Jibrish Dhyan - Osho

जिबरिश’ का प्रचलित अर्थ बन गया-अर्थहीन बकवास। यह अर्थहीन बकवास ही आंतरिक बकवास को रोकती है। इससे मन का कूड़ा-करकट बाहर निकाला जा सकता है। ईसाइयों के एक मत में इस तरह के ध्यान को ग्लासोलेलिया कहते हैं; 'टाकिंग इन टंग्स।'

  • जिबरिश के कई तरीके :
जिबरिश को आप कई तरीके से कर सकते हैं। इसे आप फनी, लॉफिंग या अपने भावों के हिसाब से जैसा चाहे वैसा बना सकते हैं। जिबरिश में बात करना करना बहुत ही रोचक होता है। आप गुस्से में, दुख में या प्रसन्नता से जिमरिश बोले। अपने चेहरे पर चौंकाने वाले भाव लाकर भी जिबरिश बोले। रोते हुए भी जिबरिश बोलना बहुत फनी होगा। आपने बच्चों को देखा होगा जब उनका कोई खिलौना टूट जाता है और दहाड़े मारकर रोते हुए ऐसा कुछ बोलने लगते हैं जो आपको समझ में नहीं आता। हर तरह के मनोभावों में जिबरिश को ढाला जा सकता है। 

  • समूह में करें यह ध्यान :
जिबरिश एक ऐसी भाषा में बात करना है या बोलना है जो कि भाषा है ही नहीं। हर कोई यह भाषा जानता है। यह नान्सेन्स टाक है। आप इसे अकेले में भी कर सकते हैं और समूह में भी। यदि आप समूह में करेंगे तो बहुत मजा आएगा। जैसे मैं आपसे अजीब सा मुंह बनाकर कहूं...'तिरिफिका नालने मक्तमाने नी तोरफीटू जागरे केरमाना।'....आप इसका जबाब कुछ भी दे सकते हैं, 'नामारके रेगजा टूफीरतो नी नेमाक्तम नेलना काफिरिति।'

  • अकेले करें ये ध्यान :

अकेले बैठकर भी आप जिबरिश कर सकते हैं। प्रतिदिन सुबह उठकर या सोने से पहले कम से कम बीस मिनट जिबरिश करें। यानी एक कोने में बैठकर अनर्गल प्रलाप करें, आनंद के साथ। फिर एक बार छोटे बच्चें बन जाएं। यह एक पागलपन की तरह होगा। घर के लोग आप पर हंसेंगे भी, लेकिन यह आपके भीतर का पागलपन बाहर निकालन के यह सबसे अच्छा तरीका है।
इस ध्यान प्रयोग में आपको जब्बार बन जाना है। यह एक घंटे का ध्यान है; बीस-बीस मिनट के तीन चरण हैं। सायं तीन से छह बजे के बीच इसे करें।

  • पहला चरण :

खुले आकाश के नीचे विश्रामपूर्वक मुद्रा में लेट जाएं और खुली आंख से आकाश में झांकें। किसी बिन्दु-विशेष पर नहीं, बल्कि सम्पूर्ण आकाश में।

  • दूसरा चरण :

अब बैठ जाएं, आंखें खुली रखें और आकाश के सामने जिबरिश में- यानी अर्थहीन, अनाप-शनाप बोलना शुरू करें। बीस मिनट के लिए 'जब्बार-जैसे' बन जाएं- जो भी मन में आए, बोलें, चीखें, चिंघाड़ें, किलकारियां मारें, ठहाके लगाएं- कुछ भी।

  • तीसरा चरण :

शांत हो जाएं, आंख बन्द कर लें और विश्राम में चले जाएं। अब भीतर के आकाश में- अन्तराकाश में झांकें। बीस मिनट अनाप-शनाप बक चुकने पर आप अपने को इतना शांत और आकाशवत् महसूस करेंगे कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि आपके भीतर इतना बड़ा आकाश है। इसे अकेले करें।

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