Sufi-dwip-Char Striya-pachas purush

 सूफी/ द्वीप/ चार स्त्रियां/ पचास पुरुष 

मैंने सुना है, एक सूफी फकीर के आश्रम में प्रविष्ट होने के लिये चार स्त्रियां पहुंचीं ।उनकी बड़ी जिद थी, बड़ा आग्रह था। ऐसे सूफी उन्हें टालता रहा, लेकिन एक सीमा आई कि टालना भी असंभव हो गया। उनकी खोज प्रामाणिक मालूम हुई तो सूफी झुका। और उसने उन चारों की परीक्षा ली। 
ओशो

उसने पहली स्त्री को बुलाया और उससे पूछा, “एक सवाल है,तुम्हारे जवाब पर निर्भर करेगा कि तुम आश्रम में प्रवेश पा सकोगी या नहीं। इसलिए बहुत सोच कर जवाब देना"

सवाल सीधा-साफ था। 
उसने कहा कि एक नाव डूब गई है; उसमें तुम भी थीं और पचास थे ।पचास पुरुष और तुम एक निर्जन द्वीप पर लग गये हो ।तुम उन पचास पुरुषों से अपनी रक्षा कैसे करोगी ?
यह समस्या है !

एक स्त्री और पचास पुरुष और निर्जन एकांत !

वह स्त्री कुंआरी थी ।वह घबड़ा गई ।और उसने कहा, कि अगर ऐसा होगा तो मैं मर जाऊंगी, लेकिन इस द्वीप पर कदम न रखूंगी ।

फकीर हंसा, 

उसने उस स्त्री को विदा दे दी और कहा, कि मर जाना समस्या का समाधान नहीं है ।नहीं तो आत्मघात सभी समस्याओं का समाधान हो जाता ।

यह पहला वर्ग है, जो आत्मघात को समस्या को समाधान मानता है ।इस संसार में मरने से तो कुछ हल होता ही नहीं ।

फिर तुम पैदा हो जाते हो, 
फिर वही उलझन,
फिर वही रूप, 
फिर वही झंझट, 
फिर वही संसार; 
यह पुनरुक्ति चलती रहती है ।
यह चाक घूमता रहता है ।

तुम्हारे मरने से कुछ हल न होगा ।तुम्हारे बदलने से हल हो सकता है ।और रास्ता नहीं मिलता, तो मन होता है, मर ही जाओ। आत्महत्या ही कर लो ।यह तुम्हारे जन्मों-जन्मों का निचोड़ है ।पर इससे कुछ हल नहीं होता। समस्या अपनी जगह खड़ी रहती है ।
दूसरी स्त्री बुलाई गई ।

वह दूसरी स्त्री विवाहित थी, उसका पति था। यही सवाल उससे भी पूछा गया, कि पचास व्यक्ति हैं, तू अपनी रक्षा कैसे करेगी ?

उस स्त्री ने कहा, इसमें बड़ी कठिनाई क्या है ?उन पचास में जो सबसे शक्तिशाली पुरुष होगा, मैं उससे विवाह कर लूंगी ।वह एक, बाकी उनचास से मेरी रक्षा करेगा ।

यह उसका बंधा हुआ अनुभव है इस नई परिस्थिति में काम न आयेगा ।वह एक आदमी मार डाला जायेगा, वह कितना ही शक्तिशाली हो। उसका कोई अर्थ नहीं है। पचास के सामने वह कैसे टिकेगा ?

पुराना अनुभव हम नई परिस्थिति में भी खींच लेते हैं ।हम पुराने अनुभव के आधार पर ही चलते जाते हैं, बिना यह देखे कि परिस्थिति बदल गई है और यह उत्तर कारगर न होगा ।

फकीर ने उस स्त्री को विदा कर दिया और उससे कहा, 

बूढ़े से नया समाधान नहीं मिल सकता ।उसका अनुभव मजबूत हो चुका होता है ।वह अपने अनुभव को ही दोहराये चला जाता है ।
वह कहता है, मैं जानता हूं, जीया हूं, बहुत अनुभव किये हैं; यह उसका सारा निचोड़ है ।उसका मस्तिष्क पुराना, जरा-जीर्ण हो जाता है, बासा हो जाता है ।

यह स्त्री बासी हो चुकी थी ।इसके उत्तर खंडहर हो चुके थे ।इसको यह बोध भी न रहा था, कि हर पल जीवन नई समस्या खड़ी करता है ।

तुममें से बहुतों के उत्तर बंधे हुए हैं ।महावीर को विदा हुए पच्चीस सौ साल हो गये ।

