मौन का महत्व - ओशो
यहां आने के आधा घंटे पहले से ही चुप हो जाएं। कुछ मित्र जो तीनों दिन मौन रख सकें, बहुत अच्छा है, वे बिलकुल ही चुप हो जाएं। और कोई भी चुप होता हो, मौन रखता हो, तो दूसरे लोग उसे बाधा न दें, सहयोगी बनें। जितने लोग मौन रहें, उतना अच्छा। कोई तीन दिन पूरा मौन रखे, सबसे बेहतर। उससे बेहतर कुछ भी नहीं होगा। अगर इतना न कर सकते हों तो कम से कम बोलें—इतना कम, जितना जरूरी हो— टेलीग्रैफिक। जैसे तारघर में टेलीग्राम करने जाते हैं तो देख लेते हैं कि अब दस अक्षर से ज्यादा नहीं। अब तो आठ से भी ज्यादा नहीं। तो एक दो अक्षर और काट देते हैं, आठ पर बिठा देते हैं। तो टेलीग्रैफिक! खयाल रखें कि एक—एक शब्द की कीमत चुकानी पड़ रही है। इसलिए एक—एक शब्द बहुत महंगा है; सच में महंगा है। इसलिए कम से कम शब्द का उपयोग करें; जो बिलकुल मौन न रह सकें वे कम से कम शब्द का उपयोग करें।
और इंद्रियों का भी कम से कम उपयोग करें। जैसे आंख का कम उपयोग करें, नीचे देखें। सागर को देखें, आकाश को देखें, लोगों को कम देखें। क्योंकि हमारे मन में सारे संबंध, एसोसिएशस लोगों के चेहरों से होते हैं—वृक्षों, बादलों, समुद्रों से नहीं। वहां देखें, वहां से कोई विचार नहीं उठता। लोगों के चेहरे तत्काल विचार उठाना शुरू कर देते हैं। नीचे देखें, चार फीट पर नजर रखें— चलते, घूमते, फिरते। आधी आंख खुली रहे, नाक का अगला हिस्सा दिखाई पड़े, इतना देखें। और दूसरों को भी सहयोग दें कि लोग कम देखें, कम सुनें। रेडियो, ट्रांजिस्टर सब बंद करके रख दें, उनका कोई उपयोग न करें। अखबार बिलकुल कैंपस में मत आने दें।
जितना ज्यादा से ज्यादा इंद्रियों को विश्राम दें, उतना शुभ है, उतनी शक्ति इकट्ठी होगी; और उतनी शक्ति ध्यान में लगाई जा सकेगी। अन्यथा हम एग्झास्ट हो जाते हैं। हम करीब—करीब एग्झास्ट हुए लोग हैं, जो चुक गए हैं बिलकुल, चली हुई कारतूस जैसे हो गए हैं। कुछ बचता नहीं, चौबीस घंटे में सब खर्च कर डालते हैं। रात भर में सोकर थोड़ा—बहुत बचता है, तो सुबह उठकर ही अखबार पढना, रेडियो, और शुरू हो गया उसे खर्च करना। कंजरवेशन ऑफ एनर्जी का हमें कोई खयाल ही नहीं है कि कितनी शक्ति बचाई जा सकती है। और ध्यान में बड़ी शक्ति लगानी पड़ेगी। अगर आप बचाएंगे नहीं तो आप थक जाएंगे।
- जिन खोजा तिन पाइयां - ओशो
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