Satya Ki Khoj - Osho

सत्य की खोज  - ओशो 
Satya Ki Khoj osho

सत्‍य सदा यहीं है। वह है; वही है। किसी भविष्य में उसे उपलब्ध नहीं करना है। तुम यहीं और अभी सत्य हो। इसलिए सत्य कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे पैदा करना है, या जिसके लिए उपाय करना है, या जिसे खोजना है। इस बात को पूरी स्पष्टता के साथ समझ लो, और तभी इन विधियों को समझने और प्रयोग करने में आसानी होगी।
मन कामना का यंत्र है। मन सदा चाह में है, सदा कुछ चाह रहा है, सदा कुछ मांग रहा है। और उसका विषय, उसका उद्देश्य सदा भविष्य में होता है। मन को वर्तमान से कुछ लेना—देना नहीं है। वर्तमान क्षण में मन गति नहीं कर सकता, इस क्षण में गति के लिए स्थान नहीं है, गति के लिए मन को भविष्य चाहिए। वह या तो अतीत में गति कर सकता है, या भविष्य में। वर्तमान में वह गतिमान नहीं हो सकता, स्थान ही नहीं है।
सत्य वर्तमान में है और मन सदा भविष्य या अतीत में होता है। इसलिए मन और सत्य के बीच मिलन नहीं हो सकता।
जब मन कोई सांसारिक विषय खोजता है तो कठिनाई नहीं है। तब समस्या लाइलाज नहीं है; वह हल हो सकती है। लेकिन जब वही मन सत्य को खोजने चलता है तो प्रयत्न असंगत हो जाता है। क्योंकि सत्य यहीं और अभी है। और मन सदा वहा और भविष्य में होता है। मिलन संभव नहीं है। इसलिए पहली बात समझ लो—तुम सत्य को नहीं खोज सकते। तुम उसे पा सकते हो, लेकिन खोज नहीं सकते। यह खोज ही बाधा है।
जिस क्षण तुम खोजना शुरू करते हो उसी क्षण तुम वर्तमान से, अपने से दूर निकल जाते हो। क्योंकि तुम तो सदा वर्तमान में हो। खोजने वाला सदा वर्तमान में है और खोज सदा भविष्य में है। इसलिए खोजी और खोज में मिलन नहीं हो सकता, चाहे तुम कुछ भी खोजो। लाओत्से कहता है, खोजो और खो दोगे। खोजो मत और पा लोगे। मत खोजो और पा लो।
      शिव की ये सारी विधियां मन को भविष्य या अतीत से वर्तमान की तरफ मोड़ने के लिए हैं। तुम जिसे खोज रहे थे वह उपलब्ध ही है। वह है ही, वही है। सिर्फ मन को खोज से अखोज की तरफ, चाह से अचाह की तरफ मोड़ना है।
-श्‍वास: शरीर और आत्‍मा के बीच सेतु
—ओशो


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