पच्चीस सौ सालों में सारी समस्याएं बदल गई, संसार बदल गया, आदमी के होने का ढंग बदल गया, आदमी की चेतना बदल गई। 

तुम पुराना उत्तर पीटे चले जा रहे हो !तुम यह भूल ही गये हो, कि अब वह समस्या ही नहीं है, जिसके लिये तुम्हारे पास समाधान है।समस्या समाधान में कोई तालमेल नहीं रहा ।

वेद बड़े प्राचीन हैं ।हिंदू अघाते नहीं यह घोषणा करते, कि हमारी किताब सबसे ज्यादा पुरानी है ।लेकिन जितनी पुरानी किताब उतनी ही व्यर्थ !पुरानी किताब का मतलब ही यह है, अब वे प्रश्न नहीं रहे, अब वे उलझनें नहीं रहीं !जिंदगी रोज नये ढांचे लेती है ।
वह दूसरी स्त्री विदा कर दी गई ।
तीसरी स्त्री बुलाई गई, 

वह एक वेश्या थी ।और जब फकीर ने उसे समस्या बताई कि समस्या यह वह वेश्या हंसने लगी। 

उसने कहा, मेरी समझ में आता है कि नाव है, पचास आदमी हैं, एक स्त्री मैं हूं। फिर नाव डूब गई है, पचास आदमी और मैं किनारे लग गये, निर्जन द्वीप है, समझ में आता; लेकिन समस्या क्या है ?

वेश्या के लिये समस्या हो ही नहीं सकती !

इसमें समस्या कहां है, यह मेरी समझ में नहीं आता। और जब समस्या ही न हो, तो समाधान का सवाल ही नहीं उठता।

बहुत से लोग हैं तीसरे वर्ग में, जो कहते हैं समस्या कहां है ?
परमात्मा है कहां, 
जिसको तुम खोज रहे हो ?
ध्यान होता कहां है, 
जिसकी तुम तलाश कर रहे हो ?
प्रार्थना, पूजा बकवास है। 
मोक्ष, निर्वाण सपने हैं। 
समस्या है कहां ?
तुम क्यों व्यर्थ पालथी मार कर बैठे हो ? 
क्यों लगा रखा है यह सिद्धासन ? 
किसके लिए आंख बंद किये बैठे हो ?
कोई आनेवाला नहीं है। 
सब कुशल लोगों की उक्तियां हैं 
चालाकों का खेल है। 
मत पड़ो उलझन में; 
समस्या कोई है ही नहीं कोई !
इसलिए समाधान की चिंता मत करो। 
किस गुरु के पास जा रहे हो, 
किसलिए जा रहे हो ?
प्रश्न ही नहीं है, 
पूछना क्या है ?

तीसरे वर्ग के लोग भी हैं। वे इतने दिन तक समस्या में रह लिए हैं, कि समस्या दिखाई पड़नी ही बंद हो गई। जब तुम बहुत किसी चीज के आदी हो जाते हो, तो वह तुम्हें दिखाई पड़ना बंद हो जाता है। दूसरों को जीवन का समाधान खोजते हुए देखकर। वे हैरान होते हैं। उनकी नजरों में ये खोजने वाले पागल हैं, इनके दिमाग में कुछ खराबी हो गई हे; अन्यथा दुनिया सब ठीक है।

“समस्या कहां है’ ? वेश्या ने पूछा।

वेश्या भी विदा कर दी गई । क्योंकि जिसके लिए समस्या ही नहीं है, उसे समाधान की यात्रा पर कैसे भेजा जा सकता है?
चौथी स्त्री के सामने भी वही सवाल फकीर ने रखा। 

उस स्त्री ने सवाल सुना, आंखें बंद कीं, आंखें खोलीं और कहा,“मुझे कुछ पता नहीं । मैं निपट अज्ञानी हूं"

वह चौथी स्त्री स्वीकार कर ली गई।

ज्ञान के मार्ग पर वही चल सकता है, जो अज्ञान को स्वीकार ले !स्वाभाविक है यह बात । क्योंकि अगर तुम्हारे पास उत्तर है ही, तो फिर किसी उत्तर की कोई जरूरत न रही। उत्तर है ही, इसका अर्थ है तुम स्वयं ही अपने गुरु हो; 

 गुरु का कोई सवाल न रहा। 
गुरु की खोज वही कर पाता है, 
जिसके पास कोई उत्तर नहीं है।

-कहे कबीर दीवाना ||

- ओशो ||

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