भावनाएं पत्थर नहीं, गुलाब के फूल समान हैं
"मनुष्य की तीन परतें हैं: पहला शरीर--उसका शारीरिक विज्ञान; दूसरा मन--उसकी मानसिकता और तीसरा उसकी आत्मा--उसका शाश्वत स्वयं। प्रेम इन तीनों तलों पर हो सकता है, परन्तु इनके गुणधर्मों में अंतर होगा। शारीरिक तल पर वह केवल सेक्स या काम है। तुम उसे प्रेम कह सकते हो क्योंकि यह शब्द तुम्हें सुन्दर और काव्यात्मक प्रतीत होता है। परन्तु निन्यानबे प्रतिशत लोग अपने काम को प्रेम कहते हैं। काम बायो-लॉजिकल है, शारीरिक है। तुम्हारा रसायन, तुम्हारे हॉर्मोन--सभी कुछ पदार्थगत इसमें सम्मिलित है...
"केवल एक प्रतिशत लोग इससे कुछ गहरा जानते हैं। कुछ कवि, चित्रकार, नर्तक, गायक हैं जो शरीर के पार महसूस करने के लिए संवेदनशील हैं। वे मन के सौन्दर्य को, ह्रदय की संवेदनशीलता को महसूस कर सकते हैं, क्योंकि वे स्वयं उस तल पर जीते हैं। परन्तु यह संगीतकार, चित्रकार, कवी जिस तल पर जीता है वहां वह सोचता नहीं वरन महसूस करता है। और क्योंकि वह अपने ह्रदय में जीता है, वह दूसरे व्यक्ति के ह्रदय को भी समझ सकता है। इसे साधारणतः प्रेम कहा जाता है। यह दुर्लभ है। मैं इसे एक प्रतिशत कहता हूं, शायद कभी कभार होने वाला।
"यह इतना सुन्दर है, क्यों बहुत से लोग इस दूसरे तल पर नहीं जा पाते? इसमें एक समस्या है: कोई भी वस्तु जो इतनी सुन्दर होती है, वह बहुत कोमल भी होती है. वह कोई ठोस वस्तु नहीं होती बल्कि अत्यंत कोमल कांच से बनी होती है. और एक बार यदि कांच का शीशा गिर कर टूट जाए तो उसे दोबारा जोड़ा नहीं जा सकता, तब उसे दुबारा जोड़ देने का कोई उपाय नहीं है. लोग प्रेम के उन कोमल तलों पर जाने से डरतें हैं, क्योंकि उस तल पर प्रेम अत्यंत सुन्दर होता है पर साथ ही अत्यंत बदलाहट लाने वाला। भावनाएं पत्थर नहीं होतीं, वे गुलाब के फूल समान होतीं हैं..."
“ऐसा जाना जाता है कि कवि और कलाकार लगभग हर दिन प्रेम में पड़ते हैं। उनका प्रेम गुलाब के फूल की भांति होता है। जब तक वह होता है तब तक वह इतना सुघंदित होता है, वह इतना जीवंत, हवा में थिरकता, बरसात और, सूरज में अपना सौन्दर्य बिखेरते हुए होता है। परन्तु संध्या तक आते-आते वह विदा हो जाएगा और तुम उसे रोकने के लिए कुछ भी नहीं कर पाओगे। ह्रदय का गहरा प्रेम बस एक हवा के झोंके के समान होता है जो अपनी ताजगी, अपनी शीतलता लिए तुम्हारे कमरे में आता है, और फिर चला जाता है। तुम हवा को अपनी मुट्ठी में नहीं बांध सकते। बहुत ही कम लोग इतने साहसी होतें हैं जो निरंतर बदलते हुए जीवन के क्षण-क्षण में जीतें हैं। इसलिए उन्होंने उस प्रेम में पड़ने का निर्णय लिया है जिस पर वे निर्भर हो सकें।
"मुझे नहीं पता तुम किस प्रकार के प्रेम से अवगत हो--संभवतः पहले प्रकार से, या हो सकता है दूसरे प्रकार से। और तुम डरे हुए हो कि यदि तुम अपनी आत्मा तक पहुंचोगे, तो तुम्हारे प्रेम का क्या होगा? निश्चित ही वह विलीन हो जाऐगा--परंतु तुम हारोगे नहीं। एक नए प्रकार का प्रेम उभरेगा जो कि लाखों में एक व्यक्ति के भीतर उभरता होगा। केवल उसी प्रेम को ही प्रेमपूर्ण होना कहा जा सकता है।"
0 Comments