Vishwas - Osho

विश्वास - ओशो

   यदि तुम विश्वास करते हो, तुम कभी भी जान नहीं पाओगे। यदि तुम सचमुच जानना चाहते हो, विश्वास मत करो। इसका यह मतलब नहीं होता है कि अविश्वास करो, क्योंकि अविश्वास अलग तरह का विश्वास है। विश्वास मत करो, पर प्रयोग करो। अपने पर जाओ, और यदि तुम देख सको, यदि तुम महसूस कर सको, तो ही विश्वास करो। लेकिन तब यह विश्वास नहीं रहता; तब यह श्रद्धा होती है। यह श्रद्धा और विश्वास में फर्क है: श्रद्धा अनुभव से आती है; विश्वास पूर्वाग्रह है जो अनुभव के सहारे के बिना है। 
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इसलिए विश्वास मत करो कि शास्त्र कहते हैं, और इसलिए विश्वास मत करो सम्माननीय लोग कहते हैं, क्योंकि हो सकता है कि वे यह इसलिए कह रहे हैं क्योंकि यह कहने से वे सम्माननीय हो जाते हैं। इसलिए विश्वास मत करो कि पंडित-पुजारी कहते हैं, क्योंकि पंडित सभी तरह का व्यवसाय कर रहे हैं। उन्हें वैसा कहना ही है; वे विक्रेता हैं । वे कुछ अदृश्य उपयोग की वस्तुएं बेच रहे हैं, जो कि देखी नहीं जा सकती पर तुम्हें विश्वास करना होता है । 



प्रयोग करो, सभी बातों के लिए अस्तित्वगत अनुभव के लिए जाओ। प्रयोगशाला बन जाओ--तुम्हारी अपनी प्रयोगशाला। और जब तक कि यह तुम्हारी अपनी समझ ना बने, विश्वास मत करो। जब जक कि यह तुम्हारी अपनी समझ ना बने, विश्वास मत करो, और तब ही तुम श्रद्धा बन सकते हो। जिस सत्य पर विश्वास किया जाता है वह झूठ है। अनुभव का सत्य पूरी अलग ही घटना है। यह वैज्ञानिक मन का ढंग है। 

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