- Dariya Kahe Shabd
दरिया के शब्द सुनो, जिंदगी की थोड़ी तलाश करो—दरिया कहै सब्द निरबाना! ये प्यारे सूत्र हैं। इनमें बड़ा माधुर्य है, बड़ी मदिरा है। मगर पिओगे तो ही मस्ती छाएगी। इन्हें ऐसे ही मत सुन लेना जैसे और सब बातें सुन लेते हो, इन्हें बहुत भाव-विभोर होकर सुनना।
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दीपक बारा नाम का! इसे यूं पढ़ना: शून्य का दिया जलाया। शब्दातीत, शास्त्रातीत, अनिवर्चनीय, समाधि का दीया जलाया। न वहां कुछ कहने को है, न कुछ समझने को है, न कुछ सुनने को है; वहां गहन मौन है, समग्र मौन है। जरा भी चहल-पहल नहीं। जरा भी शोरगुल नहीं। झेन फकीर उस अवस्था को कहते हैं एक हाथ से बजाई गई ताली। दो हाथ से बजाओगे तो आवाज होगी। एक हाथ से ताली बजती है, मगर आवाज नहीं होती।
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मेरी दृष्टि में तो भारत के विचार की शक्ति खो गई है; भारत के पास विचार की ऊर्जा नष्ट हो गई है। भारत ने हजारों साल से सोचना बंद कर दिया है। भारत सोचता ही नहीं है। यह इतना बड़ा पत्थर भारत के प्राणों पर है कि अगर कुछ हजार लोग अपने सारे जीवन को लगा कर इस पत्थर को हटा दें, तो भारत का जितना हित हो सकता है, उतना ये तथाकथित रचनात्मक कहे जाने वाले कामों से नहीं।... समाज को बदले बिना सारे रचनात्मक काम पुराने समाज को बचाने वाले, टिकाने वाले सिद्ध होते हैं। समाज की जीवन-व्यवस्था में आमूल-रूपांतरण न हो, तो समाज में चलने वाली सेवा, समाज में चलने वाला रचनात्मक आंदोलन पुराने समाज के मकान में ही पलस्तर बदलने, रंग-रोगन करने, खिड़की-दरवाजों को पोतने वाला सिद्ध होता है। नहीं, आज समाज को रचनात्मक काम की नहीं, विध्वंसात्मक काम की जरूरत है; आज समाज को कंस्ट्रक्शन की नहीं, एक बहुत बड़े डिस्ट्रक्शन की जरूरत है। आज समाज के पास इतना कचरा, इतना कूड़ा है हजारों साल का कि उसमें आग देने की जरूरत है। इस वक्त जो लोग हिम्मत करके विध्वंस करने को राजी हैं, वे ही लोग एकमात्र रचनात्मक काम कर रहे हैं। यह समाज जाए, यह सड़ा-गला समाज नष्ट हो, इसके लिए सब-कुछ किया जाना आज जरूरी है।
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तीन सूत्र--साक्षी-साधना के
साक्षीभाव की साधना के लिए इन तीन सूत्रों पर ध्यान दो:
1. संसार के कार्य में लगे हुए श्वास के आवागमन के प्रति जागे हुए रहो। शीघ्र ही साक्षी का जन्म हो जाता है।
2. भोजन करते समय स्वाद के प्रति होश रखो। शीघ्र ही साक्षी का आविर्भाव होता है।
3. निद्रा के पूर्व जब कि नींद आ नहीं गई है और जागरण जा रहा है--सम्हलो और देखो। शीघ्र ही साक्षी पा लिया जाता है।
ओशो
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय मैं जानता हूं कि तुम जो कहना चाहते हो, वह कह नहीं पाते हो।
लेकिन, कौन कह पाता है?
प्राणों के सागर के लिए शब्दों की गागर सदा ही छोटी पड़ती है।
जीवन सच ही एक अबूझ पहेली है।
लेकिन, उन्हीं के लिए जो उसे बूझना चाहते हैं।
पर बूझना आवश्यक कहां है?
असली बात है जीना¬-बूझना नहीं।
जीवन जीओ और फिर जीवन पहेली नहीं है।
फिर है जीवन एक रहस्य।
पहेली जीवन को गणित बना देती है।
गणित चिंता और तनाव को जन्माता है।
रहस्य जीवन को बना देता है काव्य।
और काव्य है विश्राम।
काव्य है रोमांस।
और जीवन के साथ जो रोमांस में है, वही धार्मिक है।
तर्क जीवन को समस्या (Problem) की भांति देखता है।
प्रेम जीवन को समाधान जानता है।
इसलिए तर्क अंततः उलझाता है।
और प्रेम समाधि बन जाता है।
समाधि अर्थात पूर्ण समाधान।
इसलिए कहता हूं कि जीवन को तर्क का अभ्यास (Exercise) मत बनाओ; जीवन को बनाओ प्रेम का पाठ।
‘‘ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।’’
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- Dharm Aur Anand
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