OSHO No-Dimensions Meditation

नो-डाइमेन्शंस ध्यान 

ओशो नो-डाइमेन्शंस ध्यान ओशो के निर्देशन में तैयार किए गए संगीत के साथ किया जाता है। यह संगीत ऊर्जागत रूप से ध्यान में सहयोगी होता है और ध्यान विधि के हर चरण की शुरुआत को इंगित करता है। इस संगीत की सीडीज़ व डाउनलोड करने की सुविधा के विषय में जानकारी के लिए अपेंडिक्स देखें। चेतना एक वर्तुल है: अन-आयामी (नो-डाइमेन्शंस)। वह मात्र है, न उत्तर की ओर दिशागत, न दक्षिण की ओर दिशागत। वह केवल है--एक वर्तुल। तो मेरा सुझाव है कि इस ध्यान को ‘नो-डाइमेन्शंस’ कहना अच्छा होगा। ओशो ने मध्य एशिया के सूफियों से आई केंद्रीकरण की इस सक्रिय विधि को आगे विकसित व विस्तृत किया है। यह विधि श्वास का व नृत्य और शरीर को लयबद्ध करने वाली गतियों का उपयोग करती है जिससे साधक अपने केंद्र का अनुभव करता है, जहां से मन को देखा जा सके। यह विधि होश का, पूर्णता का, लयबद्धता का व केंद्रीकरण का अनुभव देती है--शरीर हर दिशा में गति करता है, और केंद्र अकंप बना रहता है। पहले चरण में हर क्रिया सूफी ध्वनि ‘‘शू’’ के साथ की जाती है। नाभि से उठ कर गले तक आते हुए, ये ध्वनियां अनभिव्यक्त ऊर्जा को स्वाभाविक रूप से बहने में सहयोगी होती हैं। ये ध्वनियां शरीर की गति को अधिक स्वतंत्र व सहज बनाने में भी सहयोग करती हैं। 
OSHO No-Dimensions Meditation

इस ध्यान के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया संगीत धीरे से शुरू होकर तेज होते हुए केंद्र की स्थिरता को उजागर करता चला जाता है।
 
निर्देश: एक घंटे के इस ध्यान में तीन चरण हैं। पहले दो चरणों में आंखें खुली रहती हैं लेकिन किसी भी चीज पर एकाग्र नहीं होती हैं। तीसरे चरण के दौरान आंखें बंद रहती हैं। 

पहला चरण: तीस मिनट सूफी गतियां 
 
यह छह भागों में की जाने वाली गति-श्रृंखला है, जो तीस मिनट तक लगातार दोहराई जाती है। प्रारंभ में एक स्थान पर खड़े होकर बाएं हाथ को हृदय पर रख लें और दाएं हाथ को नाभि से दो नीचे हारा पर रख लें। कुछ देर शांत खड़े होकर संगीत को सुनें। जब घंटी बजे, तब नीचे दिए तरीके से शारीरिक गतियां शुरू करें: 
 
1. दोनों हथेलियां के पिछले हिस्सों को जोड़ कर हारा केंद्र पर इस प्रकार रखें कि अंगुलियां जमीन की ओर हों। नाक से श्वास लेते हुए हाथों को हृदय तक लाएं और उन्हें प्रेम से भर जाने दें। श्वास छोड़ते समय गले से ‘‘शू’’ की ध्वनि करें और प्रेम से जगत को भर दें। यह ध्वनि करते समय हथेली को जमीन की ओर उन्मुख किए हुए दाएं हाथ व दाएं पैर को आगे ले जाएं और बाएं हाथ को वापस हारा पर। इसके बाद फिर से मूल स्थिति पर लौट आएं और दोनों हथेलियों को हारा पर रख लें।
 
2. इसी प्रक्रिया को बाएं हाथ व बाएं पैर का उपयोग करते हुए दोहराएं। और फिर से मूल स्थिति पर लौट कर दोनों हथेलियों को हारा पर रख लें।
 
3. दाईं ओर मुड़ कर दाएं हाथ व पैर से इस प्रक्रिया को दोहराएं और फिर से मूल स्थिति पर लौट कर दोनों हथेलियों को हारा पर रख लें।
 
