बसो मेरे नैनन में नंदलाल।
मीरा कहती है: मेरी आंखों में बस जाओ नंदलाल। मेरी आंखों में तुम ही रहो। मेरी आंखें तुम्हारा घर बन जाएं। जागूं तो तुम्हें देखूं, सोऊं तो तुम्हें देखूं। आंख खोलूं तो तुम्हें देखूं। रात सपना देखूं तो तुम्हारा देखूं।
यह मतलब है आंखों में बसने का। तुम्हें छोडूं ही न। तुम मेरे भीतर रहने लगो।
बसौ मेरे नैनन में नंदलाल।
मोहनी मूरत सांवरी सूरत...
ध्यान करना, भक्त की खोज सौंदर्य के माध्यम से परमात्मा की खोज है।
मोहनी मूरत सांवरी सूरत...
यह भी ध्यान रखना कि इस देश में हमने कृष्ण को, राम को सांवरा कहा है। कभी-कभी पश्चिम के लोगों को हैरानी होती है, कि हमने सुंदरतम व्यक्तियों को सांवरा क्यों कहा है? गोरा क्यों नहीं कहा? कारण हैं। सांवरेपन में एक गहराई होती है जो गोरेपन में नहीं होती। गोरापन थोड़ा सा उथला-उथला होता है। गोरापन ऐसा ही होता है जैसे कि नदी बहुत छिछली-छिछली, तो पानी सफेद मालूम पड़ता है। जब नदी गहरी हो जाती है तो पानी नीला हो जाता है, सांवरा हो जाता है।
कृष्ण सांवरे थे, ऐसा नहीं है। हमने इतना ही कहा है सांवरा कह कर, कि कृष्ण के सौंदर्य में बड़ी गहराई थी; जैसे गहरी नदी में होती है, जहां जल सांवरा हो जाता है। यह सौंदर्य देह का ही सौंदर्य नहीं था--यह हमारा मतलब है। खयाल मत लेना कि कृष्ण सांवले थे। रहे हों न रहे हों, यह बात बड़ी बात नहीं है। लेकिन सांवरा हमारा प्रतीक है इस बात का कि यह सौंदर्य शरीर का ही नहीं था, यह सौंदर्य मन का था; मन का ही नहीं था; यह सौंदर्य आत्मा का था। यह सौंदर्य इतना गहरा था, उस गहराई के कारण चेहरे पर सांवरापन था। छिछला नहीं था सौंदर्य। अनंत गहराई लिए था।
मोहनी मूरत सांवरी सूरत, नैना बने बिसाल।
ये तुम्हारी बड़ी-बड़ी आंखें सदा मेरा पीछा करती रहें, ये सदा मुझे देखती रहें। मुझमें झांकती रहें।
मोर मुकुट मकराकृति कुंडल...
यह तुम्हारा मोर के पंखों से बना हुआ मुकुट, यह तुम्हारा सुंदर मुकुट, जिसमें सारे रंग समाएं हैं! वही प्रतीक है। मोर के पंखों से बनाया गया मुकुट प्रतीक है इस बात का कि कृष्ण में सारे रंग समाए हैं। महावीर में एक रंग है, बुद्ध में एक रंग है, राम में एक रंग है--कृष्ण में सब रंग हैं। इसलिए कृष्ण को हमने पूर्णावतार कहा है...सब रंग हैं। इस जगत की कोई चीज कृष्ण को छोड़नी नहीं पड़ी है। सभी को आत्मसात कर लिया है। कृष्ण इंद्रधनुष हैं, जिसमें प्रकाश के सभी रंग हैं। कृष्ण त्यागी नहीं हैं। कृष्ण भोगी नहीं हैं। कृष्ण ऐसे त्यागी हैं जो भोगी हैं। कृष्ण ऐसे भोगी हैं जो त्यागी हैं। कृष्ण हिमालय नहीं भाग गए हैं, बाजार में हैं। युद्ध के मैदान पर हैं। और फिर भी कृष्ण के हृदय में हिमालय है। वही एकांत! वही शांति! अपूर्व सन्नाटा!
कृष्ण अदभुत अद्वैत हैं। चुना नहीं है कृष्ण ने कुछ। सभी रंगों को स्वीकार किया है, क्योंकि सभी रंग परमात्मा के हैं।
💃🏿पद घुंघरू बांध 💃🏿
🌹ओशो प्रेम..... ✍🏻♥
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