परमात्मा का अनुभव - ओशो
लोग मुझसे पूछते हैं, लोग सदा से पूछते रहे हैं कि यह कैसे पता चलेगा कि ध्यान लग गया?
लोग मुझसे पूछते हैं, लोग सदा से पूछते रहे हैं कि यह कैसे पता चलेगा कि ध्यान लग गया?
यह कैसे पक्का पता चलेगा कि परमात्मा मिल गया? यह कैसे पक्का पता चलेगा कि समाधि है?
खोपड़ी में कोई लट्ठ मार दे, तब तुम्हें कैसे पक्का पता
चलता है कि दर्द हो रहा है?
उसको तुम किसी और से पूछने जाते हो कि क्यों भाई, मुझे दर्द हो रहा है कि नहीं? तो तुम्हें आनंद का अनुभव न होगा?
जब तुम पीड़ा को पहचान लेते हो तो तुम आनंद को पहचानने की खबर दे दिए। क्योंकि पीड़ा उसी का तो अभाव है।
जब तुम्हें बीमार का पता चल जाता है तो स्वास्थ्य है तो स्वास्थ्य का भी पता चल ही जाएगा।
जब नर्क को तुम पहचान लेते हो तो स्वर्ग को भी पहचान लोगे। यह पूछना न पड़ेगा कि जो मुझे मिला है, वह मिला है या नहीं? नहीं, जब हीरा मिलता है—
हीरा पायो, गांठ गठियायो, बार बार बाको क्यों
खोले—संदेह तो कुछ होता नहीं।
हीरा पायो, गांठ गठियायो, बार बार बाको क्यों
खोले—संदेह तो कुछ होता नहीं।
वह अनुभव असंछिग्ध है। परमात्मा का अनुभव संदेहातीत है। जब होता है, बस हो गया। फिर सारी दुनिया कहे कि नहीं हुआ तो भी कोई सवाल नहीं। सारी दुनिया सिद्ध कर दे कि नहीं हुआ तो भी कोई सवाल नहीं सारी दुनिया कहे कि ईश्वर नहीं है, तो भी कुछ फर्क नहीं पड़ता।
जब तुम्हें अनुभव हो गया—तो वही प्रमाण है। परमात्मा का अनुभव सेल्फ—एविडेंट है, स्व—प्रमाण है। उसके लिए किसी और प्रमाण की जरूरत नहीं है। वह खुद ही अपना प्रमाण है। हो गया, हो गया। लेकिन जब तक नहीं हुआ है, तब तक बड़ी मुश्किल है। कोई दूसरा अपना अनुभव तुम्हारे हाथ में रख दे, तुम न पहचान सकोगे; क्योंकि पहचान तो केवल अपने ही अनुभव की होगी, दूसरे के अनुभव की नहीं होगी। इसलिए कबीर लाख सिर पटकें, तुम्हें न आएगा; भरोसा तो तभी आएगा, जब तुम्हें घटना घट जाएगी।
सुन भई साधो - ओशो
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