4. बाईं और मुड़ कर बाएं हाथ व पैर से इस प्रक्रिया को दोहराएं और फिर से मूल स्थिति पर लौट कर दोनों हथेलियों को हारा पर रख लें।
 
5. दाईं ओर से पीछे की ओर मुड़ कर दाएं हाथ व पैर से इस प्रक्रिया को दोहराएं और हारा पर हथेलियों वाली अपनी मूल स्थिति पर लौट आएं।
 
6. बाईं ओर से पीछे की ओर मुड़ कर बाएं हाथ व पैर से इस प्रक्रिया को दोहराएं और हारा पर हथेलियों वाली अपनी मूल स्थिति पर लौट आएं। ध्यान का यह चरण धीमी गति से शुरू होता है और धीरे-धीरे इसकी गति बढ़ती चली जाती है। ठीक लय बनाए रखने के लिए संगीत का उपयोग करें और हर गति की शुरुआत हारा से करने का स्मरण रखें। कूल्हे और आंखें उसी दिशा में जाएं जिस दिशा में हाथ जा रहा है। आपकी गतियां गरिमापूर्ण हों और लगातार प्रवाहित हों।
 
संगीत की रिकार्डिंग के साथ ही ‘‘शू’’ की तेज ध्वनि अपने गले से निकालें। यदि आप यह ध्यान एक समूह में कर रहे हैं तो हो सकता है बीच में कभी आपकी लय औरों से अलग हो रही है और आपको लगने लगे कि शायद आपसे कुछ गलती हुए है। जब ऐसा हो तो आप रुक जाएं और देखें कि दूसरे कहां हैं। फिर दूसरों की लय के साथ लय मिला कर वापस ध्यान शुरू कर दें। संगीत के समाप्त होने के साथ यह चरण पूरा हो जाता है। कुछ ही क्षणों में नये संगीत के साथ अगला चरण प्रारंभ होगा।
 
दूसरा चरण: व्हिरलिंग पंद्रह मिनट
 
प्रारंभ में अपने दाएं पैर के अंगूठे को बाएं पैर के अंगूठे पर रख लें और दोनों हाथों से स्वयं को आलिंगबद्ध करके स्वयं के प्रति प्रेम अनुभव करें। जब संगीत शुरू हो तो अस्तित्व के प्रति अनुगृहीत अनुभव करें कि वह इस ध्यान के लिए आपको यहां लाया, और झुक जाएं। जब संगीत की लय बदले तो दाईं या बाईं जिस ओर भी आपको ठीक लगे, व्हिरलिंग शुरू कर दें। यदि आप दाईं ओर घूम रहे हैं तो दाएं हाथ व दाएं पैर को दाईं ओर रखें व बाएं हाथ को विपरीत दिशा में। एक बार घूमना शुरू हो जाए तो आप अपने हाथों को जिस भी दिशा में चाहे ले जा सकते हैं।
यदि आपने पहले कभी व्हिरलिंग नहीं की है तो पहले बहुत ही आहिस्ता से घूमें और एक बार जब आपके शरीर व मन घूमने की गति के साथ एक हो जाते हैं तो शरीर स्वयं ही तेज घूमने लगेगा। बहुत जल्दी स्वयं को अधिक तेज घूमने के लिए बाध्य न करें। यदि आपको चक्कर आने जैसा लगे तो ठीक होगा कि खड़े हो जाएं या बैठ जाएं। व्हिरलिंग को समाप्त करने के लिए धीमे घूमना शुरू करें और स्वयं को दोनों हाथों से आलिंगबद्ध कर लें।
 
तीसरा चरण: मौन पंद्रह मिनट
 
आंखें बंद करके पेट के बल लेट जाएं। पैरों को जोड़ें नहीं, फैला लें, ताकि आपने जो भी ऊर्जा इकट्ठी की है वह आपके द्वारा बह सके। अब और कुछ नहीं करना है, बस स्वयं के साथ बने रहना है। यदि पेट के बल लेटना कठिन हो, तो पीठ के बल लेटें। घंटी की आवाज ध्यान के समाप्त होने का संकेत देगी।

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