह सकता था कि अब यह मैं अधिकारी हूं इस सारे विराट संगठन का। उसका कोई पता नहीं चलता। 
जो भूल आनंद ने की बड़े भाई होने की, वह भूल यशोधरा ने नहीं की, वह भूल राहुल ने नहीं की। उन्होंने इसे अनुग्रह समझा कि बुद्ध आये। न आते तो कोई बस न था। बुद्ध ने यह स्मरण रखा। सपने के साथियों को भी जगाने आये। यह अनुकंपा थी।

ज्ञानी झुकता है ताकि तुम्हें झुका सके।

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-13)

Post a Comment

0 Comments